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क्या वह पुलिसवाला मुझे गोली मार सकता था? 

अमेरिका में इस समय चार रंगों के लोग बसते हैं। यूरोप से आकर बसने वाले गोरे जो अब बहुमत में हैं। अफ़्रीका से ग़ुलाम के रूप में लाए गए काले लोगों के वंशज जो अब ग़ुलामी से आज़ाद हैं और क़ानूनी तौर पर बराबरी का अधिकार पा चुके हैं, लेकिन आर्थिक तौर पर बहुत पिछड़े हैं। इसके बाद आते हैं ब्राउन या भूरी चमड़ी वाले लोग। इसमें कई जातीय समूह और राष्ट्रीयता वाले लोग शामिल हैं। एक तरफ़ भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रवासी हैं तो दूसरी तरफ़ मध्यपूर्व के देशों के लोग जिन्हें बहुत सारे गोरे अमेरिकी आतंकवाद से जोड़ कर देखते हैं।
शैलेश
मेरी आँखें खुल नहीं पा रही थीं। नींद इतनी गहरी थी कि कुछ भी समझ पाना मुश्किल था। एरिज़ोना के ग्रैंड कनियन में दिन भर घूमने के बाद शाम को थकान मिटाने के नाम पर हमने थोड़ी व्हिस्की पी, डट कर खाना खाया। खुले आसमान में तारों की बारात देखते देखते कब नींद के आग़ोश में चले गए पता ही नहीं चला। 

बीच रात किसी ने मुझे ज़बरदस्ती जगाया। बड़ी मुश्किल से हल्की सी नींद खुली तो मेरे सामने अजीब नज़ारा था। सामने तीन पुलिस वाले खड़े थे। मेरे हाथों को पीछे करके हथकड़ी लगा दी गई थी। किसी तरह नींद क़ाबू में करके मैं थोड़ा जगा तो पुलिस अफ़सर ने पूछा कि क्या मैंने शराब पी है। मैंने बड़ी मुश्किल से जवाब दिया -’हाँ’। पुलिस अफ़सर ने दूसरा सवाल पूछा कि क्या मैं फ़ुटपाथ पर सो रहा था। मैंने फिर जवाब दिया -’हाँ’। इसके बाद पुलिस अफ़सर ने अपने जूनियर से मेरी हथकड़ी खोलने के लिए कहा।
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मेरी बेटी जाग चुकी थी और पास में ही खड़ी थी। उसने मुझसे अपने मच्छरदानी नुमा टेन्ट में जाकर सोने के लिए कहा। उस रात हमारी कोई और बात नहीं हुई।  

यह घटना 2017 की है। मैं पहली बार अमेरिका गया था अपनी बेटी और दामाद से मिलने एरिज़ोना राज्य के बहुत छोटे से लेकिन बेहद ख़ूबसूरत शहर फ़्लैग स्टाफ़ में। एक दिन हम मशहूर झील ग्रैंड कनियन में नौका बिहार के लिए पहुँचे। दिन भर ग्रैंड कनियन में गुज़ारने के बाद रात बिताने के लिए हम लेक पावेल मरीना पार्क के कैंपिंग क्षेत्र में रुके।
अमेरिका में शहरों के बाहरी इलाक़ों में जगह- जगह कैंपिंग पार्क बने हुए हैं। इन पार्कों में टेंट लगाने की जगहें बनी है। हर कैंप एरिया में खाना बनाने के लिए पत्थर या लकड़ी के टेबल होते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात कि हर कैम्प साइड में साफ़ सुथरे बाथरूम और शौचालय भी हैं। 

अमेरिकी सरकार के नेशनल पार्क सर्विस द्वारा संचालित इस पार्क में ठहरने की फ़ीस उस समय 25 डॉलर प्रति रात थी। वैसे कुछ कैंप साइड फ़्री भी होते है। आम तौर पर लोग सप्ताह के अंत यानी शुक्रवार या शनिवार को परिवार या दोस्तों के साथ कैम्प साइड में पहुँचते हैं और खुले आसमान के नीचे टेन्टों में रात गुज़ारते हैं। 

