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अज़हर मसूद के मारे जाने की अफ़वाह क्यों फैलाई गई?

रविवार दोपहर बाद भारतीय मीडिया में यह ख़बर जंगल में लगी आग की तरह फैली कि आतंकवादी गुट जैश-ए-मुहम्मद का सरगना अज़हर मसूद मारा गया। सोशल मीडिया पर यह भी बात फैली कि वह बालाकोट में हुए हमले में मारा गया। लेकिन इस ख़बर के किसी आधिकारिक स्रोत का पता नहीं चल रहा था, न ही इस ख़बर की पुष्टि हो रही थी। पाकिस्तानी मीडिया में भी इस ख़बर की पुष्टि नही हो पा रही थी। 
इसकी शुरुआत एक अनाम ब्लॉग से हुई, जिसमें यह कहा गया था कि बालाकोट पर हुए हवाई हमले में मसूद मारा गया। सोशल मीडिया पर एक ऑडियो भी चल रहा था, जिसमें अजहर का भाई कथित तौर पर कह रहा था कि हमले में मसूद बुरी तरह जख़्मी हुआ है।
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रविवार शाम यह समझा गया कि मसूद गुर्दा फ़ेल होने की वजह से मारा गया है। लेकिन इस ख़बर की भी पुष्टि नहीं हो पा रही थी। 
इसके भी पहले पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने बीबीसी उर्दू को दिए इंटरव्यू में यह माना था कि जैश का सरगना पाकिस्तान में ही है। उन्होंने कहा था कि अज़हर मसूद का गुर्दा ख़राब हो गया है और वह इतना बीमार है कि घर के बाहर नहीं निकल सकता। अज़हर के मारे जाने की ख़बर को इससे भी जोड़ कर देखा जा रहा था। 
रविवार देर शाम जैश ने अज़हर मसूद के मारे जाने की ख़बरों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह जिन्दा है बिल्कुल ठीक है। गुट ने एक बयान जार कर यह कहा। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने जैश के बयान जारी करने की ख़बर दी है। यानी यह साफ़ हो गया है कि अज़हर नहीं मारा गया है, उसके मारे जाने की अफ़वाह फैलाई गई थी। 
आख़िर अज़हर के मारे जाने की ख़बर कैसे फैली? क्या यह ख़बर जान बूझ कर फैलाई गई थी? यह सवाल इसलिए उठा कि बालाकोट हमले के बाद सरकारी दावे पर सवाल उठने लगे थे। सरकार ने दावा किया था कि उस हमले में तक़रीबन 300 लोग मारे गए थे। लेकिन अंतरराष्ट्रीय मीडिया कह रहा था कि कोई नहीं मारा गया है।
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की कुछ संस्थाओं ने सैटेलाइट से मिली तसवीरों के अध्ययन के बाद यह बताया था कि हमला तो हुआ, पर जंगल में पहाड़ी पर, जहाँ सिर्फ पेड़ थे। यह भी कहा गया कि किसी मदरसे पर बम नहीं गिरा और कोई नहीं मरा। शायद बम के निशाने पर मदरसा था ही नहीं। 
भारती वायु सेना के वाइस एअर मार्शल आर.जी.के.कपूर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में हमला में नुक़सा पहुँचने का दावा किया, पर मारे गए लोगों की तादाद नहीं बताई। उन्होंने कहा, 'यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी।' उसके बाद विदेश सचिव ने संसदीय समिति से कहा, वह नहीं बता सकते कि बालाकोट हमले में कितने लोग मारे गए। इससे पूरा मामला ही संदेहास्पद हो गया।
लेकिन दूसरी ओर, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इसका राजनीतिकरण कर रही थी और इसे चुनावी मुद्दा बना चुकी थी।प्रधानमंत्री उन सभी लोगों की राष्ट्रभक्ति पर सवालिया निशान लगा रहे थे जो इस हमले पर सवाल पूछ रहे थे। उन्होंने यह भी कह दिया कि 26/11 के मुंबई हमले का बदला सरकार ने नहीं लिया, लेकिन उनकी सरकार ने पुलवामा  हमले का बदला ले लिया है। 
इस पृष्ठभूमि में अज़हर के मारे जाने की झूठी ख़बर से यह सवाल उठने लगा कि इसके पीछे कौन लोग थे। क्या यह सरकार या सत्तारूढ़ दल से जुड़े लोगों ने फैलाई थी, या उनके नज़दीक समझे जाने वाले मीडिया घरानों ने यह फैलाई थी, यह सवाल पूछा जाने लगा।
इससे भारतीय मीडिया के एक वर्ग की विश्वसनीयता एक बार फिर तार-तार हुई। अज़हर के मरने की ख़बर उन्हीं मीडिया घरानों ने फैलाई थी, जो इसके पहले पाकिस्तान पर हुए हमले के पूरे वाकये को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहे थे और युद्धोन्माद फैला रहे थे। 
आतंकवादी अज़हर मसूद भारत के श्रीनगर में गिरफ़्तार होने के बाद जेल में था। लेकिन साल 1999 के दिसंबर में इंडियन एअरलाइन्स के विमान का अपहरण कर उसे अफ़ग़ानिस्तान के कंधार ले जाया गया। विमान के यात्रियों को छु़ड़ाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने अज़हर मसूद और उसके दूसरे साथियों को भारतीय जेलों से रिहा कर दिया था। उसके बाद कुछ सालों तक शाँत रहने के बाद मसूद ने जैश-ए-मुहम्मद की स्थापना की। 
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क़मर वहीद नक़वी

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