टीआरपी का खेल अच्छी पत्रकारिता को धीरे धीरे ख़त्म करता जाता है और लोगों की समस्याएं और जन उपयोगी सामग्री टीवी से दूर होता जाता है। कैसे, समझें इस लेख में।
टीआरपी रेटिंग में गड़बड़ी का सबसे बड़ा कारण बहुत कम संख्या में बॉक्स का लगाया जाना है। देश में इस समय 44 हज़ार बॉक्स लगे हैं। जबकि टीवी सेट की संख्या 20 करोड़ है और क़रीब 80 करोड़ लोग रोज़ टीवी देखते हैं।
भारत ने चीन को भी एक संदेश दिया है कि जिस तरह वह भारत की सम्प्रभुता का सम्मान नहीं करता है उसी तरह भारत भी चीन की प्रादेशिक एकता का सम्मान करने के लिये प्रतिबद्ध नहीं है।
जब पूरा देश और मीडिया न्यायालय से पहले ख़ुद ही न्यायालय बन बैठा था और रिया चक्रवर्ती को अपराधी साबित करने में जुटा हुआ था, मुंबई हाईकोर्ट ने यह कहते हुए उसे ज़मानत दे दी कि रिया पर कोई आपराधिक मामला नहीं बन रहा है।
पत्रकारिता की साख और सम्मान को गिराने में टीवी न्यूज़ मीडिया ने प्रिंट के मुक़ाबले बहुत तेज़ी से शर्मनाक योगदान दिया है और इसकी क़ीमत पूरी इंडस्ट्री को चुकानी पड़ेगी।
लोक नायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) की पुण्यतिथि के तीन दिन बाद यानी ग्यारह अक्टूबर को उनकी जयंती है। सोचा जा सकता है कि वे आज अगर हमारे बीच होते तो क्या कर रहे होते!
हाथरस केस में जिस ‘जस्टिस फ़ॉर हाथरस विक्टिम.कॉर्र्ड.को’ के ज़रिए ‘दंगा फैलाने की साज़िश का पर्दाफाश’ हुआ वह 30 सितंबर को बनी थी। वेबसाइट ने महज ढाई घंटे में ऐसी क्या स्थिति पैदा कर दी कि शव को आधी रात को जलाना पड़ा?
यह सर्वविदित है कि आरएसएस में ब्राह्मणों का वर्चस्व है जबकि योगी आदित्यनाथ की हिन्दू युवा वाहिनी में ठाकुरों का दबदबा है। हाल की घटनाओं से ऐसा लगता है जैसे संघ और योगी के दरम्यान शह और मात का खेल चल रहा है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से एक दिन पहले दिए गये बयान को भी इन सुर्खियों से जोड़ा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था, 'जिन्हें विकास अच्छा नहीं लग रहा है, वह जातीय व सांप्रदायिक दंगा भड़काना चाहते हैं।'
भारत में ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ लोकतंत्र की समतावादी माँगों के ख़िलाफ़ उच्च जातियों के विद्रोह के रूप में देखा जा सकता है। हिंदुत्व परियोजना उच्च जातियों के लिए एक जीवनदान है।
अपनी सरकार में अपराध होने पर सत्ताधारी दल चुप रहता है लेकिन यही दल विपक्ष में होने पर ऐसे मुद्दों पर हंगामा खड़ा कर देता है। राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी कब तय होगी?
हाथरस गैंगरेप में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जो कुछ किया, उसके बाद यह सवाल हर कोई एक-दूसरे से पूछ रहा है कि आखिर योगी, उनकी सरकार या बीजेपी को इससे फायदा क्या हुआ?