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लॉकडाउन हटाने पर क्या सोचते हैं यूरोपीय देश, भारत के लिए क्या है चिंता का सबब?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 अप्रैल को राष्ट्र के नाम संबोधन में लॉकडाउन बढ़ाने का एलान करने के साथ ही 20 अप्रैल से कुछ छूट देने की बात की। यानी चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन हटाने का काम शुरू होने के संकेत दिये।
भारत से हज़ारों किलोमीटर दूर यूरोप में भी लॉकडाउन को चरणबद्ध तरीके से हटाने की योजना पर विचार चल रहा है। 
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पर यूरोप कोई जल्दबाजी नहीं कर रहा है। यूरोपीय देशों के नेता अर्थव्यवस्था, लोगों के मनोविज्ञान और लॉकडाउन हटाने से होने वाले ख़तरे के बीच संतुलन बना कर ही कोई कदम उठाना चाहते हैं।

क्या सोचता है यूरोप?

इस दिशा में सबसे पहला कदम ऑस्ट्रिया ने उठाया जब उसने इस मंगलवार को ही कुछ ग़ैर-ज़रूरी सेवाओं पर लगे प्रतिबंध हटाने का एलान किया। 
डेनमार्क जल्द ही स्कूल खोल सकता है। स्पेन ने लॉकडाउन बरक़रार रखा है, पर कारखाने खोलने और निर्माण कार्य शुरू करने की अनुमति दे दी है।

कब हटेगा लॉकडाउन?

लॉकडाउन कब और कैसे हटाया जाए, इसका कोई तयशुदा नियम या फ़ॉर्मूला नहीं है, सब अपने हिसाब से ऐसा करेंगे। वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन के फ्रैंक उलरिच मॉन्टगोमरी ने वॉशिंगटन पोस्ट से कहा

‘लॉकडाउन हटाने का कोई गोल्डन रूल नहीं है, हमें नतीजा देख कर ही फ़ैसला लेना है।’


फ्रैंक उलरिच मॉन्टगोमरी, सदस्य, वर्ल्ड मेडिकल एसोसिएशन

मास्क-आइसोलेशन-एंटीबॉडी

कुछ यूरोपीय देश इस पर विचार कर रहे हैं कि मास्क लगा कर बाहर निकलने की छूट दी जा सकती है। स्पेन की सरकार ने अपने नागरिकों को मुफ़्त मास्क दिए हैं। कई देश इस पर विचार कर रहे हैं कि संक्रमित लोगों को ट्रैक करना और उन्हें आइसोलेट करना सबसे ज़रूरी है और फ़िलहाल इसी पर ज़ोर दिया जाए। 
कुछ देशों में एन्टीबॉडी जाँच पर ज़ोर दिया जा रहा है और यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि कितने लोग जाने-अनजाने कोरोना की चपेट में आ गए।

यूरोपीय संघ की बैठक

यूरोपीय संघ के ब्रसेल्स स्थित मुख्यालय में जल्द ही बैठक होने वाली है, जिसमें कोरोना से लड़ने और लॉकडाउन हटाने पर कोई संयुक्त नीति अपनाई जाएगी। 
यूरोपीय संघ जल्द ही सदस्य देशों को सलाह जारी कर सकता है कि वे अपनी अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे चरणबद्ध तरीके से खोलें। वे पहले स्कूल-कॉलेज खोलें, उसके बाद दुकानों को खोलने दें, फिर रेस्तरां चालू करने की अनुमति दें।
यह भी एलान हो सकता है कि ये सभी चरण एक-एक कर उठाए जाएँ और इसमें महीने भर का समय लगाया जाए। यूरोपीय संघ के सभी देश अपनी सीमा के अंदर आवागमन कब खोलते हैं, यह वे ख़ुद तय करें। लेकिन इस पर फ़ैसला बाद में होगा कि देशों की सीमाएं कब और कैसे खोली जाएं। 

फ्रांस

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कहा है कि 11 मई तक उनके देश में पूर्ण लॉकडाउन रहेगा। उसके बाद पहले नर्सरी स्कूल, फिर मिडिल स्कूल और फिर हाई स्कूल खुलेंगे। यह काम मई के मध्य तक पूरा हो जाएगा। 
लेकिन विश्वविद्यालयों की कक्षाएँ पूरी गर्मियों में बंद रहेंगी। रेस्तरां और कैफ़े अभी बंद ही रहेंगे, उनके खोलने की कोई योजना अभी नहीं बनी है। 

जर्मनी

चांसलर एंगला मर्कल जल्द ही घोषणा करेंगी कि जर्मनी में प्रतिबंधों में कब ढील दी जाएगी। पहले स्कूल खुलेंगे और गणित जैसे मुख्य विषयों की कक्षाएँ पहले लगनी शुरू होंगी। 
लेकिन यह सब इस पर निर्भर करता है कि लियोपोल्डिना नेशनल अकेडेमी के वैज्ञानिक क्या सलाह देते हैं। एन्टीबॉडी जाँच के अध्ययन के ही बाद पता चल सकेगा कि संक्रमण की क्या स्थिति है और फ़ैसला उसके अनुरूप ही होगा।
जर्मनी में एक सर्वे के मुताबिक़ अधिकतर लोग लॉकडाउन बरक़रार रखने के पक्ष में है। सर्वे में भाग लेने वाले 44 प्रतिशत लोग सोशल डिस्टैंसिंग बढ़ाना चाहते हैं, जबकि 12 प्रतिशत लोग इसे और सख़्ती से लागू करना चाहते हैं।

ब्रिटेन

ब्रिटेन ने साफ़ कह दिया है कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि कब संक्रमण अपने चरम पर पहुँचेगा और उसके बाद वह कम होने लगेगा। डेपुटी चीफ़ मेडिकल ऑफिसर जोनाथन वैन-टैम ने वॉशिंगटन पोस्ट से कहा, ‘लॉकडाउन हटाने के बारे में कुछ कहने का समय अभी नही आया है। हम अभी भी ख़तरे से बाहर नहीं हैं, इसमें समय लगेगा।’

इटली

इटली ने लॉकडाउन से बाहर निकलने की स्थिति को ‘फेज़ टू’ कहा है और यह किसी को नहीं पता कि वह समय कब आएगा। पर इतना साफ़ है कि 4 मई से पहले ऐसा कुछ नहीं होने को है।प्रधानमंत्री जिसेप कोन्टी पर दबाव बढ़ रहा है कि वे अर्थव्यवस्था खोलें।
सवाल यह है कि भारत इससे क्या सीख सकता है ? यूरोपीय देशों की तुलना में भारत में ग़रीबी अधिक है, अंसगठित क्षेत्र में करोड़ों लोग काम करते हैं, वे आर्थिक रूप से बदहाल हैं।
यदि मीडिया रिपोर्टों पर भरोसा किया जाए तो सरकारी मदद का एलान भले ही हो गया हो वह ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुँच सका है। ऐसे में कहीं भुखमरी नया संकट न बन जाये।

क्या करे भारत?

भारतीय अर्थव्यवस्था कोरोना के पहले ही सुस्त थी और ऐतिहासिक गिरावट दर्ज कर चुकी थी। कोरोना की मार ऐसी पड़ी है कि वह विकास दर दो प्रतिशत भी हो तो बड़ी बात होगी। ऐसे में भारतीय अर्थव्यवस्था को संभालना मुश्किल होगा।
लेकिन यह भी सच है कि 130 करोड़ की आबादी वाले देश में अभी भी सरकार जाँच किट और पीपीई तक ठीक से मुहैया नहीं करा पाई है, बहुत ही कम लोगों की जाँच की जा रही है, जाँच की कोई तय रणनीति नहीं है। एन्टीबॉडी टेस्ट या प्लाज़्मा थेरैपी अभी शुरू तक नहीं हुई है। और ऐसे में एक दिन में नए मामलों की तादाद 1000 पार कर चुकी है। 
ऐसे में कुछ फ़ैसला लेना वाकई मुश्किल है।
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क़मर वहीद नक़वी

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