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भारत से जुड़े हैं श्रीलंका में हुए आईएस हमलों के तार?

श्रीलंंका के गिरजाघरों और होटलों पर ईस्टर रविवार को हुए धमाकों के तार भारत से जुड़ रहे हैं। इन धमाकों की ज़िम्मेदारी इसलामिक स्टेट ने ली तो लोगों को यकीन नहीं हुआ, क्योंकि इराक़ और सीरिया में यह संगठन बुरी तरह बिखर चुका है, इसके सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं और हज़ारों भाग कर यहाँ वहाँ छिप रहे हैं, गुपचुप शरण तलाश रहे हैं। ऐसे में इसलामिक स्टेट की दावेदारी से लगा कि वह सिर्फ़ मौके का फ़ायदा उठा कर अपना प्रचार चाहता है। लेकिन बाद की घटनाओं और जाँच से पता चला कि इसलामिक स्टेट इस वारदात के पीछे हो सकता है। इसके भी साक्ष्य मिलने लगे कि भारत में मौजूद उसके लोगों का हाथ श्रीलंका के हमलों में है। वे इस वारदात से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हुए हैं।
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भारत के केरल और तमिलनाडु में मौजूद आईएस कार्यकर्ताओं की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी यानी नेशनल इनवेस्टीगेशन एजेन्सी (एनआईए) ने  रियाज़ अबू बक़र को आईएस से जुड़े होने के आरोप में केरल के कोच्ची से गिरफ़्तार किया तो लोगों का चौंकना स्वाभाविक था। केरल के पलक्काड ज़िले के कमब्रथचाला गाँव के रहने वाले रियाज़ के पिता बेटे की कारस्तानी और उस पर लगे आरोपों से बुरी तरह हिले हुए हैं।

यदि रियाज़ आतंकवादी है, तो पूरी ज़िन्दगी जेल में सड़ता रहे। हम उससे न किसी तरह का कोई सम्बन्ध रखेंगे न ही उसे किसी तरह की मदद करेंगे।


रियाज़ अबू बक़र के पिता

'ख़ुदकुश हमलावर बनना चाहता था'

इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के मुताबिक़, एनआईए ने आरोप लगाया है कि रियाज़ श्रीलंका धमाकों के मास्टरमाइन्ड समझे जाने वाले ज़हरान हाशिम के भाषणों और तक़रीरों के वीडियो को नियमित तौर पर सुना करता था। उस पर यह आरोप भी है कि वह श्रीलंका में आत्मघाती हमला करना चाहता था। एनआईए का यह भी मानना है कि 2016 में इसलामिक स्टेट से जुड़ने के लिए अफ़ग़ानिस्तान जाने वाले 22 लोगों की टीम के संपर्क में भी रियाज़ था और उन लोगों के साथ वह भी जाना चाहता था। उसने हाल फ़िलहाल फ़ेसबुक पर अपना नाम बदल कर ‘अबू दुज़ानी’ कर लिया था।

रियाज़ के पिता ने मीडिया से कहा, ‘मैं जानता था कि वह ग़लत रास्ते पर चल रहा है। पर मुझे यह आशंका नहीं थी कि वह इसलामिक स्टेट से रिश्ते की वजह से गिरफ़्तार किया जाएगा।’
रियास के बहनोई कज़ा ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘जब 2016 में ईसाई से मुसलमान बने ईसा और याहिया आईएस में शामिल होने के लिए देश छोड़ने वाले लोगों के समूह में शामिल हुए, रियाज़ ने कहा था कि वह उन लोगों को जानता है। बाद में जब उनकी तसवीरें सामने आई तो रियाज़ ने कहा कि उन लोगों से उसकी मुलाक़ात एक मसजिद में हुई थी।’

बाद के दिनों में रियाज़ ने फ़िल्मे देखनी बंद कर दी, गाना सुनना छोड़ दिया और लंबी दाढ़ी रखने लगा। वह चुपचाप, गुमशुम रहने लगा। हाल के दिनों में उसने आम के बगीचे में काम करने और अपने पिता की मदद करने से इनकार कर दिया था।

