भारत और चीन के बीच वैसे तो दो हज़ार साल पुराना रिश्ता रहा है और इस दौरान भारतीयों ने चीन को जितना जाना और समझा उससे कहीं अधिक चीनियों ने भारत को समझा और भारत से हासिल ज्ञान से लाभ उठाया है, लेकिन पिछले 70 सालों के छोटे से कालखंड ने इस रिश्ते में जो खटास पैदा की उससे पूरे दो हज़ार साल के रिश्तों पर काला धब्बा लग गया। इस दौरान क़रीब पाँच दशक तक आम लोगों का एक-दूसरे के यहाँ आना-जाना बंद हो गया। लेकिन अच्छी बात यह है कि दोनों देशों के बीच संवाद के रिश्ते ने पिछले दो दशकों से फिर ज़ोर पकड़ा है। यह उम्मीद पैदा करता है कि दोनों देश मतभेद पैदा करने वाले मसलों को हल निकाल कर फिर वास्तविक तौर पर भाई-भाई की तरह रहने लगेंगे।
इसीलिए 70 साल के इस छोटे से कालखंड में पैदा कटुता को दरकिनार करते हुए भारत और चीन ने अगले दो सालों के दौरान आपसी रिश्तों को मधुर बनाने की ज़रूरत को समझा। दोनों ने बीते युग के दौरान बने मीठे रिश्तों की समीक्षा करने के लिए 70 ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है जिनसे भारत और चीन के लोग आज के संदर्भ में एक-दूसरे को बेहतर समझ सकेंगे। दोनों देशों के बीच राजनयिक रिश्तों की स्थापना के सात दशक पूरे होने के बाद अगला दो साल धूमधाम से मनाने की सैद्धांतिक मंज़ूरी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की गत 12 नवंबर को भारत यात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अनौपचारिक शिखर बैठक के दौरान दी गई थी।
2020 और 2021 के दौरान दो साल तक चलने वाले सैन्य से लेकर आर्थिक, राजनयिक और अकादमिक मेलजोल के ज़रिए दोनों देश आपसी रिश्तों में नया प्राण भरने की कोशिश करेंगे। इससे लगता है कि भारत और चीन के आज के नेता इस लम्बे ऐतिहासिक रिश्तों के दौर को याद करते हुए भविष्य के रिश्तों को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में आगे बढ़ाने को गंभीर हैं। दोनों देशों का शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व जिस तरह विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मिलता-जुलता है और एक-दूसरे के यहाँ अनौपचारिक शिखर बैठकें करता है उससे तो यही लगता है कि दोनों देश आपसी कटुता मिटाने को गंभीर हैं।
चीन के दौरे में आपको दिखेगा कि किस तरह आज के चीन ने दो हज़ार साल के उस इतिहास को संरक्षित रखा है जहाँ हर प्राचीन पत्थर पर भारत से रिश्तों की छाप दिखती है। वहाँ के बौद्ध मंदिरों में भारतीय पाली और संस्कृत भाषा में लिखी उक्तियाँ दीवारों पर खुदी देखी जा सकती हैं। दूसरी ओर भारत के किसी प्राचीन इमारत या मंदिर के भीतर या उसकी दीवारों पर चीनी भाषा में लिखी उक्तियाँ देखने को नहीं मिलतीं लेकिन चीनी मंदिर भारतीय संस्कृति की छाप से अटे पड़े हैं।
पर, आधुनिक काल में दो हज़ार सालों के इस इतिहास के अंतिम यानी पिछले 70 सालों का दौर काफ़ी उथल-पुथल का भी रहा है।
सात दशक पहले भारत के आज़ाद होने और नये चीन की स्थापना के बाद दोनों देशों ने औपचारिक तौर पर राजनयिक रिश्ते स्थापित किए तो लगा कि दोनों देश भाई–भाई की तरह रहेंगे लेकिन इन सात दशकों के दौरान रिश्तों में जहाँ खटास पैदा हुई वहीं मिठास का पुट भी भरा गया।
70 सालों के इतिहास में पैदा खटास की वजह से दोनों देशों में जो कटुता पैदा हुई है उसे दरकिनार करते हुए दोनों देश 2020 और 2021 के दौरान 70 ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन करने की योजना को अंतिम रूप दे चुके हैं जो पिछले दो हज़ार सालों के रिश्तों के दौरान आपसी सौहार्द के रिश्तों के पुराने दौर की समीक्षा करते हुए नये मीठे दौर में प्रवेश करने की बातें करेंगे।
भले ही भारत और चीन के सैनिक सीमा मसले को लेकर एक-दूसरे के आमने-सामने आ जाते हैं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खड़ा होने में भी चीन अड़ंगा डालता हो, दोनों देश यह भी समझते हैं कि उनका हित इसी बात में है कि वे भावी पीढ़ियों के लिये रिश्तों में मीठापन की महक छोड़ जाएँ।
गत 70 सालों के दौरान पैदा खटास पर भारतीय काफ़ी नाक भौं सिकोड़ते हैं लेकिन चीनी लोग दो हज़ार साल के रिश्तों को समग्रता में देखते हुए आज के आधुनिक विश्व की पृष्ठभूमि में अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने की बात सोचते हैं क्योंकि चीन को लगता है कि कम से कम एशिया में चीन को एकमात्र महाशक्ति बनने में भारत ही अड़ंगा पैदा कर सकता है।
स्वाभाविक है कि आज के आधुनिक विश्व में कहीं सहयोग का माहौल रहेगा और कहीं होड़ का, लेकिन हर पक्ष की कोशिश होनी चाहिए कि टकराव का रिश्ता फिर नहीं बने। इसीलिए 2020 और 2021 के दौरान दोनों पक्ष आपसी ग़लतफहमी को मिटाने के लिए एक-दूसरे के यहाँ विभिन्न क्षेत्रों के बीसियों शिष्टमंडल भेजेंगे। इनमें भारतीय युद्धपोत का चीन के नौसैनिक अड्डे पर सद्भावना दौरे पर जाना, बीजिंग में भारत और चीन के मिलिट्री बैंड का साझा तौर पर दोस्ती के धुन पेश करना, भारत-चीन सभ्यताओं की वार्ता करना, भारत-चीन रिश्तों के लम्बे इतिहास पर डाक्युमेंट्री फ़िल्म बनाना, एक-दूसरे के यहाँ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक-दूसरे के यहाँ मोबाइल ऐप जारी करना, एक-दूसरे के यहाँ बौद्ध शिष्टमंडलों का दौरा करना, भारतीय योग और चीनी थाएची प्राचीन व्यायाम को एक-दूसरे के यहाँ प्रवर्तित करना, एक-दूसरे के यहाँ युवा शिष्टमंडलों को भेजना, कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील मंच में भारतीय हस्तियों को चीन आमंत्रित करना, कृषि, औषधि और औद्योगिक उत्पादों को चीन में निर्यात की सम्भावनाएँ तलाशने के लिए उद्यमियों को चीन का निमंत्रण, एक-दूसरे के यहाँ संसदीय शिष्टमंडलों का आदान-प्रदान, चीनी यात्री ह्वेनसांग के नाम पर गठित मंच की बैठक कर चीन में ह्वेनसांग अध्ययन को बढ़ावा देना आदि कई और कार्यक्रम शामिल हैं।
इनसे दोनों देशों के लोगों में एक-दूसरे के दो हज़ार साल पुराने प्राचीन रिश्तों की मीठी यादें कर भविष्य के रिश्तों में मिठास डालने की नई बुनियाद डाल सकते हैं।
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