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किसने किसे दिया धोखा, शरद पवार ने शिवसेना को या अजीत ने चाचा को?

महाराष्ट्र में हुए सियासी उलटफेर से हर कोई भौंचक है। जब सभी टीवी चैनल, राजनीतिक पंडित यह मान चुके थे कि महाराष्ट्र में चल रहे सियासी घटनाक्रम में यह तसवीर साफ़ हो गई है कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी की सरकार बनेगी, ऐसे में राज्य में बीजेपी-एनसीपी की सरकार बनने से लोगों को हैरान रह गए हैं। इस बीच एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा है कि यह उनका फ़ैसला नहीं है। 

राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ तो दिला दी लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि किसने किसे धोखा दिया है। जब सारी बात साफ हो चुकी थी कि शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस राज्य में मिलकर सरकार बनाएंगे तो यह आख़िरकार कैसे हो गया। यानी किसी ने किसी को धोखा ज़रूर दिया है। या तो एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने शिवसेना को धोखा दिया है या फिर शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने अपने चाचा को। इसे थोड़ा विस्तार से समझते हैं। 
ऐसा होने की संभावना किसी सूरत में नहीं है कि अजीत पवार ने इतना बड़ा फ़ैसला ख़ुद ले लिया होगा क्योंकि उनकी सियासी हैसियत इतनी नहीं है कि एनसीपी के अधिकांश विधायक उनके साथ चले जाएंगे। यानी यह माना जा सकता है कि इस निर्णय में कहीं न कहीं शरद पवार की कोई भूमिका ज़रूर है।

मोदी से मिले थे शरद पवार

याद दिला दें कि कुछ दिन पहले ही शरद पवार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की थी। मुलाक़ात के बाद उन्होंने कहा था कि उनकी मुलाक़ात किसानों की समस्याओं को लेकर हुई है लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसे लेकर जोरदार चर्चा थी कि पवार को बीजेपी की ओर से राष्ट्रपति बनने का ऑफ़र किया गया है। और तभी से लोगों के कान खड़े हो गए थे कि एक बार फिर राज्य में बीजेपी-एनसीपी साथ आ सकते हैं क्योंकि 2014 में पवार ने ही बीजेपी को समर्थन दिया था। 

अजीत ने दे दिया था इस्तीफ़ा

देवेंद्र फडणवीस ने शपथ लेने के बाद सिर्फ़ अजीत पवार का ही नाम लिया है न कि शरद पवार का। इससे यह सवाल खड़ा होता है कि क्या एनसीपी में कोई बग़ावत हुई है क्योंकि यह काफ़ी दिनों से देखा जा रहा था कि अजीत पवार अपनी पार्टी से नाराज चल रहे थे। विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने विधायक के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। तब भी इसे लेकर ख़ासी हैरानी हुई थी। अजित के इस्तीफ़े को लेकर अनेक कयास लगाए गए थे और कुछ लोगों ने इसे पवार परिवार में सियासी कलह का नतीजा बताया था तो कुछ ने कहा था कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद के रूप में प्रोजेक्ट नहीं कर रही थी, इसलिए वह नाराज थे। 

बीजेपी-एनसीपी की सरकार बनने से राजनीतिक जानकारों को ख़ासी हैरानी ज़रूर हुई है क्योंकि कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के बीच सरकार गठन को लेकर बातचीत पूरी हो चुकी थी और यह माना जा रहा था कि शनिवार को तीनों दल मिलकर एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस करेंगे और इसमें सरकार बनने की जानकारी देंगे लेकिन उससे पहले ही यह सियासी उलटफेर हो गया।
बीजेपी-एनसीपी की सरकार को विधानसभा में बहुमत साबित करने में कोई मुश्किल पेश नहीं आएगी क्योंकि 288 विधायकों वाली राज्य की विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 145 विधायकों की ज़रूरत है और दोनों ही दलों के विधायकों का कुल योग 159 बैठता है। इसके अलावा बीजेपी के पास कुछ निर्दलीय विधायकों और छोटी पार्टियों का भी समर्थन है। 
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पवन उप्रेती

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