loader

कर्नाटक: अगला चुनाव लड़ने की तैयारी में सिद्धारमैया!

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने अगला विधानसभा चुनाव लड़ने का मन बना लिया है। सिद्धारमैया के इस फ़ैसले से कुछ कांग्रेसी नेता नाराज़ दिख रहे हैं। सूत्रों की मानें तो इससे ऐसे नेता नाराज़ हैं जो अगले चुनाव के दौरान खुद को कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश करवाने की कोशिश में हैं। 

सूत्र बताते हैं कि इन नाराज़ नेताओं में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी. के. शिव कुमार, पूर्व उपमुख्यमंत्री परमेश्वर, पूर्व मंत्री दिनेश गुंडू राव प्रमुख हैं। कर्नाटक में मई, 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं। 

ताज़ा ख़बरें

'इमोशनल कार्ड' खेला था

ग़ौरतलब है कि पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान सिद्धारमैया ने एलान किया था कि यह उनका आख़िरी चुनाव है और वे आगे कभी कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे। जानकारों का कहना है कि सिद्धारमैया को उस समय लगा था कि कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि वे ख़ुद भी हार रहे हैं, इस वजह से जीत के लिए उन्होंने यह 'इमोशनल कार्ड' खेला था।

Siddaramaiah will contest karnataka assembly election 2023 - Satya Hindi

हार गए थे सिद्धारमैया

मतदान के ऐन पहले सिद्धारमैया ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि यह उनका आखिरी चुनाव है। उन्होंने जनता से अपील की थी कि वह कांग्रेस और उन्हें जिताकर मुख्यमंत्री के तौर पर सेवा करने का आखिरी मौका दें। लेकिन यह दांव काम नहीं आया और सिद्धारमैया अपने गृह ज़िले की चामुंडेश्वरी सीट से चुनाव हार गये। 

हार भी करारी थी, क्योंकि मुख्यमंत्री होने के बावजूद वे जेडीएस के उम्मीदवार जी. टी. देवेगौड़ा से तीस हजार से ज़्यादा वोटों के अंतर से हारे थे। सिद्धारमैया को हार का आभास पहले ही हो गया था, इस वजह से उन्होंने बेल्लारी ज़िले की बदामी सीट से भी चुनाव लड़ा था। इस सीट को चुनने की एक खास वजह थी। 

Siddaramaiah will contest karnataka assembly election 2023 - Satya Hindi

बदामी से बमुश्किल जीते थे

बदामी विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में सिद्धारमैया की जाति 'कुरुबा' के लोगों की संख्या सबसे ज़्यादा है। सिद्धारमैया को यह सीट सबसे सुरक्षित सीट लगी। यहां जीत तो मिली लेकिन वे हारते-हारते बचे। बीजेपी के श्रीरामुलु ने उन्हें कड़ी टक्कर दी। सिद्धारमैया सिर्फ 1696 वोटों के अंतर से जीते। कांग्रेस भी सत्ता नहीं बचा पायी और किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। 

कांग्रेस-जेडीएस गठजोड़

बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस ने जेडीएस से गठजोड़ कर लिया। सूत्र बताते हैं कि सिद्धारमैया इस गठजोड़ के खिलाफ थे क्योंकि वे खुद जेडीएस के उम्मीदवार से हारे थे। 

सिद्धारमैया की नाराज़गी की एक वजह यह भी थी कि ज़्यादा सीटें होने के बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने मुख्यमंत्री की कुर्सी जेडीएस के कुमारस्वामी को देने का फैसला किया था। सिद्धारमैया जेडीएस छोड़कर ही कांग्रेस में आये थे। उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा की पार्टी में परिवारवाद रास नहीं आया था। बगावत कर वे जेडीएस से कांग्रेस में आये और कांग्रेस को चुनाव जितवाकर मुख्यमंत्री बने थे। 

2018 में आगे चुनाव न लड़ने की घोषणा और चामुंडेश्वरी सीट से हार के बाद कइयों ने यह मान लिया था कि सिद्धारमैया चुनावी राजनीति से दूर हो गये हैं। लेकिन अब उन्होंने फिर से चुनाव लड़ने का मन बनाकर कइयों की नींद खराब कर दी है।

चामराजपेट सीट से लड़ेंगे! 

विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि सिद्धारमैया अगला विधानसभा चुनाव बेंगलुरू शहर की चामराजपेट सीट से लड़ेंगे। सिद्धारमैया को शंका है कि अगर वे अपने गृह ज़िले से दुबारा लड़े तब विपक्षी पार्टी के नेता और कांग्रेस में उनके विरोधी मिलकर उन्हें हराने के लिए पूरी ताकत लगा देंगे। इसी वजह से उन्होंने एक ऐसी सीट चुनी है, जिसे वे सुरक्षित मानते हैं। चामराजपेट में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। साथ ही यहां पिछड़ी जाति के मतदाता भी काफी प्रभाव रखते हैं। यहां से मौजूदा विधायक ज़मीर अहमद खान कांग्रेस के नेता हैं और वे सिद्धारमैया के कट्टर समर्थक हैं। वे यह सीट सिद्धारमैया के लिए छोड़ने को राज़ी हो गये हैं। 

कर्नाटक से और ख़बरें

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर सिद्धारमैया चुनाव लड़ते हैं तो वे खुद को ही मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश करेंगे। इसी बात से वाकिफ़ होकर शिव कुमार, परमेश्वर, दिनेश गुंडू राव जैसे बड़े नेता परेशान हैं। 

सूत्रों के मुताबिक़, मल्लिकार्जुन खड़गे, वीरप्पा मोईली, के.एच. मुनियप्पा जैसे पुराने कांग्रेसी भी सिद्धारमैया को दोबारा मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाये जाने के पक्ष में नहीं हैं। इन 'सदैव कांग्रेसी' नेताओं को यह बात और भी खल रही है कि सिद्धारमैया अपने किसी शिष्य को प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष बनाने की कोशिश में हैं। 

विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि सिद्धारमैया ने अपने समर्थक और लिंगायत नेता एम. बी. पाटिल को नया प्रदेश अध्यक्ष बनाने की कोशिश शुरू की है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि नेताओं के बीच आपसी लड़ाई ही कांग्रेस को सबसे ज़्यादा नुकसान पहुंचा रही है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
दक्षिणेश्वर

अपनी राय बतायें

कर्नाटक से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें