क्या आपने यह दोहा कहीं सुना है या पढ़ा है?
राम नाम जपते, अत्रि मत गुसिआउ।पंक में उगोहिमि अहि के छबि झाउ।।
अब यह मत कहिए कि शायद स्कूल-कॉलेज में पढ़ा था। जी नहीं, आपने स्कूल-कॉलेज में इसे नहीं पढ़ा था। पढ़ा होगा तो फ़ेसबुक या वॉट्सऐप पर। आपको बताया गया होगा कि गोस्वामी तुलसीदास जी के इस दोहे में भारत के 29 राज्यों के नाम का पहला अक्षर है और आप पढ़ कर चौंक गए होंगे यह सोच कर कि क्या अद्भुत और चमत्कारी संत थे तुलसीदास। उनको तभी से पता चल गया कि उनके जन्म के चार सौ साल बाद इस भारत के कितने राज्य होंगे और उनका नाम किस अक्षर से शुरू होगा।
हो सकता है, आपने इस खोज से चकित हो कर अपने यार-दोस्तों में इसे शेयर भी किया होगा जैसे कि मेरे एक साथी ने हाल में मेरे वॉट्सऐप ग्रूप में शेयर किया ताकि बाक़ी दोस्तों को भी इस चमत्कार का पता चल जाए। यदि आप उन बदकिस्मत लोगों में हैं जिनके पास अब तक यह मेसेज नहीं आया हो तो पहले वह मेसेज ठीक से देख लें।
पढ़ा आपने? देखा कि संदेश बनाने वाले ने किस तरह दोहे के एक-एक अक्षर को अलग-अलग करते हुए यह भी बताया है कि कैसे वह एक-एक राज्य के नाम का पहला अक्षर है। यह इसलिए कि हमारे कई परम ‘देशभक्तों’ को शायद यह भी नहीं पता हो कि भारत में कितने राज्य हैं। सो उनके लाभार्थ संदेश बनाने वाले और इस 'दोहे की खोज' करने वाले ने सारे राज्यों के नाम नीचे दे दिए। आख़िर में लिखा अत्यंत आश्चर्यजनक।
और इस आश्चर्यजनक दोहे से चकित हो कर और संत तुलसीदास की दूरदृष्टि से चमत्कृत हो कर कई हज़ार लोगों ने इसे फॉरवर्ड भी किया बिना यह सोचे कि यदि तुलसीदास ने यह दोहा आज से चार सौ साल पहले लिख दिया था तो उन्होंने ‘राम नाम जपते’ और ‘अत्रि मत गुसिआउ’ कैसे लिख दिया क्योंकि इसमें ‘ते’ और ‘त’ जिन राज्यों के लिए आया है, उनमें से ‘ते’ यानी तेलंगाना पाँच साल पहले तक अस्तित्व में था नहीं और ‘त’ यानी तमिलनाडु का नाम पहले मद्रास था। इसके अलावा उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ अटल जी के राज में बने।
तो क्या हम समझें कि तुलसीदास जी को पता था कि भारत के कौन-कौनसे राज्य आगे जा कर बनेंगे और कितने और बँटेंगे और उनका क्या-क्या नाम होगा? यदि हाँ तो क्या विदर्भ, बुंदेलखंड, बोड़ोलैंड आदि नए राज्यों के लिए लड़ रहे लोगों को निराश हो कर अपना आंदोलन ख़त्म कर देना चाहिए यह सोच कर कि भविष्यद्रष्टा बाबा तुलसी ने अपने दोहे में उनके राज्य के नाम के पहले अक्षर का ज़िक़्र नहीं किया तो उनका राज्य कभी बनेगा ही नहीं?
