loader

ट्रंप की अफ़ग़ान-नीति पर पुनर्विचार से बाइडन क्या हासिल करेंगे?

इस समय मुझे तो एक ही विकल्प दिखता है। वह यह कि सभी अफ़ग़ान कबीलों की एक वृहद संसद (लोया जिरगा) बुलाई जाए और वह कोई कामचलाऊ सरकार बना दे और फिर लोकतांत्रिक चुनावों के ज़रिए काबुल में एक लोकतांत्रिक सरकार बने। इस बीच बाइडन-प्रशासन थोड़ा धैर्य रखे और काबुल से पिंड छुड़ाने की जल्दबाज़ी न करे। ट्रंप की तरह वह आनन-फानन घोषणाओं से बचे...
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

अमेरिका का बाइडन प्रशासन डोनाल्ड ट्रंप की अफ़ग़ान-नीति पर अब पुनर्विचार करनेवाला है। वैसे तो ट्रंप प्रशासन ने पिछले साल फ़रवरी में तालिबान के साथ जो समझौता किया था, उसकी प्रशंसा सर्वत्र हो रही थी लेकिन उस वक़्त भी मेरे जैसे लोगों ने संदेह प्रकट किया था कि इस समझौते का सफल होना कठिन है। लेकिन ट्रंप जैसे उथले आदमी ने यह रट लगा रखी थी कि राष्ट्रपति के चुनाव के पहले ही अमेरिकी फौजियों को अफ़ग़ानिस्तान से वे वापस बुला लेंगे। उन्होंने इसे अपना चुनावी मुद्दा भी बना लिया था। अमेरिकी मतदाता के लिए यह ख़ुशी की बात थी कि अमेरिकी फौजियों के ताबूत काबुल से न्यूयॉर्क आना बंद हो जाएँ। 

ताज़ा ख़बरें

यह भी सही है कि तालिबान ने पिछले एक साल में बहुत कम अमेरिकी ठिकानों को अपना निशाना बनाया और अमेरिकी फौजी नहीं के बराबर मारे गए लेकिन अफ़ग़ानिस्तान का कौनसा हिस्सा है, जहाँ तालिबान ने पिछले एक साल में हिंसा नहीं फैलाई? काबुल, कंधार, हेरात, जलालाबाद, हेलमंद, निमरुज- कौनसा इलाक़ा उन्होंने छोड़ा है। अब तक वे लगभग एक हज़ार लोगों को मौत के घाट उतार चुके हैं। उनमें अफ़ग़ान फौजी और पुलिस तो हैं ही, छात्र, किसान, व्यापारी, नेतागण और सरकारी अफसर भी हैं। 

अफ़ग़ानिस्तान के 80 प्रतिशत से ज़्यादा इलाक़ों पर उनका कब्जा है। वे सरकार की तरह लोगों से टैक्स वसूलते हैं, राज करते हैं और काबुल की गनी-सरकार को वे अमेरिका की कठपुतली कहते हैं। गनी सरकार भी मजबूर है। उसे दोहा में हुए समझौते को स्वीकार करना पड़ा। उसे पता है कि अमेरिकी और नाटो फौजी की वापसी के बाद उनकी सरकार का ज़िंदा रहना मुश्किल है। अफ़ग़ान फौज में पठानों का वर्चस्व है और तालिबान शुद्ध पठान संगठन है।
तालिबान सत्तारूढ़ होने पर इस्लामी राज कायम करना चाहते हैं लेकिन आज उनके कई गुट सक्रिय हैं। इन गुटों में आपसी प्रतिस्पर्धा जोरों पर है। हर गुट दूसरे गुट को नकारता चलता है। इसीलिए काबुल और वाशिंगटन के बीच कोई समझौता हो जाए, उसे लागू करना कठिन है।

इस समय मुझे तो एक ही विकल्प दिखता है। वह यह कि सभी अफ़ग़ान कबीलों की एक वृहद संसद (लोया जिरगा) बुलाई जाए और वह कोई कामचलाऊ सरकार बना दे और फिर लोकतांत्रिक चुनावों के ज़रिए काबुल में एक लोकतांत्रिक सरकार बने। इस बीच बाइडन-प्रशासन थोड़ा धैर्य रखे और काबुल से पिंड छुड़ाने की जल्दबाज़ी न करे। ट्रंप की तरह वह आनन-फानन घोषणाओं से बचे, यह उसके लिए भी हितकर है, अफ़ग़ानिस्तान और पूरे दक्षिण एशिया के लिए भी।

(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक

अपनी राय बतायें

दुनिया से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें