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वियतनाम में कोरोना से एक भी मौत नहीं, भारत में 5 हज़ार से ज़्यादा क्यों?

ऐसे समय जब भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या डेढ़ लाख से अधिक हो गई है और इसकी चपेट में आकर 5 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है, वियतनाम में एक भी व्यक्ति की मौत कोरोना की वजह से नहीं हुई है। इस देश में सिर्फ 328 लोगों को कोरोना का संक्रमण हुआ है।
पौने दस करोड़ की जनसंख्या वाले इस कम्युनिस्ट देश की स्वास्थ्य सेवाएं यूरोप या अमेरिका की तरह विकसित और मजबूत नहीं हैं। मध्य आयवर्ग के लोगों के इस देश में 10 हज़ार लोगों पर सिर्फ 8 डॉक्टर हैं। इन प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वियतनाम आख़िर कैसे कोरोना संक्रमण रोकने में कामयाब रहा? क्या जादू चला कि यह चमत्कार हो गया?
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दरअसल न कोई जादू चला न ही कोई चमत्कार हुआ। ठीक वैसे ही जैसे केरल में कोरोना का शुरुआती मामला मिलने के बावजूद उस राज्य में कोरोना के बहुत ही कम मामले हैं, मृतकों की संख्या भी निहायत कम है। केरल ने वही किया जो वियतनाम ने किया।

समय से पहले तैयारी

वियतनाम ने कोरोना संक्रमण रोकने की तैयारी उस समय शुरू कर दी, जब इसका पहला मामला भी उस देश में सामने नहीं आया था।
जिस समय चीन और विश्व स्वास्थ्य संगठन बहुत ही आत्मविश्वास से दावा कर रहे थे कि मनुष्य से मनुष्य में कोरोना संक्रमण फैलने का कोई साफ़ साक्ष्य नहीं है, वियतनाम ने इसे रोकने की रणनीति बनानी शुरू कर दी थी।
नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ़ हाइज़िन एंड एपिडेमियोलॉजी में संक्रमण नियंत्रण विभाग के उप प्रमुख फ़ाम क्वांग थाई ने सीएनएन से कहा, 'हम डब्लूएचओ के दिशा निर्देश का इंतजार नहीं करते रहे। हमने ठोस कदम उठाने के लिए बाहर और देश के अंदर के आँकड़े एकत्रित किए।'

सीमा सील, क्वरेन्टाइन समय से पहले

इसका नतीजा यह हुआ कि जनवरी महीने में ही ऊहान से आने वाले यात्रियों की हवाई अड्डे पर ही थर्मल स्क्रीनिंग की जाने लगी। जिन मुसाफ़िरों को बुखार था, उन्हें आइसोलेट किया जाने लगा। उप प्रधानमंत्री वू डुक दाम ने सरकारी एजेंसियों को आदेश दिया कि वे वियतनाम में संक्रमण रोकने के लिए सीमा चौकियों, हवाई अड्डों और बंदरगाहों पर क्वरेन्टाइन करना शुरू कर दें।
वियतनाम में संक्रमण का पहला मामला 23 जनवरी को सामने आया, वियतनाम में रहने वाले एक चीनी नागरिक से मिलने उसके पिता ऊहान से आए थे। दोनों संक्रमित पाए गए थे। सरकार ने अगले दिन ही ऊहान से सारी उड़ानें रद्द कर दीं।
भारत में 30’जनवरी को कोरोना का पहला मामला सामने आया, लेकिन हवाई अड्डों पर थर्मल स्क्रीनिंग मार्च के दूसरे हफ़्ते में शुरू हुआ। उड़ानों पर प्रतिबंध 22 मार्च के बाद लगा।  

महामारी घोषित

जनवरी महीने में ही जब देश में पारंपरिक नया साल मनाया गया, प्रधानमंत्री नग्युन शुआन फ़ुक ने कोरोना से लड़ाई का एलान कर दिया। उन्होंने 27 जनवरी को कम्युनिस्ट पार्टी की विशेष बैठक में कहा, 'महामारी से लड़ना दुश्मन से लड़ना है।'
इसी दिन डब्लूएचओ ने कोरोना को अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ्य इमर्जेंसी घोषित किया।
भारत में 24 फऱवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में एक लाख लोगों को एकत्रित किया ताकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का स्वागत किया जा सके।

भारत से आगे वियतनाम!

