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अजेय नहीं रही बीजेपी, महाराष्ट्र प्रकरण से बढ़ेंगी मुश्किलें?

लोकसभा चुनाव 2019 के जब नतीजे आये तो देश के जाने-माने राजनीतिक विश्लेषकों ने भी एक बार को यह मान लिया था कि बीजेपी लगभग अपराजेय हो चुकी है। उन्होंने यह भी मान लिया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में इस पार्टी को चुनौती देना बेहद मुश्किल होगा। लेकिन इसके पाँच महीने के भीतर ही महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव नतीजों ने इस बात को साबित किया कि मोदी-शाह के नेतृत्व में बीजेपी अपराजेय नहीं है और उसे हराया जा सकता है। 

महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए तमाम तिकड़मों का सहारा लेने के बाद भी चूकी बीजेपी को जो सबक 4 दिन के भीतर ही सरकार गिरने से मिला है, इसे शायद वह लंबे समय तक याद रखेगी। हरियाणा ने भी उसे यह सबक दिया है कि शायद वह किसी भ्रम में थी और राज्य की जनता ने उसका भ्रम तोड़ा है। हरियाणा में बीजेपी राज्य की 90 में से 75 से ज़्यादा सीटें जीतने का जोर-शोर से दावा कर रही थी लेकिन वह 40 पर अटक गई और उसे मजबूरी में एक नई नवेली जननायक जनता पार्टी से गठबंधन करना पड़ा। राज्य में अकेले दम पर सरकार चला चुकी बीजेपी के लिए सत्ता में समझौता करने का अनुभव निश्चित रूप से कड़वाहट भरा होगा। 

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लोकसभा चुनाव 2019 से पहले जब देश भर का सियासी माहौल बेहद गर्म था और बीजेपी का विजयी रथ तेज़ी से आगे बढ़ रहा था तब भी उसे कुछ ऐसा ही झटका लगा था क्योंकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसकी सरकारों की विदाई हो गयी थी। जबकि वह इन राज्यों में भी बड़ी जीत का दावा कर रही थी। लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि महाराष्ट्र, हरियाणा के नतीजों के बाद क्या बीजेपी की आगे की राह आसान है? 

महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनाव नतीजों से विपक्ष बेहद उत्साहित है और उसे इस बात का यक़ीन हुआ है कि एकजुट होकर और ज़मीन पर संघर्ष करके बीजेपी को पराजित किया जा सकता है।

झारखंड में जेडीयू संग खटपट!

झारखंड में विधानसभा के चुनाव चल रहे हैं और दिल्ली में ढाई से तीन महीने के भीतर विधानसभा के चुनाव होंगे। झारखंड में बीजेपी का सफर इस बार बेहद मुश्किल है क्योंकि उसकी सहयोगी पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) ने उससे टिकट बंटवारे को लेकर झगड़े के बाद पल्ला झाड़ लिया है। झारखंड से लगा हुआ राज्य है बिहार और 2020 के नवंबर यानी कि ठीक एक साल के भीतर बिहार में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। 

बिहार में बीजेपी नेताओं की मुख्यमंत्री पद के लिए बढ़ती महत्वाकांक्षाओं को लेकर अपने सहयोगी जनता दल यूनाइटेड से कई बार भिड़ंत हो चुकी है। हालाँकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि राज्य में नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाएगा लेकिन फिर भी चुनाव नतीजे आने तक जेडीयू के साथ बीजेपी के संबंध कैसे रहेंगे, टिकट बंटवारे में झारखंड वाली स्थिति तो नहीं होगी, इसे देखना दिलचस्प रहेगा। 

दिल्ली में दुहराया जाएगा महाराष्ट्र!

2020 की शुरुआत में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव होने हैं। दिल्ली में बीजेपी 1998 के बाद से अब तक सत्ता में नहीं लौटी है। यहां उसका कड़ा मुक़ाबला आम आदमी पार्टी से है। महाराष्ट्र में जिस तरह विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों ने एकजुट होकर बीजेपी के सरकार बनाने के सपने को चकनाचूर किया है, उससे यह कहा जा सकता है कि अगर विधानसभा चुनाव के नतीजों में किसी भी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो दिल्ली में भी बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए ऐसा कोई गठबंधन बन सकता है। इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि 2013 में दिल्ली में बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस मिलकर सरकार बना चुके हैं। 

बिहार के बाद एक और अहम राज्य है जहां बीजेपी अपनी सरकार बनाने को बेताब है और वह है पश्चिम बंगाल। पश्चिम बंगाल में 2021 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही बीजेपी बंगाल जीतने के लिए पूरा जोर लगा रही है क्योंकि इस बार उसे 18 सीटों पर जीत मिली है जबकि 2014 में वह सिर्फ़ 2 सीटों पर जीती थी। 

बिहार, बंगाल के चुनाव नतीजों में अगर बीजेपी बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाएगी तो निश्चित रूप से विपक्षी दलों का हौसला और बढ़ेगा और इसका असर 2022 की शुरुआत में होने वाले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड के चुनाव नतीजों पर भी होगा। महाराष्ट्र और हरियाणा में जिस बंपर जीत के दावे बीजेपी ने किए थे और जिस तरह वे धराशायी हो गए, उससे कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि निश्चित रूप से आने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की राह मुश्किल होने के आसार हैं।

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पवन उप्रेती

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