भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे के साथ लड़ते हुए अपने क़ीमती और दुर्लभ संसाधनों को बर्बाद करते हैं, जबकि इसके बजाये उन्हें हाथ मिलाना चाहिए और संयुक्त रूप से (बांग्लादेश के साथ) बुराइयों से निपटना चाहिए।
सवाल यह है कि जाति व्यवस्था को कैसे नष्ट किया जा सकता है। मेरा मानना है कि जाति आधारित आरक्षण जाति व्यवस्था को ख़त्म करने के बजाय इसे और गहराई, और मज़बूती से स्थापित करने में मदद करता है।
चुनाव अभियान के दौरान अपने भाषणों में इमरान ख़ान ने वादा किया था कि वह पाकिस्तान में 'मदीना की रियासत' लाएँगे। लेकिन क्या यही वो कल्याणकारी राज्य है जिसका उन्होंने वादा किया था?
भारतीय संविधान में कोई प्रावधान नहीं है कि जाति आधारित आरक्षण अनिवार्य है। अनुच्छेद 15 (4), 16 (4), और 16 (4A) में केवल यह कहा गया है कि पिछड़े वर्गों के लिए प्रशासन आरक्षण कर सकता है।
मेरे विचार में तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोयान द्वारा प्रसिद्ध हागिया सोफ़िया को मसजिद में बदलने का फ़ैसला एक प्रतिक्रियावादी क़दम है, और इसकी निंदा की जानी चाहिए।
विकास दुबे की पुलिस 'मुठभेड़' में हत्या, एक बार फिर से गैर न्यायिक हत्याओं की वैधता पर सवाल उठाती है जिसका अक़सर भारतीय पुलिस द्वारा बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है।
चीन बड़े पैमाने पर बढ़ रहे अपने उद्योग के लिए कच्चे माल की ज़रूरतों को पूरा करने के लालच से लद्दाख पर नज़रें गड़ाए हुए है। गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो, डेमचोक, फाइव फिंगर्स आदि में हालिया चीनी घुसपैठ का असली कारण यही है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने मंगलवार को पाकिस्तानी संसद को संबोधित करते हुए कहा कि ‘इसमें कोई शक नहीं है कि भारत कराची स्टॉक एक्सचेंज पर हमले का ज़िम्मेदार है’।
चीन ने लद्दाख में गलवान घाटी पर अवैध क़ब्ज़ा कर लिया है और उसकी सेना ने भारतीय सेना के एक कर्नल और 20 जवानों को मार दिया है। क्या यह साम्राज्यवादी नीतियों के कारण नहीं है?
कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के एक गाँव में 40 साल के कश्मीरी पंडित सरपंच अजय पंडिता की आतंकवादियों द्वारा हत्या ने कश्मीरी पंडितों के पुराने घावों को कुरेदा है।
केरल में गर्भवती हथिनी की मौत को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की गई। ठीक उसी तरह जिस तरह कुछ लोगों ने तब्लीग़ी जमात को दोषी ठहराते हुए कोरोना महामारी को सांप्रदायिक रूप देने की कोशिश की थी।
चीन की सेना ने हाल ही में भारतीय क्षेत्र लद्दाख के गालवान में 3-4 किलोमीटर तक प्रवेश किया है। भारत में कई लोग ऐसा सोचते हैं कि यह घटना दोनों देशों के बीच सीमा को लेकर किसी छोटी ग़लतफहमी के कारण हुई, लेकिन ऐसा नहीं है।
क्या सुप्रीम कोर्ट नागरिकों की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य को नहीं निभा रहा है और क्या ऐसा लगता है कि उसने व्यापक तौर पर सरकार के सामने आत्मसमर्पण कर दिया है।
क्या कोरोना वायरस के ख़तरे को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है? तो यह क्यों नहीं बताया जाता कि टी.बी., फ्लू, मलेरिया, डेंगू, मधुमेह, दिल का दौरा और अन्य कई चिकित्सा समस्याओं से इस काल के दौरान कितने भारतीयों की मृत्यु हुई?
मैं बार-बार पीएम मोदी से कुछ ऐसा ही करने और 'नेशनल गवर्नमेंट' बनाने की विनती कर रहा हूँ जैसा कि पीएम चर्चिल ने मई 1940 में नाज़ी आक्रमण के ख़तरे का सामना करते समय किया था।
शेषाद्रि चारी ने मोदीजी के ‘भारतीय आत्मनिर्भरता’ पर एक लेख लिखा है। उनका कहना है कि मोदी जी का विचार वही है जो-गाँधीजी के आधुनिकीकरण का था- हाँ, पश्चिमी निर्भरता- नहीं’। शेषाद्रि चारी की बातें खोखली और अर्थहीन हैं।
मैंने प्रवासी मज़दूरों से संबंधित जनहित याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बारे में जस्टिस मदन लोकुर और जस्टिस एपी शाह के करण थापर के साथ साक्षात्कार देखे।
जस्टिस दीपक गुप्ता, जो हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हुए हैं, उन्होंने अपने विदाई भाषण में कहा कि भारतीय न्यायिक प्रणाली आज, ग़रीबों के ख़िलाफ़ और अमीरों की पक्षधर हो गयी है।