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अमेरिकी चुनाव: भारतीय मूल के 4 अमेरिकियों ने जीता चुनाव

भारतीय मूल के चार अमेरिकियों ने हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेन्टेटिव्स का चुनाव जीत लिया है। राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेन्टेटिव्स का चुनाव भी होता है। यह अमेरिकी संसद का निचला सदन है, यानी इसकी तुलना भारत के लोकसभा से की जा सकती है। 
भारतीय मूल के राजनेता डॉक्टर एमी बेरा, प्रमिला जयपाल, रो खन्ना और राजा कृष्णमूर्ति एक बार फिर चुन लिए गए हैं। ये सभी मौजूदा संसद के सदस्य हैं। इसके अलावा डॉक्टर हिरल तिपिमेनी भी चुनाव जीत सकते हैं। वह एरिज़ोना से रिपब्लिकन उम्मीदवार डेविड शीकर्ट से आगे चल रहे हैं।
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राजा कृष्णमूर्ति, सदस्य, हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स

समोसा कॉकस

राजा कृष्णमू्र्ति ने भारतीय मूल के इन अमेरिकियों के समूह को 'समोसा कॉकस' का नाम दिया है और अमेरिका में उन्हें इसी नाम से बुलाया जाता है। 
'समोसा कॉकस' मोटे तौर पर भारत का समर्थन करता है। लेकिन फ़िलहाल यह गुट भारत से नाराज़ है और इस समूह के लोगों ने अलग-अलग समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना की है।
प्रमिला जयपाल ने अमेरिकी संसद के निचले सदन में कश्मीर पर एक प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव में कश्मीर में लगाए गए लॉकडाउन का विरोध किया गया था और भारत सरकार से आग्रह किया गया था कि इसे जल्द से जल्द हटा लिया जाए। 

कश्मीर, सीएए

भारत के विदेमंत्री एस. जयशंकर ने इस प्रस्ताव की तीखी आलोचना करते हुए कहा था कि यदि उनसे मिलने गए प्रतिनिधिमंडल में जयपाल शामिल हुईं तो वह इस प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात नहीं करेंगे। मुलाक़ात का वह कार्यक्रम रद्द कर देना पड़ा। 

डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडन की रनिंग मेट यानी उनके जीतने पर उप राष्ट्रपति बनने वाली कमला हैरिस ने इस पर जयपाल का खुल कर समर्थन किया था। उन्होंने ट्वीट कर कहा था, 'किसी भी विदेशी सरकार के लिए यह कहना ग़लत है कि कैपिटॉल हिल पर होने वाली बैठकों में कौन भाग लेगा।’

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कमला हैरिस, उपरष्ट्रपति पद की डेमोक्रेट उम्मीदवार

भारत-विरोधी?

समान नागरिकता क़ानून का विरोध अमेरिका में हुआ था और भारतीय मूल के नेताओं ने भी उसका विरोध किया था। इसमें रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों ही थे।
भारतीय मूल के राजा कृष्णमूर्ति, प्रमिला जयपाल, कमला हैरिस, अमी बेरा और रो खन्ना ने इसका विरोध किया था। 
भारतीय मूल के इन अमेरिकियों के विचार भारत-विरोधी नहीं हैं, बल्कि भारत के सत्तारूढ़ दल के ख़िलाफ़ हैं। इन मुद्दों पर इसी तरह के विचार करोड़ों भारतीयों के हैं, कई राजनीतिक दलों के हैं, हज़ारों ग़ैर-सरकारी संगठन और सिविल सोसाइटी के दूसरे लोगों के हैं। 
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क़मर वहीद नक़वी

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