ख़ैर यदि भारत के लोग इतना सोचने-समझने वाले होते तो इतने सारे झूठे या मूर्खता भरे पोस्ट रोज़ वॉट्सऐप, फ़ेसबुक और ट्विटर पर शेयर ही न होते। वैसे भी जो देश गणेश जी के दूध पीने की अफ़वाह पर भरोसा करके करोड़ों की तादाद में घर से निकल सकता है और मंदिर-मंदिर घूम कर मूर्तियों को दुग्धपान करा सकता है, वह किसी भी बेसिरपैर की बात पर भरोसा कर सकता है।
चलिए, यह दोहा तुलसी का है या झुलसी का, यह बाद में जानेंगे। पहले यह जान लें कि इसका अर्थ क्या है। यदि पहली लाइन का अर्थ निकालें तो यह अर्थ निकलेगा कि राम नाम जपते समय गुस्सा मत (मत गुसियाउ) करो और दूसरी लाइन कीचड़ (पंक) के अंदर किसी छवि (छबि) के बारे में कुछ कहती है हालाँकि उसमें झाड़ू (झाउ) का क्या काम है, यह समझ में नहीं आता। शायद किसी की छवि (तसवीर) पर कीचड़ लग गया है, उसे झाड़ू से साफ़ करने की बात कही गई है।
वैसे सच तो यह है कि यह न तो दोहा है (क्योंकि दोहे में 13,11 मात्राएँ होती हैं जो इसमें नहीं हैं), न ही इसका कोई अर्थ है (उगोहिमि, अहि भी निरर्थक शब्द हैं)।
अब सवाल यह कि फिर यह निरर्थक रचना आई कैसे? माना कि तुलसीदास ने इसे नहीं रचा तो यह किसने रचा और क्यों रची ऐसी पंक्तियाँ जिनमें भारत के 29 राज्यों के नामों के आद्याक्षर हैं।आइए, मैं बताता हूँ। मेरी समझ से इस दोहे की रचना की है किसी बहुत ही क्रियाशील और समाजसेवी सज्जन ने जो यह चाहते थे कि कुछ ऐसा फ़ॉर्म्युला बनाएँ ताकि यदि परीक्षा में भारत के राज्यों के नाम पूछे तो आसानी से बताया जा सके। जैसे इंद्रधनुष के सात रंगों को याद करने के लिए VIBGYOR (Violet, Indigo, Red आदि) है या गणित के समीकरण में ‘जोड़ पहले या गुणा’, इसे याद रखने के लिए BODMAS (Bracket, Of, Division आदि) हुआ करता था, वैसे ही यह ‘राम नाम जपते…’ बनाया गया है छात्रों के लिए जिनकी याद्दाश्त और देश के राजनीतिक नक्शे का ज्ञान थोड़ा कम है।
लेकिन वह रचनाशील सज्जन कौन हैं, हमें नहीं मालूम। इंटरनेट पर कई लोगों ने इसे बिना रचयिता को क्रेडिट देते हुए इसे शेयर किया है। देखें।
इन्हीं से प्रेरणा लेते हुए कुछ और लोगों ने भी यादरक्खू वाक्य बनाए हैं। एक है - चलो दिल दे दो आप और दूसरा मित्र अतरा मुझसे कहता है में अपने छ: बागों में आम की उपज उगाऊ।
आप देखिए कि कैसे इनमें भारत के केंद्रशासित प्रदेशों और राज्यों के नाम निकलते हैं। नहीं समझ में आए तो इस लिंक पर क्लिक करें।
निषकर्ष यह कि एक सामान्य-से ट्रिकवाक्य को जालसाज़ों ने तुलसीदास का दोहा बता कर भारत भर में वायरल कर दिया। इसमें इनकी मदद की भोलेभाले लोगों ने जिन्होंने बिना सोचे-समझे और सच की पड़ताल किए इसे शेयर कर दिया। इस तरह अनजाने में ही सही, उन्होंने भी झूठ फैलाने में सहयोग किया।
तो याद रखिए - भविष्य में जब कभी कुछ चौंकाने वाली बात मिले तो फटाफट शेयर मत करने लगिएगा। पहले अपनी अक़्ल के घोड़े दौड़ाइए कि जो लिखा है, वह कहीं झूठ तो नहीं। नहीं तय कर पाएँ तो वह फोटो या पोस्ट हमारे साथ शेयर कीजिए। हम करेंगे उसकी पड़ताल और बताएँगे कि क्या वह बात सच है या झूठ। साथ में आपका नाम भी देंगे क्योंकि झूठ को रोकने और सच को खोजने में यदि आप योगदान करते हैं तो आपको क्रेडिट मिलना ही चाहिए। हमारा पता नोट करें - contact@SatyaHindi.com.
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