1 फ़रवरी तक वियतनाम में 6 मामले सामने आ गए तो उसी दिन सरकार ने कोरोना को राष्ट्रीय महामारी घोषित कर दिया, विदेशी उड़ानें रोक दीं।राजधानी हनोई के पास कोरोना के 7 मामले पाए जाने पर 12 फरवरी को उस पूरे इलाक़े में 20 दिनों के लिए लॉकडाउन कर दिया गया।फरवरी की 13 तारीख़ तक पूरे देश में 16 मामले सामने आए।  संक्रमण का पहला दौर थम गया।

11,000 कोरोना हेल्थ सेंटर!

कोरोना संक्रमण का दूसरा और अधिक ख़तरनाक दौर मार्च के दूसरे हफ़्ते में आया। लेकिन उस समय तक प्रांत स्तर पर 63 सेंटर फ़ॉर डिजीज़ कंट्रोल (सीडीसी), ज़िला स्तर पर 700 सीडीसी और 11,000 कम्यून स्वास्थ्य केंद्र बन चुके थे, काम कर रहे थे।
यह व्यवस्था बन चुकी थी कि कोरोना संक्रमण पाए जाने पर रोगी पिछले 14 दिन में जिन लोगों से मिला है, सबके नाम पता वगैरह देगा। इसकी जानकारी अख़बारों में छापी जाती थी और लोगों से कहा जाता था कि यदि वे इन लोगों से किसी तरह के संपर्क में आए हैं तो तुरन्त पास के स्वास्थ्य केंद्र पर मुफ़्त जाँच कराएं।

70 हज़ार क्वरेन्टाइन

स्वास्थ्य केंद्र, अस्पताल और सैनिक शिविरों में क्वरेन्टाइन केंद्र बनाए गए। जो लोग कोरोना संक्रमित से परोक्ष रूप से संपर्क में आए थे, उन्हें आइसोलेट किया गया। 1 मई तक 70 हज़ार लोगों को सरकारी क्वरेन्टाइन केंद्रों में रखा जा चुका था।
सरकार और कम्युनिस्ट पार्टी का पूरा प्रचार तंत्र लोगों को कोरोना के बारे में हर छोटी जानकारी देने में जुट गया। इसके लिए अलग से वेबसाइट बनाए गए, टेलीफ़ोन हॉटलाइन शुरू कर दी गई, फ़ोन ऐप लॉन्च किए गए। एसएमएस सेवा शुरू की गई।
कम्युनिस्ट पार्टी के काडर घर-घर जाकर लोगों को कोरोना की जानकारी देने लगे। लाउडस्पीकर, पोस्टर, बैनर, अख़बार, फिल्म, वीडियो, ऑडियो सबका इस्तेमाल किया गया।
नतीजा यह हुआकि गाँव गाँव में लोगों को कोरोना के बारे में पता चल गया, वे पूरी तरह शिक्षित हो गए, खु़द आगे बढ़ कर जाँच कराने लगेस जो पूरी तरह मुफ़्त था।

और भारत?

भारत में पहला मामला आने के लगभग दो महीने बाद लॉकडाउन लगा, उस समय तक संसद, विधानसभा, रेल यात्रा, हवाई उड़ानें, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजन पहले की तरह ही होते  रहे। 
मध्य प्रदेश में सरकार बनाने-गिराने का खेल चला, उत्तर प्रदेश में स्वयं मुख्यमंत्री ने रामनवमी के मौके पर धार्मिक कार्यक्रम की अगुआई की, पश्चिम बंगाल में इसी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रतिबंध को धता बताते हुए बड़े पैमाने पर धार्मिक आयोजन किया।
कर्नाटक में इस दौरान विशाल धार्मिक आयोजना हुआ, हज़ारों लोगों ने रथ खींचा, पूर्व प्रधानमंत्री के पोते का विवाह धूमधाम से हुआ, जिसमें वह स्वयं मौजूद थे। दिल्ली में सरकारी अनुमति और पुलिस की मौजूदगी में तबलीग़ी जमात का कार्यक्रम हुआ, जिसमें हज़ारों लोगों ने शिरकत की।
वियतनाम और भारत में कोरोना की लड़ाई का अंतर साफ़ है और दोनों के नतीजों में भी अंतर साफ़ है। और हाँ, वियतनाम में किसी ने जादू नहीं किया, कोई चमत्कार नहीं हुआ। 
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प्रमोद मल्लिक

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