ईरान के आला जनरल कासिम सुलेमानी को ड्रोन-मिसाइल हमले में मार गिराने के तीन दिनों बाद ईरान ने अपनी जनता से किये गए वादे के अनुरूप इराक़ में अमेरिकी सैन्य अड्डों पर हमला कर अमेरिका को उकसाने की कोशिश की। लेकिन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने बुधवार रात को सदबुद्धि दिखाते हुए जो संयम भरा बयान दिया है, उससे न केवल भारत और खाड़ी के मुल्कों में राहत की सांस ली जाएगी, बल्कि पूरी दुनिया राहत महसूस करेगी।
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क्या कहा ट्रंप ने?
ईरान ने बुधवार सुबह जब इराक स्थित दो अमेरिकी सैन्य अड्डों पर एक दर्जन बैलिस्टिक मिसाइलें चलाईं तो दुनिया भर में यह डर पैदा हो गया कि सनकी दिमाग वाले राष्ट्रपति ट्रम्प ईरान पर कोई ऐसा जवाबी कार्रवाई करने का आदेश अपनी सेना को देंगे, जिससे पूरा खाड़ी इलाक़ा धधक उठेगा।लेकिन राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने एक सुलझे हुए विश्व नेता का परिचय देते हुए ईरान के लिये न केवल अच्छे शब्द कहे बल्कि ईरान के साथ शांति से रहने की बातें भी कहीं।
जो अमेरिका ईरान को ‘दुष्ट राष्ट्र’ की संज्ञा देता रहा है, उसके राष्ट्रपति ट्रम्प ने पहली बार ईऱान को महान देश की संज्ञा देते हुए उसकी समृदिध की कामना की है। ट्रम्प ने ईरान के ख़िलाफ़ किसी भी अपशब्द का इस्तेमाल नहीं किया और न ही उसे मटियामेट कर देने की धमकी दी।
प्रतिबंध का असर?
जो अमेरिका ईरान को ‘दुष्ट राष्ट्र’ की संज्ञा देता रहा है, उसके राष्ट्रपति ट्रम्प ने पहली बार ईऱान को महान देश की संज्ञा देते हुए उसकी समृदिध की कामना की है। ट्रम्प ने ईरान के ख़िलाफ़ किसी भी अपशब्द का इस्तेमाल नहीं किया और न ही उसे मटियामेट कर देने की धमकी दी।ट्रम्प ने ईरान पर अतिरिक्त आर्थिक प्रतिबंध लगाने का ऐलान किया है, पर उससे ईरान का कुछ और नहीं बिगड़ेगा। ईरान पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों की मार झेल रहा है।
पंगा न ले ईरान!
राष्ट्रपति ट्रम्प ने ईरान को अप्रत्यक्ष तौर पर यह भी समझा दिया कि वह अमेरिका से पंगा नहीं ले। अमेरिका मध्य पूर्व के तेल पर निर्भर नहीं है, वह खुद एक बड़ा तेल और गैस उत्पादक देश बन गया है।अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने कासिम सुलेमानी को ड्रोन मिसाइल हमले से मार देने का औचित्य भी ठहराया और ईरान को चेताया कि अमेरिका एक दृढ़ संकल्प औऱ इच्छा शक्ति वाला देश है। इसके साथ ही राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि अमेरिका ईरान के साथ शांति और सौहार्द से रहना चाहता है।
क्या कर लेगा ईरान?
