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कोरोना संकट: क्या वाकई कर्नाटक भगवान भरोसे है?

क्या कर्नाटक में लोग अब भगवान भरोसे हैं? कोविड-19 के मामलों को बढ़ने से रोकने में नाकाम रही येदियुरप्पा सरकार ने क्या हाथ खड़े कर दिये हैं और सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया है? राज्य के स्वास्थ्य मंत्री बी. श्रीरामुलु के एक बयान ने ऐसे ही सवाल खड़े किये हैं और इन्हीं सवालों को लेकर विपक्षी पार्टियाँ– कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) सत्ताधारी बीजेपी पर हमले बोल रही हैं। 

बीते दिनों पत्रकारों से बातचीत के दौरान स्वास्थ्य मंत्री बी. श्रीरामुलु ने कहा था, “सिर्फ भगवान ही कोरोना से बचा सकते हैं, सरकार क्या कर सकती है।” इस बयान ने विपक्ष को सरकार पर हमला बोलने के लिए एक ज़बरदस्त हथियार दे दिया।

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प्रदेश में कांग्रेस के मुखिया डी. के. शिवकुमार ने मौका गँवाये बिना सरकार पर निशाना साधा और कहा कि स्वास्थ्य मंत्री का बयान येदियुरप्पा सरकार की लापरवाही का कबूलनामा है। अगर सरकार इस महामारी का मुकाबला नहीं कर सकती है, तो उसके सत्ता में बने रहने का कोई मतलब नहीं बनता। इसी तरह के बयान दूसरे विपक्षी नेताओं ने भी दिये। 

मंत्री ने दी सफाई 

मामले को हाथ से निकलता देखकर मंत्री ने सफाई देने की कोशिश की और वही दांव आज़माया जो कि आम तौर पर अपने बयानों की वजह से निशाने पर आये नेता अपनाते हैं। श्रीरामुलु के कहा कि मीडिया ने उनके बयान का गलत मतलब निकाला। मंत्री ने कहा कि सरकार लोगों को कोविड-19 से बचने के उपाय बता रही है और अगर लोग नियमों का पालन नहीं करेंगे तो क्या होगा। 

उन्होंने कहा, ‘वैसे भी अभी इस महामारी से बचाने वाला न टीका बना है, न ही इसके इलाज के लिए दवाई आई है। ऐसे में जनता के सहयोग और भगवान की कृपा से ही हम इस महामारी को हरा सकते हैं।’ लेकिन मंत्री की सफाई का हमलावर विपक्ष पर कोई असर नहीं पड़ा। 

कुछ नेताओं ने तो पूरे राज्य मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने की मांग तक कर डाली। इसी बीच हुई एक और घटना ने सरकार की मुसीबत बढ़ा दी। हुआ यूं था कि एक व्यक्ति मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के आवास के पास पहुंचा और रोने लगा। इस व्यक्ति का कहना था कि वह कोरोना पॉजिटिव है और किसी भी अस्पताल में उसके लिए बेड नहीं है। इस व्यक्ति ने कहा कि उसका पाँच साल का लड़का भी बीमार है और उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। 

अस्पतालों का मनमाना रवैया 

मदद की गुहार सुनकर मुख्यमंत्री कार्यालय के कर्मचारी हरकत में आये और एम्बुलेंस बुलवाकर इस व्यक्ति को अस्पताल भिजवाया। बड़ी बात यह है कि यह व्यक्ति एक मेडिकल कॉलेज में ड्राइवर है। बुखार आने और शक होने पर इस व्यक्ति ने अपना टेस्ट करवाया और जब यह पता चला कि वह कोविड-19 का मरीज है तब उसने इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती होने की कोशिश की। लेकिन एक भी अस्पताल ने उसे भर्ती नहीं किया। 

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कई अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद वह पुलिस स्टेशन गया। पुलिस स्टेशन से उसे यह कहते हुए भगा दिया गया कि उसे अस्पताल जाना चाहिए और पुलिस इस मामले में उसकी मदद नहीं कर सकती है। इसके बाद यह व्यक्ति अपने बच्चे के साथ सीधे मुख्यमंत्री निवास के पास पहुँचा और हंगामा खड़ा किया। इस व्यक्ति का आरोप था कि सरकारी हेल्पलाइन से भी कोई मदद नहीं मिली। 
सही समय पर अस्पताल में दाखिला और इलाज न मिलने की शिकायतें इससे पहले भी आयी हैं और अब भी आ रही हैं। इस तरह की घटनाओं की वजह से कर्नाटक सरकार निशाने पर है।

‘टोटल लॉकडाउन’ लगाना पड़ा 

लगातार बढ़ते मामलों के मद्देनजर कर्नाटक सरकार को बैंगलुरू शहर और ग्रामीण जिले में एक हफ्ते के लिए ‘टोटल लॉकडाउन’ लगाने पर मजबूर होना पड़ा। लेकिन लॉकडाउन लगाने के बावजूद मामले कम नहीं हुए हैं। कर्नाटक में कोविड-19 के मामलों का आंकड़ा पचास हज़ार को पार गया है और इसने गुजरात को पछाड़ दिया है और महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली के बाद चौथे नंबर पर है। 

कर्नाटक में एक्टिव केस भी 30 हज़ार से ज़्यादा हैं। राज्य में अब तक इस महामारी की वजह से 1032 लोगों की मौत हो चुकी है। ऐसी हालत में खुद स्वास्थ्य मंत्री के भगवान भरोसे वाले बयान ने लोगों को भी सरकार की तैयारी पर संदेह करने पर मजबूर कर दिया है।

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