उस रात हम भी इसी इरादे से वहाँ पहुँचे। वहीं रात का खाना बना। क़रीब दस बजे हमारी पार्टी ख़त्म हुई। मेरी बेटी, दामाद और मेरी पत्नी अपने-अपने टेन्ट में सोने चले गए। टेन्ट क्या वह एक मच्छरदानी की तरह था। मैं अपने टेन्ट से बहुत देर तक आसमान में ताकता रहा। आसमान साफ़ था। तारे जगमगा रहे थे। एक तरफ़ सप्तर्षि की महफ़िल सजी थी। ऐसा आसमान दिल्ली में देखने का मौक़ा नहीं मिलता। कभी कभी गाँव जाता हूँ तो यह नज़ारा देखने का मौक़ा मिल जाता है। मेरा टेन्ट एक पेड़ के नीचे था। पूरा नज़ारा देखने के रास्ते में टेन्ट, पेड़ की डालें और पत्तियाँ रुकावट बन रही थीं। मैं टेन्ट से निकल कर थोड़ी देर आसमान के नज़ारे देखने के लिए पास के फ़ुटपाथ पर लेट गया। कब गहरी नींद आ गई पता ही नहीं चला। फिर उस रात जो हुआ वो मैं पहले ही बता चुका हूँ। 

अगले दिन मेरी बेटी मुझसे बहुत नाराज़ थी। उसने मुझे बताया कि कैंप साइड में फ़ुटपाथ पर नहीं सोया जा सकता। मुझे फ़ुटपाथ पर सोया देख कर एक महिला ने पुलिस को फ़ोन करके शिकायत की कि एक संदेहात्मक अश्वेत आदमी फ़ुटपाथ पर सो रहा है। पुलिस ने मेरी बेटी को बताया कि वह महिला मुझे वहाँ देख कर डर गई थीं। इसलिए पुलिस को बुला लिया। मेरी बेटी ने कहा कि पुलिस अफ़सर अश्वेत था, इसलिए मैं बच गया। कोई गोरा होता तो गोली भी मार सकता था। 

 उसने मुझे बताया कि मैं इतनी गहरी नींद में था कि पुलिस वालों के जगाने पर भी जाग नहीं पा रहा था। पुलिस की आवाज़ सुनकर मेरी बेटी ज़रूर जाग गयी। फ़ुटपाथ पर मुझे देख कर उसे भी आश्चर्य हुआ। मुझे तो अपने टेन्ट में होना चाहिए था। उसने मेरे जागने से पहले ही पुलिस को मेरे बारे में बता दिया था। उसने यह भी बता दिया था कि मेरे पास टेन्ट है। शायद ग़लती से मैं फ़ुटपाथ पर सो गया।  

इसके बाद भी दो गोरे पुलिस वाले मुझसे बहुत बेरहमी से पेश आ रहे थे। एक तो मेरे ख़िलाफ़ कुछ करने के लिए उतारू दिख रहा था। लेकिन काले पुलिसवाले ने उन्हें समझकर मुझसे दूर भेज दिया। उसने मुझसे ज़्यादा पूछताछ नहीं की। वे मुझे आज़ाद करके चले गए। मैं अपने टेन्ट में जाकर सो गया। 
लेकिन यह सवाल मेरे मन में बना रहा कि जिस महिला ने पुलिस से शिकायत की वह मुझसे क्यों डरी? मेरी तो उससे या किसी और व्यक्ति से कोई बात भी नहीं हुई थी। 
मेरे पास कोई हथियार नहीं था। मैं गहरी नींद में था, इसलिए मैं किसी का क्या बिगाड़ सकता था। क्या वह मेरे रंग से डर गई थी? यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब रंगभेद से ग्रसित गोरे अमेरिकियों की मानसिकता को सामने लाता है।

