भारत एंटी सैटेलाइट वेपन यानी एसैट से लैस देश बन गया है। भारत इस क्षमता को प्रदर्शित करने वाला दुनिया का चौथा देश है। इससे पहले यह क्षमता अमेरिका, रूस और चीन के पास ही थी। तो यह इतना ख़ास क्यों है और इसकी इतनी महता क्यों है?
एंटी-सैटेलाइट वेपन यानी एसैट अंतरिक्ष में सैटेलाइट को ध्वस्त करने का एक हथियार। यह अंतरिक्ष युद्ध का हथियार है। दो देशों के बीच युद्ध होने पर एंटी सैटेलाइट हथियार से दुश्मन देशों के सैटेलाइट यानी सूचना-तंत्र को तबाह किया जा सकता है। हालाँकि, अभी तक किसी भी देश ने इसको दूसरे देश के ख़िलाफ़ आजमाया नहीं है। एसैट हथियार से लैस चारों देशों ने इसे अपने ही पुराने पड़ चुके सैटेलाइट पर इसका परीक्षण किया है।
बता दें कि इसकी शुरुआत ही शीत युद्ध के समय तब हुई जब अमेरिका और सोवियत संघ (अब रूस) के बीच उन्नत हथियार बनाने की होड़ मची थी। सामरिक महत्व के हथियारों के लिए नयी-नयी संभावनाएँ तलाशी जा रही थीं। दोनों देश ज़मीन की लड़ाई को अंतरिक्ष में ले जाने को आतुर थे।
अमेरिका से शुरू हुआ सफर
पहले अमेरिका ने इसकी शुरुआत की। 50 के दशक के आख़िर में अमेरिका ने सामरिक मिसाइल प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया। बाद में सैटेलाइट को तबाह करने के लिए परमाणु विस्फोट और लेज़र आधारित हथियार पर भी विचार किया गया। कई बार प्रयास के बाद अमेरिका 13 सितंबर 1985 में सैटेलाइट को भेदने में सफल हो पाया।
इसमें रूस भी पारंगत
रूस (पहले का सोवियत संघ) के एंटी सैटेलाइट हथियार की शुरुआत कब हुई, यह साफ़ नहीं है। माना जाता है कि रूस का यह प्रोजेक्ट 1959-60 के आसपास शुरू हो गया था। अमेरिकी ख़ुफ़िया रिपोर्ट के अनुसार रूस ने हाल ही में सातवीं बार पीएल-19 एंटी सैटेलाइट हथियार का परीक्षण किया है।
चीन भी सक्षम
चीन ने 11 जनवरी 2007 में एसैट का सफलतापूर्वक परीक्षण किया और अपने पुराने पड़े सैटेलाइट को नष्ट किया। कुछ प्रमाण यह बताते हैं कि इसने एससी-19 एसैट मिसाइल का 2005, 2006, 2010 और 2013 में भी परीक्षण किया था। माना जाता है कि चीन ने भी इसकी तैयारी काफ़ी पहले से कर रखी थी।
भारत चौथा देश बना
अब भारत ने भी एंटी सैटेलाइट वेपन का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया है। भारत ने एसैट मिसाइल को 'मिशन शक्ति' नाम दिया है। चीन में एसैट प्रोजेक्ट की शुरुआत के बाद भारत की भी अंतरिक्ष में अपनी सुरक्षा को लेकर चिंताएँ हुईं। इस बीच भारत ने भी इस पर काम शुरू कर दिया।
लेकिन पहली बार 2010 में डीआरडीओ ने 97वीं इंडियन साइंस कांग्रेस में कहा कि वह एसैट मिसाइल तैयार कर रहा है। 2011 में तत्कालीन रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार वी. के. सारस्वत ने कहा था कि एसैट की क्षमता सिद्ध हो गयी है। इसके बाद 2012 में भी दोहराया गया गया था कि भारत के पास एंटी सैटेलाइट मिशन के लिए सभी तकनीक उपलब्ध हैं। यह लो-अर्थ ऑर्बिट और पोलर ऑर्बिट में दुश्मन देशों की सैटेलाइट को ख़त्म कर सकता है।
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