किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने वाले गैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम (संशोधन) क़ानून यानी यूएपीए पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस दिया है। यह क़ानून सरकार को यह अधिकार देता है कि आतंकवादी संगठन से जुड़े होने के शक के आधार पर वह किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार कर सकती है। पहले आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त सिर्फ़ संगठनों को ही आतंकवादी घोषित किया जाता था। शुक्रवार को एक जनहित याचिक पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार से जवाब-तलब किया है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से यूएपीए को असंवैधानिक घोषित करने की माँग की है।
Supreme Court issues notice to Centre on PILs seeking direction to declare unconstitutional the Unlawful Activities (Prevention) Amendment Act, 2019, that confers power upon the Central government to designate an individual as terrorist. pic.twitter.com/UM9X07w12P
— ANI (@ANI) September 6, 2019
गैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम (संशोधन) क़ानून जब से लागू हुआ है तब से इसको लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं। कई लोगों ने यह तर्क दिया है कि किसी भी व्यक्ति को प्राप्त स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का यह उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाने वाले व्यक्ति ने भी यही सवाल उठाया है और इसी आधार पर इस क़ानून को चुनौती दी है।
संसद में इस विधेयक पर बहस के दौरान विपक्ष ने भी विरोध किया था और इसे बेहद घातक बताया था। तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा था कि इस क़ानून का इस्तेमाल व्यक्तिगत रूप से लोगों को फँसाने के लिए किया जा सकता है। मोइत्रा ने तब कहा था कि अगर यह बिल देश की संसद में पास हो जाता है तो इसका देश के संघीय ढाँचे पर प्रभाव पड़ेगा। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी इसकी आलोचना की थी और कहा था कि संशोधन विधेयक को जल्दबाजी में लाया गया है।
इस पर गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि आतंकवाद लोगों की प्रवृत्ति में है, संगठनों में नहीं। उन्होंने कहा था कि एक आज एक ऐसे प्रावधान की ज़रूरत है कि जिससे किसी को भी आतंकवादी घोषित किया जा सके। गृह मंत्री ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र में इसके लिए प्रक्रिया है, अमेरिका में है, यहाँ तक कि पाकिस्तान, चीन, इज़राइल आदि देशों ने भी ऐसा किया है।
हालाँकि, इसके संसद में पारित हो जाने के बावजूद लोगों ने इसका विरोध जारी रखा और सुप्रीम कोर्ट में इस क़ानून की संवैधानिक वैधता के ख़िलाफ़ जनहित याचिका दायर की गई। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट को किसी भी क़ानून की समीक्षा का अधिकार है और यदि वह इस क़ानून को मौलिक अधिकार का उल्लंघन मानता है तो इसे रद्द भी कर सकता है।
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