महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो रहा है। बीजेपी-शिवसेना पिछली बार की तनातनी भूलकर इस बार साथ चुनाव मैदान में उतरे हैं। लेकिन मतदान से एक दिन पहले शिवसेना ने बीजेपी पर ज़ोरदार वार किया और यह माना जा रहा है कि दोनों दलों के बीच रिश्ते सुधरे नहीं हैं। ये वैसे ही हैं जैसे महाराष्ट्र में पाँच साल तक सरकार चलाने के दौरान रहे। इस बार भी टिकट बँटवारे के दौरान ऐसी ख़बरें आई थीं कि शिवसेना को न चाहते हुए भी बीजेपी की शर्तों के सामने झुकना पड़ा।
शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में रविवार को एक लेख लिखा है। लेख में राउत ने कहा है कि जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कह रहे हैं कि राज्य में विपक्ष नहीं बचा है, तो बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की इतनी रैलियाँ क्यों करवा रही है?
राउत ने लिखा, ‘मुख्य मंत्री इस बात पर जोर देते रहे हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान विपक्ष का कोई अस्तित्व ही नहीं दिखा। ऐसे में यह सवाल उठता है कि फिर मोदी की 10 और शाह की 30 रैलियाँ क्यों करवाई गई हैं? इसके अलावा ख़ुद फडणवीस राज्य भर में 100 से ज़्यादा रैलियाँ कर चुके हैं।’ राउत ने आगे लिखा है, ‘हालांकि फडणवीस कहते हैं कि उन्हें विपक्ष की ओर से कोई चुनौती नहीं मिली है लेकिन वास्तव में उनके सामने चुनावी चुनौती है और इसी ने बीजेपी नेताओं को ज़्यादा रैलियाँ करने के लिए मजबूर किया है।’
राउत ने यह भी लिखा है कि कुछ इसी तरह के सवाल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने भी उठाये थे और वे सवाल ग़लत नहीं हैं। उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे के चुनाव मैदान में उतरने को लेकर राउत ने कहा कि आदित्य विधानसभा में बैठने के लिए चुनाव नहीं लड़ रहे हैं बल्कि युवा पीढ़ी उन्हें राज्य का नेतृत्व करते हुए देखना चाहती है।
राउत ने अपने लेख में इस ओर भी इशारा किया है कि चुनाव प्रचार के दौरान शिवसेना ने आम आदमी के मुद्दों पर बात की जबकि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और राम मंदिर निर्माण जैसे मुद्दे पहली बार महाराष्ट्र के चुनाव में उठाये गये। राउत ने लिखा है कि मुख्य मंत्री फडणवीस ने पाँच साल तक सरकार में रहकर क्या किया, वोटिंग के दौरान इसकी भी परीक्षा होगी।
पवार का दिया था साथ
इससे पहले शरद पवार पर जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने महाराष्ट्र सहकारी बैंक घोटाला मामले में कार्रवाई की थी, तब भी शिवसेना ने नाराजगी जताई थी। संजय राउत ने कहा था कि पवार वरिष्ठ नेता हैं और उनका पूरे महाराष्ट्र में आधार है और पवार का नाम इस मामले में घसीटने की कोई ज़रूरत नहीं थी।
आदित्य को लेकर बढ़ा था तनाव
आदित्य ठाकरे वर्ली विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं और वह चुनाव लड़ने वाले ठाकरे परिवार के पहले सदस्य हैं। महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में यह सवाल पूछा जा रहा है कि ठाकरे परिवार के किसी सदस्य को चुनाव लड़ने की ज़रूरत आख़िर क्यों पड़ी? और क्या उद्धव आदित्य को भावी मुख्यमंत्री बनाने की किसी रणनीति पर काम कर रहे हैं।
बीजेपी मुख्य मंत्री पद को लेकर स्पष्ट कह चुकी है कि वह पद उसी के पास रहेगा और इस बात की भी संभावनाएँ बहुत कम हैं कि वह आदित्य को उप मुख्यमंत्री की कुर्सी देगी। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल भी साफ़ कह चुके हैं कि उप मुख्यमंत्री का पद नहीं दिया जायेगा। जबकि उद्धव ठाकरे आदित्य को मुख्य मंत्री बनते देखना चाहते हैं।
2014 में टूट गया था गठबंधन
2014 के विधानसभा चुनाव में 25 साल पुराना बीजेपी-शिवसेना का गठबंधन टूट गया था और बीजेपी ने शिवसेना के मुक़ाबले क़रीब दो गुना सीट जीती थी। तब बीजेपी को 122 और शिवसेना को 63 सीटें मिली थीं। शिवसेना के लिए यह हार पचा पाना मुश्किल था लेकिन ना चाहते हुए भी उसे बीजेपी का समर्थन कर उसकी सरकार बनानी पड़ी।
उद्धव का रहा विरोधी रुख
फडणवीस सरकार के दौरान उद्धव ठाकरे पाँच साल तक सरकार में सहयोगी रहने के बाद भी विरोधियों जैसा रुख अपनाते रहे। लेकिन फिर भी उन्हें लोकसभा चुनाव में बीजेपी के साथ समझौता करना पड़ा।
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