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क्या श्रीलंका के क़त्लेआम का गुनहगार आईएस है?

 श्रीलंका में तीन गिरजाघरों और दो होटलों में सिलसिलेवार ढंग से हुए 8 धमाकों में 300 से ज़्यादा लोगों के मारे जाने के बाद यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इन हमलों को अंजाम देने वाले लोग कौन हैं? इसलामिक स्टेट यानी आईएस ने इसकी ज़िम्मेदारी लेकर सबको चौंका दिया है। इस आतंकवादी संगठन ने अपनी पत्रिका अमक़ में यह दावा किया है कि कोलंबो और श्रीलंका के दूसरे शहरों में चर्चों और होटलों पर धमाके इसके लोगों ने किए हैं। 
पहली नज़र में ऐसा लगता है कि आईएस का यह दावा सही भी हो सकता है। आख़िर जिस तरीके से हमले किए गए, वह आईएस का सिग्नेचर ट्यून जैसा है। यानी, धमाकों की प्रक्रिया, निशाना चुनने की मानसिकता, हमले में इस्तेमाल किए हुए हथियार वैसे ही हैं, जैसे आईएस के अब तक होते आए हैं। दूसरी बात यह भी है कि इतना बड़ा धमाका करने के लिए जिस कार्य योजना, कुशलता, सुविधाएँ और लोग चाहिए, वह किसी बहुत बड़े आतंकवादी संगठन के पास ही होते हैं। 
श्रीलंका सरकार ने यह वीडियो जारी किया है, जिसमें एक युवक पीठ पर बैग लटकाए हुए उस चर्च की ओर बढ़ता दिख रहा है, जहाँ इसके कुछ मिनट बाद ही धमाका हो गया। लेकिन इससे यह साबित नहीं होता है कि वह आदमी आईएस का ही है या आईएस से किसी तरह जुड़ा हुआ है। 
इसके साथ ही कई सवाल खड़े होते हैं। क्या आईएस अब उस लायक है कि वह इतना बड़ा विस्फोट कर सकता है और वह भी एक ऐसे देश में जो उसके मूल आधार से बहुत ही दूर है और बिल्कुल दूसरे तरह का समाज है। किसी समय पूरा सीरिया और इराक़ के बहुत बड़े हिस्से पर क़ब्जा रखने वाला आईएस आज बुरे हाल में है। अमेरिका, इराक़ी सेना, पशमरगा संगठन और क़ुर्द लड़ाकों ने लंबी और संगठित लड़ाई कर इस आतंकवादी संगठन को लगभग नेस्तनाबूद कर दिया है। उसके हिस्से से तमाम इलाक़े छीने जा चुके है, उसके लड़ाके मारे जा चुके है। पूरा संगठन बिखर चुका है। ऐसे में यह मुमकिन नहीं लगता है कि वह इतना बड़ा हमला श्रीलंका में कर सकता है। 
इसलामिक स्टेट इस स्थिति में नहीं है कि श्रीलंका में कुछ कर सके। उसकी यह स्थिति तो बिल्कुल नहीं है कि अपनी जड़ों से दूर किसी दूसरे देश में हमला करे, इतने बड़े हमले का तो कोई सवाल ही नहीं उठता है।

तमिल अलगाववादी?

अलग तमिल राज्य के लिए कई दशकों तक चला आन्दोलन 2009 में ख़त्म हो गया। यह गृह युद्ध लिबरेशन आफ़ तमिल टाइगर्स ऑफ़ ईलम यानी एलटीटीई के ख़ात्मे के साथ ही ख़त्म हो गया। ऐसे में तमिल आंदोलन से जुड़ा कोई संगठन या व्यक्ति यह काम कर सके, इसकी संभावना नहीं है। तमिल आंदोलन के बचे खुचे अवशेष के बाहर निकलने या अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए की गई कार्रवाई की भी कोई संभावना नहीं है। श्रीलंका की सरकार और दूसरे जानकार लोगों ने इन संभावनाओं को पूरी तरह खारिज कर दिया है।
तमिल टाइगर्स के हमलों का तरीका वह नहीं था, जो इस हमले में अपनाया गया। लिट्टे ने कभी भी सांप्रदायिक वजहों से कोई हमला नहीं किया, ईसाई उनके निशाने पर कभी नहीं रहे।

