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पाकिस्तान: आसिया बीबी रिहा, ईशनिंदा में मौत की सज़ा रद्द

पाकिस्तान से एक अच्छी ख़बर है। आसिया बीबी की फांसी की सज़ा रद्द हो गई है और वह बरी कर दी गई हैं। पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने आसिया बीबी पर लगे ईशनिन्दा के आरोप को ख़ारिज कर दिया है। आसिया बीबी एक ईसाई महिला हैं। दो मुसलिम महिलाओं से उनका झगड़ा हो गया था, जिसके बाद इन महिलाओं ने आसिया पर पैग़म्बर मुहम्मद के बारे में अपशब्द बोलने का आरोप लगा दिया था।

खुश थे कट्टरपंथी

यह मामला जून 2009 का है। साल भर बाद नवम्बर 2010 में निचली अदालत ने आसिया को ईशनिन्दा का दोषी पाया और उन्हें फाँसी की सज़ा सुना दी। इस सज़ा के ख़िलाफ़ चौतरफ़ा आवाज़ उठी थी और वैटिकन समेत तमाम मानव अधिकार समूहों ने आसिया को फाँसी न दिए जाने की अपीलें की थीं। हालाँकि पाकिस्तान के कट्टरपंथी धार्मिक संगठनों ने आसिया को फाँसी की सज़ा का पुरज़ोर स्वागत किया था।

गवर्नर की हत्या

कट्टरपंथियों ने इस मामले में कैसा ख़ौफ़नाक माहौल बनाया था और लोगों के दिमाग़ में किस तरह ज़हर घोलने का काम किया था, इसका अन्दाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2011 में आसिया के समर्थन में आगे आए पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के गवर्नर सलमान तासीर की हत्या उनके ही सुरक्षाकर्मी मुमताज़ क़ादरी ने कर दी। बाद में मुमताज़ को इस जुर्म में 2016 में फाँसी दे दी गई।

विवाद कैसे शुरू हुआ?

आसिया के ख़िलाफ़ यह पूरा मामला एक मामूली से झगड़े से शुरू हुआ था। आसिया तीन और मुसलिम महिलाओं के साथ बाग़ में फल तोड़ने का काम कर रही थीं। इसी दौरान पानी की ज़रूरत पड़ी तो आसिया पानी ले आईं। लेकिन उन मुसलिम महिलाओं में से दो ने यह कहकर पानी पीने से इनकार कर दिया कि वे ईसाई के हाथ का पानी नहीं पिएँगी। इसी बात पर आसिया और उन महिलाओं में झगड़ा शुरू हो गया। बाद में वे महिलाएँ एक मौलवी के पास गईं और आसिया पर पैग़म्बर मुहम्मद के ख़िलाफ़ अपशब्द बोलने का आरोप दर्ज़ हो गया।
पाकिस्तान का ईशनिन्दा क़ानून काफ़ी विवादास्पद है और अकसर आपसी रंजिश या राजनीतिक कारणों से इस क़ानून का दुरुपयोग किया जाता है। यही नहीं, अकसर निचली अदालतों में ईशनिन्दा के मामलों में सज़ा सारे सबूतों और तथ्यों की परख किए बग़ैर ही सुना दी जाती है।
Punjab: Asia Bibi freed, capital punishment in blasphemy case quashed - Satya Hindi
पोप फ़्रान्सिस आसिया बीबी के परिजनों के साथwikimedia
इंटरनेशनल कमिशन ऑफ़ ज्यूरिस्ट्स ने 2015 में अपने एक अध्ययन में पाया था कि निचली अदालतों से सुनाई गई सज़ा के 80 फ़ीसदी मामले ऊपरी अदालतों में ख़ारिज हो जाते हैं क्योंकि ज़्यादातर मामलों में सबूत, गवाहियाँ और शिकायतें फ़र्ज़ी निकलती हैं। लेकिन इसके बावजूद कट्टरपंथियों के दबाव का यह हाल है कि कोई भी सरकार इस क़ानून में बदलाव या सुधार की हिम्मत नहीं कर पाती। आसिया के मामले में भी पाकिस्तान के एक कट्टरपंथी संगठन 'तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान' के नेता ख़ादिम हुसैन रिज़वी ने कुछ दिनों पहले धमकी दी थी कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने आसिया को बरी कर दिया तो वह देश भर में तूफ़ान खड़ा कर देंगे। इसी वजह से, आसिया को बरी किए जाने के फ़ैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट और जजों के आवास समेत इसलामाबाद में तमाम सरकारी प्रतिष्ठानों पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है।
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क़मर वहीद नक़वी

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