निश्चय ही अमेरिका भी इस ग़लतफ़हमी में नहीं होगा कि ईरान एक कमज़ोर देश है। भले ही ईरान अमेरिका के सामने बौना देश है, लेकिन ईरान सैनिक तौर पर इतना भी कमज़ोर नहीं कि वह किसी युद्ध में अमेरिका को कोई बड़ा घाव नहीं दे सके।निश्चय ही अमेरिका भी इस ग़लतफ़हमी में नहीं होगा कि ईरान एक कमज़ोर देश है। भले ही ईरान अमेरिका के सामने बौना देश है, लेकिन ईरान सैनिक तौर पर इतना भी कमज़ोर नहीं कि वह किसी युद्ध में अमेरिका को कोई बड़ा घाव नहीं दे सके।
ईरान के पास लम्बी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें हैं, जिन्हें चलाकर वह खाड़ी के इलाक़े में अमेरिका के मित्र देशों को भारी नुक़सान पहुँचा सकता है।
इराक़, संयुक्त अरब अमीरात, ओमान, कुवैत, क़तर, जॉर्डन आदि देशों में अमेरिका सैन्य अड्डे हैं, जहाँ हज़ारों अमेरिकी सैनिकों ने कई दशकों से डेरा डाला हुआ है। ईरान अपनी बैलिस्टिक मिसाइलों से इन्हें तबाह कर सकता है।
शांति की अपील का असर
भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार रात को ह्वाइट हाउस में दिये गए अपने बयान में दावा किया हो कि अमेरिकी सैनिक अड्डों पर हुए हमले में किसी भी सैनिक की जान नहीं गई क्योंकि उन्हें पहले ही हमले की चेतावनी मिल गई थी। लेकिन युद्ध के माहौल में अमेरिकी सैन्य अड्डों पर ईरानी मिसाइल हमलों की दहशत तो रहेगी ही।युद्ध न करने औऱ संयम बरतने की अपील दुनिया भर के नेताओं ने राष्ट्रपति ट्रम्प से की थी। भारत सहित यूरोपीय देशों ने भी अमेरिका को संयम बरतने की अपील की थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प से ईरान के मसले पर फ़ोन पर बात हुई थी। खाड़ी के अन्य देश भी युद्ध की आशंका से सहमे हुए थे।
यदि अमेरिका और ईरान के बीच सीधा युद्ध का माहौल बनता तो खाड़ी के देश ही सबसे बडे शिकार होते। अमेरिका तो मानव रहित लड़ाकू विमानों और ड्रोनों से ईरान को तबाह करने वाले हमले करता और दूर से तमाशा देखता रहता, लेकिन ईरान भी अमेरिका के खाड़ी के सभी मित्र देशों पर अपनी बैलिस्टिक मिसाइलें चलाने से नहीं चूकता।
इस माहौल में खाड़ी के देशों की तेल अर्थव्यवस्था पर काफी प्रतिकूल असर पडता। भारत भी युद्ध की आशंका से काफी डरा हुआ था, क्योंकि भारत के 70 प्रतिशत से अधिक तेल का आयात खाड़ी के मुल्कों से ही होता है।
इसके अलावा खाड़ी के देशों में भारतीय मूल के करीब 90 लाख लोग रहते हैं, जो सालाना 70 अरब डालर की विदेशी मुद्रा भारत भेजते हैं।
बुधवार को ईरानी मिसाइली हमले के तुरंत बाद खनिज तेल के दामों में तुरंत चार प्रतिशत की उछाल ने यह संकेत दे दिया था कि भारत की अर्थव्यवस्था पर भारी चोट पड़ने वाली है। लेकिन अब अमेरिकी राष्ट्रपति के संयमित बयान के बाद युद्ध की आशंकाएँ टल सी गई हैं। न केवल खनिज तेल की कीमतों से बल्कि खाड़ी में रहने वाले भारतीयों के रोज़गार पर भारी प्रतिकूल असर पड़ता और वहाँ पैदा भारी अस्थिरता और तनाव से से भारतीयों को सुरक्षित निकालने की बड़ी समस्या पैदा हो जाती।
राष्ट्पति डोनल्ड ट्म्प के संयमित बयान के बाद अब ईरान से भी यह अपेक्षा की जाएगी कि अमेरिका के ख़िलाफ़ भडकाऊ और चिढाने वाला बयान नहीं दे। ईरान और अमेरिका दोनों से भारत की विशेष दोस्ती है, इसलिये भारत के लिये यही अच्छा रहेगा कि अमेरिका औऱ ईरान आपसी दुश्मनी छोड़ कर पूरे पश्चिम एशिया में शांति व सद्भाव का माहौल बनाने में सहयोग और योगदान करें तो इससे पूरा खाड़ी इलाक़ा और भारत के साथ बाकी दुनिया भी चैन की सांस लेगी।
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