तौफ़ीक जमात पर शक

शक की सुई नेशनल तौफ़ीक जमात की ओर घूमती है। हालाँकि जमात ने भी इससे इनकार किया है। जमात एक बहुत ही छोटा इसलामी संगठन है, जिसकी चर्चा इसलिए होती है कि वह कट्टर इसलामी विचारों के प्रचार-प्रसार में लगा रहता है। उसने कहीं कोई बड़ा हमला किया हो, इसका रिकार्ड नहीं है। लेकिन इसके लोगों ने पिछले साल बट्टीकलोआ में बुद्ध की मूर्तियों के साथ तोड़फोड़ की थी और उन पर कालिख पोत दी थी। ईस्टर रविवार को बट्टीकलोआ में भी गिरजाघर को निशाना बनाया गया था।
भारत में इसी नाम से मिलते जुलते नाम का एक इसलामी संगठन है। उसका नाम है तमिलनाडु तौवीद जमात। यह ख़ुद को ग़ैर-राजनीतिक शांति प्रिय इसलामी संगठन बताता है, जिसका हिंसा या कट्टरता से कोई मतलब नहीं है। रविवार के हमलों के बाद उसने साफ़ किया कि इसका श्रीलंका के नेशनल तौफ़ीक जमात से किसी तरह का कोई रिश्ता नहीं है।

विदेशी हाथ?

हमलों के दो हफ़्ते पहले ख़ुफ़िया एजेन्सियों ने यह जानकारी दी थी कि जमात कोई बड़ी वारदात कर ईसाइयों को निशाने पर ले सकता है। स्वास्थ्य मंत्री और सरकार के प्रवक्ता रजित सेनारत्ने ने कहा कि यह हमला देश के कुछ लोगों की कारस्तानी नहीं हो सकती है। इसमें विदेशी ताक़तों का हाथ है क्योंकि इतना बड़ा हमला बाहरी मदद के बग़ैर नहीं हो सकता।
तो फिर ये हमले किसने करवाए, यह सवाल उठना स्वाभाविक है। हमले जिस तरह से किए गए, उससे यह कहा जा सकता है कि ये हमले ठीक वैसे ही हो रहे हैं, जैसा इसलामी गुट करते हैं। पहले से तय जगहों पर विस्फोटक लगा दिए गए, बहुत ही सुनियोजित तरीके से एक के बाद एक विस्फोट होते चले गए। विस्फोट भीड़ भरी जगहों पर कराए गए और एक समुदाय विशेष के लोगों को निशाना बनाया गया। यह हमला भी ऐसे किया गया कि ठीक उत्सव के समय और खुशियाँ मनाते लोगों को निशाने पर लिया गया।

पाकिस्तानी गुट का काम?

पाकिस्तान के आतंकवादी गुटों की ओर भी शक की सूई घूमती है, क्योंकि उनके हमले भी इसी तरह के होते हैं, उनका तरीका भी यही होता है। पाकिस्तान में जिस तरह ईसाइयों को निशाने पर लिया जाता रहा है, उससे यह शक पुख़्ता भी होने लगता है।
पाकिस्तान के भारत विरोधी गुटों को सरकार, सेना और आईएसआई का परोक्ष समर्थन मिलता रहता है क्योंकि यह पाकिस्तान की विदेश नीति का हिस्सा माना जाता है। लेकिन श्रीलंका के साथ पाकिस्तान के मधुर रिश्ते हैं। इस्लामाबाद ने 2009 के गृह युद्ध के समय श्रीलंका की मदद की थी। यह तो साफ़ है कि पाकिस्तानी प्रतिष्ठान किसी गुट को श्रीलंका में गड़बड़ी करने की अनुमति नहीं देगा। लेकिन कोई गुट सरकार से अलग हट कर कार्रवाई करे तो उसे रोकना भी पाकिस्तानी सरकार के लिए कठिन है। 
पाकिस्तान में कई गुट हैं जो सरकार को ही निशाना बनाते रहे हैं और इसलामाबाद उसे रोकने में नाकाम रहा है। ऐसे किसी गुट ने सैद्धांतिक कारणों से या ईसाइयों को मजा चखाने की नीयत से यह हमला किया हो, इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
लगभग 10 साल तक अमन चैन का माहौल बने रहने के बाद श्रीलंका में एक बड़ी वारदात से चिंता और डर का वातावरण बनना स्वाभाविक है। यह हिंसा पिछली हिंसा से अलग है। श्रीलंका में पहले की हिंसा मुख्य रूप से राजनीतिक कारणों से होती थी, जिसका लक्ष्य सरकार और सेना हुआ करती थी। वह अलगाववादी आंदोलन का हिस्सा था। लेकिन हालिया धमाकों से लगता है कि यह सांप्रदायिक कारणों से की गई हिंसा है, जिसके निशाने पर ईसाई समुदाय के लोग थे। यदि इस तरह की हिंसक वारदात और हुई तो एक नए ट्रेंड की शुरुआत होगी। उसे रोकना श्रीलंका के लिए मुश्किल होगा। इसलिए सरकार के सामने यह बड़ी चुनौती है कि वह सबसे पहले पता लगाए कि किसने यह काम किया है। इसके बाद ही वह हमलावरों का पता लगा पाएगी या इस तरह की वारदात रोकने की योजना बना पाएगी। 
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क़मर वहीद नक़वी

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