अमेरिका को लैंड ऑफ़ ऑपरचुनिटी और मेल्टिंग पॉट जैसे विशेषणों से नवाज़ा जाता रहा है लेकिन इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक में इस देश में आकर मेरी पहली छवि यही बनी कि अमेरिका मूल रूप से पूंजी का देश है। यहाँ सबकुछ पैसा है जहाँ दो तरह के लोग हैं। एक जिनके पास पैसा है और दूसरा जो चाहता है कि उसके पास भी पैसा हो। हो सकता है कि यह कहना अतिशयोक्ति हो लेकिन ज़्यादातर अमेरिकी इस आशा में जीते हैं कि वो किसी भी दिन लखपति या करोड़पति हो सकते हैं। ऐसी सोच का कारण भी है कि इस देश में कई बार ऐसा हुआ है कि लोगों ने अपने घरों में कोई छोटा सा उत्पाद बनाया जो आगे चलकर करोड़ों डॉलर की कमाई दे गया।
अगर पूंजी को ही अंतिम सत्य मानें और राष्ट्रपति चुनावों को देखें तो एक अनुमान लगाया जा सकता है कि कौन सा उम्मीदवार लोगों से कितने पैसे जुटा रहा है और क्या ज़्यादा पैसे जुटाना किसी उम्मीदवार की जीत की तरफ़ इशारा करता है।
अगस्त के अंत तक डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडेन ने चुनाव फ़ंडिंग में 699 मिलियन डॉलर जुटाए हैं जबकि डोनल्ड ट्रंप ने क़रीब सवा अरब डॉलर। हालाँकि ये ध्यान देने वाली बात है कि ट्रंप को राष्ट्रपति पद पर रहने के कारण ज़्यादा पैसा मिलने की संभावना पहले से ही थी। इस बड़ी पूंजी में जो ध्यान देने वाली बात है वो है अगस्त के फ़ंडिंग के आँकड़े।
‘न्यूयार्क टाइम्स’ की मानें तो जो बाइडेन के कुल 699 मिलियन डॉलर में 300 मिलियन डॉलर सिर्फ़ अगस्त महीने में जमा हुए हैं जो ये संकेत देता है कि बाइडेन की लोकप्रियता वोटरों में बढ़ी है। फ़ंडिंग के बारे में जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि इस रक़म में ज़्यादातर फंड अमेरिकी जनता ने किया है और छोटी-छोटी रकम दी है न कि कोई बड़ी कंपनी जिसने बड़ी रक़म दी हो। इसे एक संकेत माना जा सकता है कि बाइडेन कड़ी टक्कर दे रहे हैं।
अगस्त महीने के आँकड़े अगर राष्ट्रपति ट्रंप के लिए देखें तो वो बाइडेन से पीछे हैं। अगस्त के महीने में रिपब्लिकन्स ने कुल 210 मिलियन डॉलर की राशि जमा की है जो कि बाइडेन के फ़ंड से काफ़ी कम है लेकिन पूर्व के आँकड़ों से देखा जाए तो ये काफ़ी अधिक है। एनपीआर की मानें तो जब ओबामा दूसरी बार राष्ट्रपति के तौर पर चुनावी मैदान में थे तो उन्होंने जितनी रक़म जुटाई थी उससे 45 मिलियन डॉलर अधिक है।
चुनाव फ़ंडिंग में कम पैसे आने का सीधा मतलब चुनाव प्रचार पर असर पड़ना है क्योंकि पैसे कम होंगे तो पार्टियों को अख़बारों में, रेडियो पर, टीवी में और कई अन्य स्थानों पर विज्ञापन देने में दिक्कत होगी।
यही कारण था कि अगस्त के महीने में रिपब्लिकन पार्टी और ट्रंप की तरफ़ से रेडियो पर काफ़ी कम प्रचार किया गया। विश्लेषक मान रहे हैं कि रिपब्लिकन पार्टी के पास पैसों की कमी पड़ रही है। ट्रंप ने भी कहा है कि अगर ज़रूरत पड़ी तो वो चुनाव प्रचार में अपना पैसा भी लगा सकते हैं।
इन सबमें एक अहम बात यह भी है, जो अमेरिकी मीडिया कह रहा है कि चुनाव से कुछ हफ्ते पहले एक राष्ट्रपति जो अपनी वित्तीय समझ का ढिंढोरा पीटता रहा है, उसके पास चुनाव के फ़ंड अपने विरोधी से कम हैं जो बहुत कुछ कह रहा है चुनाव के बारे में।
अब अगले दो महीने अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए सबसे अहम हैं। और जिसके पास जितना फ़ंड होगा वो ये फ़ंड चुनाव प्रचार में उतना ही अधिक डालेगा। पूर्व के अभियानों में चुनाव फ़ंड का ज़्यादातर हिस्सा टीवी प्रचार में जाता था यानी कि दोनों उम्मीदवार टीवी पर ढेर सारे विज्ञापन दिया करते थे। ओबामा के चुनाव के दौरान सोशल मीडिया का उद्भव हुआ और अब सोशल मीडिया पर भी ठीक ठाक पैसा लगाया जा रहा है।
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अमेरिका के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव एक महामारी के समय में हो रहे हैं। ज़ाहिर है कि लोग बाहर कम निकल रहे हैं और चुनाव प्रचार में कम जा रहे हैं।
ऐसे में पार्टियाँ अपना अधिक से अधिक पैसा टीवी की बजाय सोशल मीडिया पर लगा रही हैं ताकि लोगों तक पहुँचा जा सके।
फ़िलहाल इस समय अगर सारे चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों का औसत निकाला जाए इस बाबत कि अगर आज चुनाव हुए तो लोग किसे वोट देंगे तो बाइडेन के पक्ष में 51% लोग हैं जबकि ट्रंप के लिए 43% लोग। यह एक अच्छी बढ़त लग सकती है लेकिन अगर आप अमेरिका के शहरों में लोगों से बात करेंगे तो वो साफ़ कहते हैं कि ट्रंप ट्रंप हैं। चुनाव में अभी कुछ हफ्ते हैं। वो कुछ भी कर सकते हैं।
ट्रंप आने वाले हफ्तों में क्या कर सकते हैं? फ़िलहाल तो सोचिये।
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