अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर से चीन पर यह कहते हुए हमला किया है कि चीन ऐसा सब कुछ करेगा जिससे वह दोबारा न जीतने पाएँ। एक अमेरिकी युद्धपोत ने दक्षिण चीन सागर में तनाव बढ़ाने वाली हरकत भी की है, जिसका मतलब है कि वे अमेरिकी अवाम का ध्यान चीन की तरफ़ खींचना चाहते हैं।
सवाल उठता है कि ट्रम्प ऐसा क्यों कर रहे हैं। क्या उन्हें अमेरिकी चुनाव में चीन की ओर से दखलंदाज़ी के कोई प्रमाण मिले हैं या फिर उनको कोई डर है जो उनसे यह कहलवा रहा है।
अगर चीनी हस्तक्षेप का एक भी संकेत होता तो अमेरिकी मीडिया में अभी तक हंगामा मच चुका होता, वह आसमान सिर पर उठा लेता और चीन के ख़िलाफ़ मोर्चा ही खोल देता। मगर उसमें तो इस मसले पर खामोशी छाई हुई है, इस तरह की किसी चीज़ का ज़िक्र तक नहीं हो रहा।
यह ध्यान रखने की बात है कि सन् 2016 के चुनाव में रूस की कथित दखलंदाज़ी को लेकर अमेरिका में लंबे समय तक विवाद चला था। आरोप है कि उस चुनाव में रूस ने हिलेरी क्लिंटन को हराने और ट्रम्प को जिताने के लिए तरह-तरह के हथकंडे आज़माए थे। इनमें डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल भी शामिल था। इस पूरे मामले पर जाँच बैठी थी और काफी हद तक ये सिद्ध हो गया था कि रूस ने कुछ तो किया है।
अब सोचिए कि अगर चीन ऐसा कुछ कर रहा होता तो इस समय अमेरिका में क्या हो रहा होता। अमेरिका की तमाम सुरक्षा एजेंसियाँ सक्रिय हो जातीं, राजनीतिक दल टूट पड़ते और मीडिया तो ख़ैर किसी को छोड़ता ही नहीं। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हो रहा, क्योंकि ऐसा कुछ है नहीं।
ट्रम्प ने भी अपनी तरफ़ से कोई ऐसा तर्क नहीं दिया है जिससे उनकी बात को सच माना जा सके। वह केवल गाल बजा रहे हैं और चूँकि ट्रम्प का झूठ बोलने के मामले में इतना बुरा रिकॉर्ड है कि उसे कोई गंभीरता से ले नहीं रहा।
फिर लोग यह भी समझ रहे हैं कि ट्रम्प कोरोना से लड़ने पर ध्यान लगाने के बजाय चीन का नाम बार-बार क्यों जप रहे हैं। स्पष्ट है कि वह घबराए हुए हैं कि कहीं कोरोना का संकट उनके लिए राजनीतिक संकट न बन जाए और वह चुनाव हार जाएँ। इसके आसार भी बढ़ते जा रहे हैं।
यह लगभग मान लिया गया है कि ट्रम्प ने सही समय पर क़दम उठाए होते तो यह नौबत न आती। अब अपनी ग़लतियों को ढंकने के लिए वह कभी डब्ल्यूएचओ को निशाना बनाते हैं तो कभी चीन को।
यही नहीं, उनके अटपटे बयानों ने उन्हें मज़ाक़ का पात्र भी बना दिया है। ख़ास तौर पर हाल में जब उन्होंने कोरोना से इलाज़ के लिए कीटनाशकों के इंजेक्शन देने और अल्ट्रावायलट किरणों के इस्तेमाल का सुझाव दिया था तो उनकी बहुत खिल्ली उड़ी थी।
सच तो यह है कि कोरोना संकट ने उनके नेतृत्व क्षमता की पोल खोलकर रख दी है। पूरे देश, बल्कि दुनिया को समझ में आ गया है कि मनोरोगी या सायकोपैथ अमेरिका का नेतृत्व कर रहा है, जिसकी वज़ह से हालात बिगड़ते जा रहे हैं।
शायद ट्रम्प को भी इस बात का एहसास हो गया है कि उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है और उनकी पोल खुल गई है। इसलिए अब वह पैंतरा बदल रहे हैं। वह एक ऐसा दुश्मन तलाश रहे हैं जिस पर निशाना साधकर वह एक साथ दो शिकार कर सकें। ये दो निशाने हैं- एक तो लोगों का ध्यान कोरोना से हटा दिया जाए और दूसरा अमेरिकियों में चीन के प्रति नफ़रत फैलाकर राष्ट्रवाद को हवा दी जाए।
वैसे यह काम उन्होंने मार्च में ही शुरू कर दिया था। उन्होंने पहले कोरोना को चीनी वायरस कहना शुरू किया था और इसका मक़सद भी चीन के बहाने अमेरिकियों को अपने पीछे खड़ा करना था। मगर जब चीन ने काउंटर अफेंसिव किया तो वे पीछे हट गए। कुछ समय चुप रहने के बाद उन्होंने अमेरिका में कोरोना फैलने के लिए चीन को दोबारा दोष देना शुरू कर दिया। वह लगातार यह भी कहे जा रहे हैं कि चीन ने वुहान मे संक्रमण की सचाई छिपाई है।
चीन ने सचाई छिपाई है या नहीं इसका तो पता नहीं मगर यह सच सब समझ रहे हैं कि वह चीन के कंधे पर अपनी चुनावी बंदूक़ रखने की कोशिश कर रहे हैं। उनका यह दाँव उल्टा पड़ सकता है, क्योंकि अगर अर्थव्यवस्था को वह पटरी पर न ला पाए तो इस तरह का कोई भी हथकंडा काम नहीं आएगा। उनकी रेटिंग बहुत नीचे जा चुकी है। डेमोक्रेटिक पार्टी के संभावित उम्मीदवार के मुक़ाबले वह छह फ़ीसदी पिछड़े हुए हैं और संभावना यही है कि यह अंतर बढ़ता जाएगा।
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