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क्लोरोक्वीन के ख़िलाफ़ अमेरिका में एफ़डीए ने दी चेतावनी, अब क्या करेंगे ट्रंप?

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर पूरी दुनिया में हंगामा है। कोरोना के इलाज के लिये इस दवा के बारें तमाम  तरह की बातें की जा रही हैं। अमेरिका और ब्राज़ील जैसे देशों के राष्ट्रपतियों को लगता है कि इस दवा से कोरोना मरीज़ों को ठीक किया जा सकता है। दोनों देशों ने भारत से इसकी भारी खेप भी मंगायी हैं।
पर वैज्ञानिकों का मानना है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना मामले में कारगर नहीं है। अब अमेरिका की प्रमुख स्वास्थ्य संस्था यू एस. फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (यूएस एफ़डीए) ने कोरोना के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल करने के ख़िलाफ़ चेतावनी दी है।
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नहीं रहा 'गेम चेंजर'?

एफ़डीए ने कहा है कि कई लोग इस दवा का इस्तेमाल कर रहे हैं, पर कई मामलों में इसके इस्तेमाल के बाद दिल की धड़कन यकायक बढ़ी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने इस दवा को गेम चेंजर बताते हुए कहा था कि इससे कोरोना का इलाज किया जा सकता है। लेकिन एफ़डीए ने चेतावनी जारी कर उनकी बातों को एकदम उलट दिया है।
इसके एक दिन पहले ही यूरोपीय संघ ने भी कहा था कि इस दवा पर पूरी जाँच की जाए और संतोषजनक नतीजा आने के बाद ही इसका इस्तेमाल किया जाए।
क्लोरोक्वीन का इस्तेमाल भारत समेत कई देशों में मलेरिया के इलाज में तो होता ही है, अमेरिका समेत कई देशों में यह ल्युपस और आरथ्राइटिस के रोगियों को भी दिया जाता है। पर अब तक यह साबित नहीं हो सका है कि इस दवा से कोरोना का इलाज भी हो सकता है।

भारत में शोध

न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने एक ख़बर में कहा है कि दिल्ली स्थित लेडी हार्डिंग मेडिकल  कॉलेज में इस पर शोध हुआ है। 
इस शोध में पाया गया है कि क्लोरोक्वीन के इस्तेमाल से सार्स के वायरस को रोकने में कामयाबी मिली है, पर इसका कोई सबूत नहीं मिला है कि यह मानव में कोविड-19 के संक्रमण को भी रोक सकता है।
शोध पत्र में कहा गया है, 'सेल कल्चर के अध्ययन से मिले आँकड़ों से यह स्थापित नहीं होता है कि  हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल से कोविड-19 के वायरस को रोकने में मदद मिलती है।'

क्या कहता है शोध?

शोध पत्र में आगे कहा गया है कि 'कोविड-19 की रोकथाम या उपचार में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कारगर हो, इसके बहुत सबूत नहीं है, लिहाजा़ जब तक इसके पक्के सबूत न मिल जाएं, इसके इस तरह के इस्तेमाल से बचा जाए।'
लेडी हार्डिंग के फ़ार्माकोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉक्टर हरमीत सिंह रेहान ने अख़बार को बताया है कि 'हमने कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोक्वीन के इस्तेमाल से जुड़े हर मजबूत और कमज़ोर सबूत का विश्लेषण किया। हमने पाया कि ऐसा कोई सबूत है ही नहीं जिसके आधार पर यह कहा जाए कि इससे कोरोना की रोकथाम हो सकती है या इसका इलाज किया जा सकता है।'
शोध का यह नतीजा इस मामले में भी अहम है कि अमेरिका में हुए हालिया शोध के नतीजे भी सकारात्मक नहीं रहे।

कार्डियक एरिदमिया

अमेरिका में यह देखा गया कि जिन लोगो को कोरोना संक्रमण था, उन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के साथ एज़िथ्रोमाइसिन देने पर कुछ रोगियों की मौत कार्डियक एरीदमिया से हो गई। कार्डियक एरीदमिया में दिल की धड़कन यकायक बेहद नाटकीय ढंग से बढ़ जाती है और हार्ट अटैक हो जाता है।
आईसीएमआर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि चीन और फ्रांस से अब तक कोई ठोस सबूत नहीं मिला है जिससे पता चले कि एज़िथ्रोमाइसिन और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के एक साथ इस्तेमाल करने से क्या नतीजा हो सकता है। इसलिए कौंसिल ने इस दोनों दवाओं को एक साथ इस्तेमाल करने की सलाह दी।
यानी, एक बात बहुत ही साफ़ है कि मलेरिया की इस दवा से कोरोना का इलाज नहीं हो सकता, इसकी रोकथाम में भी इसके इस्तेमाल से फ़ायदा का कोई पक्का सबूत नहीं है, हालांकि इस्तेमाल किया जा रहा है। 
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क़मर वहीद नक़वी

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