डॉ. वेद प्रताप वैदिक भारत के वरिष्ठ पत्रकार, राजनैतिक विश्लेषक एवं हिंदीप्रेमी हैं। डॉ. वैदिक अनेक भारतीय व विदेशी शोध-संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर रहे हैं।
केंद्र सरकार अब ऐसा क़ानून बनाने पर उतारू हो गई है, जो दिल्ली की केजरीवाल-सरकार को गूंगा और बहरा बनाकर ही छोड़ेगी। दिल्ली की यह सरकार उप-राज्यपाल की सरकार होगी!
सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐसे क़ानून पर पुनर्विचार की याचिका स्वीकार कर ली है, जिसका उद्देश्य था- भारत के मंदिर-मसजिदों के विवादों पर हमेशा के लिए तालाबंदी कर देना। अब इस क़ानून को एक वकील अश्विन उपाध्याय ने अदालत में चुनौती दी है।
हमारा सर्वोच्च न्यायालय अब नेताओं से भी आगे निकलता दिखाई दे रहा है। उसने सभी राज्यों को निर्देश दिया है कि वे बताएँ कि सरकारी नौकरियों में जो आरक्षण अभी 50 प्रतिशत है, उसे बढ़ाया जाए या नहीं? कौन राज्य है, जो यह कहेगा कि उसे न बढ़ाया जाए?
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जबलपुर में न्यायाधीशों के एक समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय अपने फ़ैसलों का अनुवाद प्रांतीय भाषाओं में करवाएँ।
मध्य प्रदेश में भी खाद्य-पदार्थों और दवाइयों में मिलावट करनेवाले अब जरा डरेंगे, क्योंकि बंगाल, असम और उत्तर प्रदेश की तरह अब मध्य प्रदेश भी उन्हें उम्र कैद देने का प्रावधान कर रहा है।
भारत के विदेश सचिव हर्ष श्रृंगला अभी-अभी मास्को होकर आए हैं। कोविड के इस भयंकर माहौल में हमारे रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री और विदेश सचिव को बार-बार रूस जाने की जरूरत क्यों पड़ रही है?
यह ठीक है कि अमेरिका, चीन और कुछ यूरोपीय राष्ट्र आर्थिक क्षेत्र में भारत से आगे हैं, लेकिन इस वक्त दुनिया में किसी एक राष्ट्र का डंका सबसे ज्यादा जोर से बज रहा है तो वह भारत है।
चौहान ने अपने मंत्रियों और विधायकों से इस समस्या पर तो खुला विचार-विमर्श किया ही कि वे पिछला चुनाव क्यों हारे। लेकिन उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को सफलता, लोकप्रियता और जन-सेवा के जो गुर बताए हैं, वे सिर्फ बीजेपी ही नहीं, सभी पार्टियों के लिए अनुकरणीय हैं।
कांग्रेस के नेता ग़ुलाम नबी आज़ाद की संसद से बिदाई अपने आप में एक अपूर्व घटना बन गई। पिछले साठ—सत्तर साल में किसी अन्य सांसद की ऐसी भावुक विदाई हुई हो, ऐसा मुझे याद नहीं पड़ता।
किसानों का चक्का-जाम बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया और उसमें 26 जनवरी- जैसी कोई घटना नहीं घटी, यह बहुत ही सराहनीय है। केंद्र सरकार कृषि क़ानूनों को मानने या न मानने की छूट राज्यों को क्यों नहीं दे देती?
जब मैंने अखबारों में पढ़ा कि गोरखपुर के चौरी-चौरा कांड का शताब्दी समारोह मनाया जाएगा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसका उदघाटन करेंगे तो मेरा मन कौतूहल से भर गया।
क्या कभी कोई कल्पना कर सकता था कि मास्को से व्लादिवस्तोक तक दर्जनों शहरों में हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आएँगे और ‘पुतिन तुम हत्यारे हो’, ऐसे नारे लगाएँगे? लेकिन आजकल पूरा रूस जन-प्रदर्शनों से खदबदा रहा है।
क्या कोई सरकार ऐसा बजट ला सकती है, जो देश के हर नागरिक को ये पाँच चीजें मुहय्या करवा दे? यह कठिन है, लेकिन असंभव नहीं है। शिक्षा और चिकित्सा तो बिल्कुल मुफ़्त कर दी जाए।
जो किसान आंदोलन 25 जनवरी तक भारतीय लोकतंत्र की शान बढ़ा रहा था, वही अब दुख और शर्म का कारण बन गया है। इस आंदोलन ने हमारे राजनीतिक नेताओं के बौद्धिक और नैतिक दिवालिएपन को उजागर कर दिया है।
अमेरिका का बाइडन प्रशासन डोनाल्ड ट्रंप की अफ़ग़ान-नीति पर अब पुनर्विचार करनेवाला है। वैसे तो ट्रंप प्रशासन ने पिछले साल फ़रवरी में तालिबान के साथ जो समझौता किया था, पर इसका सफल होना कठिन है।
वाट्सऐप को दुनिया के करोड़ों लोग रोज इस्तेमाल करते हैं। वह भी मुफ्त! लेकिन पिछले दिनों लाखों लोगों ने उसकी बजाय ‘सिग्नल’, ‘टेलीग्राम’ और ‘बोटिम’ जैसे माध्यमों की शरण ले ली।
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली की यह दिल्ली-यात्रा हुई तो इसलिए है कि दोनों राष्ट्रों के संयुक्त आयोग की सालाना बैठक होनी थी लेकिन यह यात्रा बहुत सामयिक और सार्थक रही है।