बँटा हुआ अमेरिकी समाज

अमेरिका में इस समय चार रंगों के लोग बसते हैं। यूरोप से आकर बसने वाले गोरे जो अब बहुमत में हैं। अफ़्रीका से ग़ुलाम के रूप में लाए गए काले लोगों के वंशज जो अब ग़ुलामी से आज़ाद हैं और क़ानूनी तौर पर बराबरी का अधिकार पा चुके हैं, लेकिन आर्थिक तौर पर बहुत पिछड़े हैं।  इसके बाद आते हैं ब्राउन या भूरी चमड़ी वाले लोग। इसमें कई जातीय समूह और राष्ट्रीयता वाले लोग शामिल हैं।
एक तरफ़ भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के प्रवासी हैं तो दूसरी तरफ़ मध्यपूर्व के देशों के लोग जिन्हें बहुत सारे गोरे अमेरिकी आतंकवाद से जोड़ कर देखते हैं।
भूरी चमड़ी वाली श्रेणी में ही मेक्सिको, मध्य और दक्षिण अमेरिका के लोग भी हैं, जिनके ख़िलाफ़ अमेरिका में लगातार अभियान चलाया जा रहा है। चीन और उसके आसपास से आए पीले लोग भी हैं, जो आसानी से पहचान में आ जाते हैं।

कई बार रंगभेद से ग्रस्त गोरे अमेरिकी लोग भारतीय और दूसरे लोगों में भी फ़र्क़ नहीं करते। उन्हें सिखों की पगड़ी और दाढ़ी तथा मध्य पूर्व के लोगों की पगड़ी और दाढ़ी में भी फ़र्क़ नज़र नहीं आता। इसलिए सिखों को अपनी अलग पहचान बताने के लिए अभियान चलाना पड़ता है। 

संस्थागत नस्लवाद

भूरी चमड़ी को आतंकवाद से जोड़ कर देखा जाता है। यही डर का सबसे बड़ा कारण है। भूरी चमड़ी से नफ़रत का जन्म यहीं से होता है। रंगभेद या जातीय नफ़रत यहाँ सुनियोजित ढंग से कई दशकों से चल रहा है। अमेरिका में गृहयुद्ध के बाद जब सबको समान अधिकार मिल गया और ग़ुलामी की प्रथा ख़त्म करके काले ग़ुलामों को आज़ाद कर दिया गया, तब कई राज्यों ने पूँजी निवेश के नाम पर वांछित और अवांछित इलाक़ों की पहचान शुरू की।
काले लोगों की आबादी वाले इलाक़ों को लाल रेखाओं में दर्ज किया गया। इन इलाक़ों में न तो पूँजी निवेश हुआ, न अच्छी शिक्षा की व्यवस्था हुई और न काले लोगों को रोज़गार का समान अवसर मिला।

अशिक्षा, ग़रीबी

अमेरिका में सरकारी स्कूल प्रॉपर्टी टैक्स या सम्पत्ति टैक्स से चलते हैं। काले लोगों के इलाक़े में व्यावसायिक गतिविधियाँ बहुत कम हैं, इसलिए उन इलाक़ों के स्कूलों को बहुत कम पैसा मिलता है। उनके इलाक़ों के स्कूलों हालत ख़राब है। बच्चों को ये स्कूल हतोत्साहित ही करते हैं। इस तरह भेदभाव की शुरुआत बचपन से ही हो जाती है। जातीय भेदभाव को कोई नेता या संगठन नहीं चलाता बल्कि वो एक सिस्टम का रूप ले चुका है। 

बहुत कम काले लोग कॉलेज तक पहुँच पाते हैं। जो कुछ काले कॉलेज की शिक्षा पूरी कर लेते हैं, उन्हें भी अच्छी नौकरी नहीं मिलती। शिक्षा, नौकरी यहाँ तक कि क़र्ज़ देने के मामले में भी कालों की उपेक्षा की जाती है। नस्लवादी गोरे आपने को श्रेष्ठ जाति का मानते हैं। काले लोग उनके लिए कमतर हैं। 

