प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को पार्टी के दिवंगत नेता मनोहर पर्रिकर के बेटे की बात ज़रूर सुननी चाहिए। क्योंकि कर्नाटक के बाद गोवा में जिस तरह से कांग्रेस विधायकों ने पाला बदला है, उसे देखकर राजनीति की सामान्य समझ रखने वाला आदमी भी कह सकता है कि इसमें ज़रूर बीजेपी ने ‘खेल’ किया है। क्योंकि गोवा में कांग्रेस छोड़ने वाले विधायक बीजेपी में शामिल हुए हैं और कर्नाटक में ही विधायकों की कुछ ऐसी ही ‘इच्छा’ सामने आ रही है।
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गोवा में हुए घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बेटे उत्पल पर्रिकर ने कहा, ‘मेरे पिता ने राजनीति में विश्वास का जो रास्ता तैयार किया था, वह उनकी मौत के साथ ही 17 मार्च को ख़त्म हो गया लेकिन गोवा के लोगों को इसके बारे में अब पता चला।’ बता दें कि 17 मार्च को मनोहर पर्रिकर का निधन हुआ था।
समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए उत्पल ने यह भी कहा कि अब इस बात का फ़ैसला समय ही करेगा कि बीजेपी के समर्पित कार्यकर्ता दूसरी पार्टियों से आए हुए नेताओं और विधायकों को स्वीकार करेंगे या नहीं। उत्पल को उनके पिता की खाली हुई सीट से उपचुनाव में टिकट मिलने की चर्चा थी लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया।
यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपने पिता के दिखाए हुए विश्वास के रास्ते पर चलेंगे, उत्पल ने कहा, ‘मैं ऐसा करने के लिए तैयार हूँ। इसके गंभीर नतीजे हो सकते हैं लेकिन मैं उनका मुक़ाबला करना चाहता हूँ।’
ऐसा नहीं है कि राजनीति में सरकारें गिराने का ‘खेल’ पहले नहीं हुआ है, लेकिन इसे यह कहकर क़तई खारिज नहीं किया जा सकता कि अगर पहले कुछ ग़लत हुआ तो, हम भी ग़लत करेंगे और लोकतंत्र में उसे लोग स्वीकार कर लेंगे। न तो पहले इसे स्वीकार किया गया और न ही देश के लोग निश्चित रूप से इसे अब स्वीकार करेंगे। कर्नाटक के संकट पर देश की सर्वोच्च अदालत ने भी सख़्ती दिखाई है। अदालत ने राज्य के हालात पर चिंता जताई है और कहा है कि स्पीकर इस बारे में आज (11 जुलाई को) ही फ़ैसला लें। बता दें कि गोवा में कांग्रेस के 15 में से 10 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए हैं और इसे लेकर संसद के बाहर कांग्रेस ने प्रदर्शन भी किया है। कांग्रेस का आरोप है कि कर्नाटक और गोवा में लोकतंत्र की हत्या की गई है।
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हमने देखा कि इससे पहले भी कर्नाटक में बीजेपी ने ‘ऑपरेशन लोटस’ चलाया था और राज्य की कांग्रेस-जेडीएस सरकार को गिराने की कोशिश की थी। कर्नाटक और गोवा के संकट के बाद यह आशंका है कि कहीं राजस्थान, मध्य प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में विपक्षी दलों में टूट-फूट का क्रम न शुरू हो जाए। क्योंकि हाल ही में पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के कई नेता बीजेपी में शामिल हो गए हैं और गुजरात के भी कई कांग्रेस विधायकों ने बीजेपी का दामन थामा है।
इससे पता चलता है कि नेताओं की अपने दल के प्रति कोई निष्ठा ही नहीं है, देश के लोकतंत्र और संविधान के प्रति निष्ठा की तो बात ही छोड़िए। जब तक कोई पार्टी सत्ता में है, वे उसके साथ रहते हैं लेकिन सत्ता जाते ही सत्ता में आने वाले दूसरे दलों का हाथ पकड़ने की कोशिश करते हैं।
कांग्रेस में रीता बहुगुणा जोशी, टॉम वडक्कन जैसे वरिष्ठ नेताओं के उदाहरण हमारे सामने हैं। ऐसे नेताओं से आप क्या लोकतंत्र को मजबूत और इसे अक्षुण्ण रखने की उम्मीद कर सकते हैं, क़तई नहीं। क्योंकि ऐसे हालात में यह उम्मीद की भी नहीं जानी चाहिए।
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निश्चित रूप से प्रधानमंत्री मोदी और देश के गृह मंत्री अमित शाह को उत्पल के बयानों के बारे में गहरा मंथन करना चाहिए। क्योंकि मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद पार्टी नेताओं ने उन्हें बहुत दयालु और आदर्श नेता बताया था। ऐसे में पार्टी को मनोहर पर्रिकर के आदर्शों को नहीं भूलना चाहिए। किसी भी दल को दूसरे दल में तोड़फोड़ की कोशिशें क़तई नहीं करनी चाहिए, वरना ऐसे नेताओं की जनता की नज़र में तो प्रतिष्ठा शून्य हो ही जाती है लोकतंत्र को भी इससे नुक़सान होता है। देश की जनता को भी ताक़तवर दलों के साथ जाने की भ्रष्ट कार्य संस्कृति को अपनाने वाले हमारे नेताओं का पूरी तरह बहिष्कार करना चाहिए तभी इस तरह की हरक़तों पर रोक लगेगी।
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