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प्रतीकात्मक तसवीर।

चीन में सुझाव- पुरुषों के लिए दुल्हनें नहीं हैं तो महिलाएँ रखें दो-दो पति

एक-एक महिला के दो-दो पति। बिल्कुल उसी तर्ज पर जैसे एक पुरुष की दो पत्नियाँ। वैसे, ऐसे तीन लोगों की आपसी मर्ज़ी से भी ऐसा होना असामान्य सी बात लगती है, लेकिन क्या इसकी कल्पना की जा सकती है कि किसी देश में एक-एक महिला के दो-दो पति होना आम बात लगने लगे! ऐसा क़ानून बनाने का सुझाव दे दिया जाए। देश की हालत इतनी बदतर हो जाए कि सुधार के लिए एक तरह से पूरे देश की महिलाओं को दो-दो पुरुषों से शादी के लिए सरकार प्रोत्साहित करने लगे! 

चौंक गए न? यह कोई कोरी कल्पना नहीं, बल्कि हक़ीक़त है। चीन के शहर शंघाई में फुडन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर ने एक योजना पेश की है। उनका कहना है कि महिलाओं को कई पति रखने की अनुमति दी जाए और इस तरह उनके पास कई बच्चे होंगे। यानी ज़्यादा बच्चे पैदा करने के लिए महिलाएँ दो-दो पति रखें। क्या दो-दो पति रखे बिना ज़्यादा बच्चे पैदा नहीं किए जा सकते हैं? वैसे भी जो चीन क़रीब 36 साल तक वन चाइल्ड पॉलिसी यानी एक बच्चे की नीति पर चला वहाँ अब ज़्यादा बच्चे पैदा करने की तरह-तरह की योजनाएँ क्यों पेश की जा रही हैं?

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दरअसल, मलेशियाई मूल के प्रोफ़ेसर येव-क्वांग एनजी ने इस महीने एक चीनी बिज़नेस वेबसाइट पर एक नियमित कॉलम लिखा है। उन्होंने उस लेख के शीर्षक में पूछा है, ‘क्या बहुपतित्व वास्तव में एक हास्यास्पद विचार है?’

येव-क्वांग एनजी ने लिखा है, ‘मैंने पॉलेंड्री (एक से ज़्यादा पति रखना) का सुझाव नहीं दिया होता यदि लिंग अनुपात इतना गंभीर रूप से असंतुलित नहीं हुआ होता।’ लेख में उन्होंने लिखा, ‘मैं बहुपतित्व की वकालत नहीं कर रहा हूँ, मैं सिर्फ़ सुझाव दे रहा हूँ कि हमें असंतुलित लिंग अनुपात के विकल्प पर विचार करना चाहिए।’

महिलाओं को दो-दो पति रखने की वकालत इसलिए की गई है क्योंकि चीन में असंतुलित लिंग अनुपात भयावह स्तर तक बढ़ गया है। महिलाओं की संख्या काफ़ी कम हो गई है और पुरुषों की संख्या काफ़ी ज़्यादा। इस लिंगानुपात के असंतुलन का सबसे बड़ा कारण चीन की वह दशकों तक रखी गई ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ है। यह देश में तेज़ी से बढ़ती आबादी को कम करने और उसी समय चीन के जीवन स्तर को ऊँचा करने के लिए एक रणनीति थी।

चीन में एक बच्चे का क़ानून 1980 में बनाया गया था और इसे कड़ाई के साथ लागू किया गया। उस नियम के तहत यदि एक से अधिक बच्चा पाया जाता था तो सरकारी अफ़सर और कर्मचारियों को अपनी नौकरी गँवानी पड़ती थी।

जिन महिलाओं को इस क़ानून का उल्लंघन करते पाया जाता था उनका या तो जबरन गर्भपात करा दिया जाता था या फिर भारी जुर्माना लगाया जाता था। अगर माता-पिता पर लगाया गया जुर्माना नहीं भरा जाता था तो उस बच्चे की देश की नागरिकता में गणना नहीं की जाती थी, यानी वे पैदा होते ही ग़ैरक़ानूनी घोषित कर दिए जाते थे।

हालाँकि कुछ मामलों में छूट दी गई थी। अल्पसंख्यकों पर बच्चों की संख्या की कोई पाबंदी नहीं थी। ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले हान मूल के चीनी नागरिकों को दो बच्चे की छूट थी। विक्लांग बच्चा पैदा होने पर भी छूट थी।

क्यों छटपटा रहा है चीन?

क़रीब 40 साल पहले जब चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने फ़रमान जारी किया था कि सिर्फ़ एक बच्चा पैदा करने की अनुमति होगी तो इसके दुष्प्रभाव का अंदाज़ा नहीं था। इसके साथ चीन ने जीवन स्तर तो सुधारा, लेकिन इसने एक बड़ी समस्या खड़ी कर दी। इस क़ानून से चीन में लड़का पैदा करने के प्रति रुझान बढ़ गया है जिससे लड़कियों की भ्रूण हत्या भी बढ़ गई है।

ऐसा इसलिए है कि परंपरागत रूप से बेटों की चाह होती है और गर्भ में लड़की होने पर गर्भपात करा दिया जाता है। यह समस्या अब और उलझी हुई हो गई है। 

चीन की जनसंख्या क़रीब 1 अरब 40 करोड़ है। इसमें महिलाओं से 3 करोड़ 40 लाख पुरुष ज़्यादा हैं। इसका मतलब साफ़ है कि इतने पुरुषों को शादी के लिए दुल्हनें नहीं मिलेंगी।

वन चाइल्ड पॉलिसी का असर जनसंख्या पर भी पड़ा है। चीन में प्रति दंपति बच्चों का औसत 1.18 बच्चे हैं जो कि वैश्विक औसत 2.5 से काफ़ी कम है।

मगर अब वहाँ बूढ़े लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है और इस बुज़ुर्ग पीढ़ी को सहारा देने के लिए नौजवान आबादी की कमी हो रही है। जब स्थिति ख़राब होने लगी तो 2015 में वन चाइल्ड पॉलिसी को ख़त्म करने का फ़ैसला लिया गया और 2016 में उस क़ानून को ख़त्म कर दिया गया। चीनी अधिकारी क़रीब चार साल से कोशिश कर रहे हैं कि एक बच्चा की नीति के विनाशकारी असंतुलन को ख़त्म किया जाए और अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।

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इसके लिए उन्होंने दंपतियों से कहा है कि दो बच्चों को पालना उनकी देशभक्ति का कर्तव्य है। उन्होंने टैक्स ब्रेक और हाउसिंग सब्सिडी दी है। उन्होंने शिक्षा को सस्ता किया है और पैतृक अवकाश लंबा करने की पेशकश की है। उन्होंने गर्भपात या तलाक़ लेने के लिए इसे और अधिक कठिन बनाने की कोशिश की है। लेकिन यह उतना कारगर नहीं रहा है।

आज के जमाने की महिलाओं को अपने ख़ुद के करियर की चाह होती है। और इस तरह शादी और बच्चे के जन्म में देरी हो रही है। इससे चीजें आगे और भी जटिल हो जाती हैं।

अब ज़ाहिर है स्थिति ज़्यादा बिगड़ रही है तो नये तरीक़ों की खोज हो रही है। ऐसे में ही शंघाई में फुडन विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर ने महिलाओं के दो-दो पतियों का सुझाव दिया है।

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क़मर वहीद नक़वी

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