मई 2020 में अफ़्रीकी मूल के अमेरिकन, जॉर्ज फ़्लायड को मिनियापोलिस शहर में एक गोरे पुलिसवाले ने पैरों के नीचे दबाकर मार डाला तो मुझे लगा कि मेरी बेटी ने ठीक ही कहा था। 
मुझे हथकड़ी पहननेवाला पुलिस अधिकारी अगर गोरा होता तो मुझको गोली मार सकता था। जॉर्ज फ़्लायड की ग़लती क्या थी? यही न कि एक स्टोर के मालिक ने आरोप  लगाया था कि वो 20 डॉलर का एक नक़ली नोट चलाने की कोशिश कर रहा था। गोरे पुलिस वाले ने उसे पकड़ते ही ज़मीन पर लिटा दिया और उसके गले पर अपना घुटना रख कर ज़ोर से दबाना शुरू किया। फ्लॉयड चिल्लाता रहा कि उसका दम घुट रहा है। लेकिन पुलिस वालों ने उस पर रहम नहीं की।
क्या यह ऐसा जुर्म है जिसकी सज़ा मौत है? अफ़्रीकी मूल के लोगों के साथ आतंकवाद का लेवल नहीं लगा है। पर भूरी चमड़ी के कारण मुझे आतंकवादी भी माना जा सकता था। 

मूल अमेरिकी

ब्लैक या काले अमेरिकियों से संघर्ष के पहले यूरोप से आए गोरों को नेटिव अमेरिकन या रेड इंडियन से युद्ध लड़ना पड़ा था। उसकी छाप भी गोरे नस्लवादी अमेरिकियों पर दिखाई देता है। रेड इंडियन या नेटिव अमेरिकियों का एक बड़ा गढ़ था एरिज़ोना। नेटिव अमेरिकियों के एक कमांडर जेरोनिमो अपाचे ने एरिज़ोना और न्यू मेक्सिको इलाक़े में अमेरिकी फ़ौज के साथ लंबे समय तक युद्ध किया था। अमेरिकी फ़ौजी उसके डर से काँपते थे। उसने नेटिव अमेरिकियों के तीन कबीलों को एक करके एक बड़ा छापामार दस्ता तैयार किया था। वे जंगलों में छिप कर रहते थे। और अमेरिकी फ़ौज पर अचानक हमला करते थे।
2011 में उसका नाम तब चर्चा में आया जब अल क़ायदा आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद कुछ अमेरिकी अख़बारों ने छापा कि इस ऑपरेशन में ओसामा को ‘जेरोनिमो’ कोड नाम दिया गया था। बाद में अमेरिकी सरकार ने इसे ग़लत बताया।

नेटिव अमेरिकी और अफ़्रीकी मूल के लोग अपने अधिकारों और बराबरी के लिए लड़ते तो हैं, लेकिन उनमें व्हाइट या गोरे अमेरिकियों के ख़िलाफ़ जातीय भेदभाव दिखाई नहीं देता।
कुछ अमेरिकियों में रंगभेद का ज़हर पीढ़ी दर पीढ़ी दौर रहा है।  हालाँकि व्हाइट अमेरिकियों का एक बड़ा हिस्सा रंगभेद के ख़िलाफ़ भी  है। इसलिए मई/जून 2020 में जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के बाद जो आंदोलन खड़ा हुआ उसमें व्हाइट अमेरिकियों ने भी जम कर हिस्सा लिया और सरकार को दोषी पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कारवाई के साथ साथ क़ानून में बदलाव के लिए मजबूर किया। रंगभेद विरोधी चेतना बढ़ने के बावजूद अमेरिका को इससे बाहर निकलने के लिए गंभीर संघर्ष  करना पड़ेगा।  

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