तौहीद प्रचारकों की भूमिका

लेकिन मामला सिर्फ़ एक रियाज़ अबू बक़र का नहीं है। इसलामिक स्टेट के तार दक्षिण भारत के दूसरे राज्यों से भी जुड़े हुए हैं। इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर के अनुसार, श्रीलंका के दो मुसलिम प्रचारक कुछ साल पहले श्रीलंका गए थे और उन्होंने वहाँ इसलाम के कट्टर और पुरानपंथी स्वरूप पर भाषण देने और उसका प्रचार करने की कोशिश की थी। पर स्थानीय लोगों ने इसका ज़बरदस्त विरोध यह कह कर किया कि इससे समुदायों के बीच मतभेद बढ़ेगा। उन प्रचारकों को वापस लौटना पड़ा।
तमिलनाडु तौहीद जमात के पी. जैनुलआबेदीन के ख़िलाफ़ श्रीलंका के ऑल सीलोन जमीअत उलेमा ने यह कह कर शिकायत की कि उनके भाषणों से देश के मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा हो रहा है। इसके बाद आबेदीन को भारत भेज दिया गया।
उसके बाद जैनुलआबेदीन ने 2008 और उसके बाद 2015 में भी श्रलंका जाने की कोशिश की, पर उन्हें इसके लिए वीज़ा नहीं मिला।

इसी तरह एक और तौहीद प्रचारक कोवई अयूब भी श्रीलंका गए। वह कोयंबटूर के रहने वाले थे और जमीअत उल क़ुरान अल हदीथ से जुड़े हुए थे। श्रीलंका के धार्मिक मामलों के मंत्रालय की शिकायत पर 2009 में वहाँ की पुलिस ने उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की।

Sri Lanka Islamic State terror attack linked to India - Satya Hindi
ईस्टर रविवार के धमाकों के तमिलनाडु तौहीद जमात की ओर अंगुलियाँ उठीं, क्योंकि इनकी छवि बवाल करने वाले धार्मिक संगठन के रूप में ही है।

श्रीलंकाई मुसलमानों का विरोध

पी. जैनुलआबेदीन यानी पी.जे. सबसे पहले 2006 में अपने सहयोगी एस. एम .बकर के साथ श्रीलंका गए और यह दावा किया कि वे वहाँ कुछ लोगों के बुलावे पर इसलाम के प्रचार प्रसार के लिए गए हुए हैं। वह देश के पूर्वी हिस्से कट्टनकुडी और पूर्वोत्तर पुत्तलम समेत कम से कम 7 जगहों पर गए। वह कोलंबो में भी रहे और तक़रीरें कीं। बाद में जब ऑल सीलोन जमीअत उलेमा ने विरोध किया तो पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर अगली उड़ान से भारत भेज दिया। ‘पी. जे.’ का यह भी कहना है कि श्रीलंका तौहीद जमात ने 2008 में ही न्योता दिया था। उन्हें वीज़ा नहीं दिया गया।
2008 के गृह युद्ध के ठीक पहले अम्पारा ज़िले के कलमुनई में एक कार्यक्रम में भाग लेने बक़र पहुँचे, पर स्थानीय लोगों और मुसलिम संगठनों की शिकायत पर उन्हें पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया।
इसके बाद 2015 में क़ुरान का सिंहल अनुवाद सुगतदास स्टेडियम में पेश किया गया। लेकिन बक़र को इस बार भी वीज़ा नहीं मिला।

श्रीलंका में उदार इसलाम मानने वाले लोग हैं। वे कट्टरता के ख़िलाफ़ हैं। लेकिन सऊदी अरब से निकले सलाफ़ी इसलाम के प्रचार प्रसार के बाद इस धारा को मानने वाले श्रीलंका में अपनी पैठ बनाने की फ़िराक़ में है। श्रीलंका के आम मुसलमान इसके ख़िलाफ़ हैं और वे नहीं चाहते कि कट्टर इसलाम का बोलवाला वहाँ हो।

इससे यह तो साफ़ है कि श्रीलंका के विस्फोट के तार भारत में मौजूद तौहीद इसलाम का प्रचार करने वालों से जुड़े हुए हैं। ईस्टर रविवार के धमाकों के बाद वहाँ की सरकार ने कहा था कि इस धमाके में विदेशी ताक़तों का हाथ है क्योंकि इतना बड़ा धमाका स्थानीय लोग नहीं कर सकते। यह भारत के लिए चिंता की बात है।

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क़मर वहीद नक़वी

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