‘वर्ल्ड हैपिनेस रिपोर्ट-2020’ बताती है कि भारत खुशहाल देशों की सूची में पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल से पीछे है जबकि 2013 तक उसकी स्थिति ठीक थी। आख़िर ऐसा क्यों हुआ है।
चंद रोज़ पहले तक सवा सौ करोड़ की आबादी के इस मुल्क में संक्रमण पर प्रभावी नियंत्रण दिखाई दे रहा था। लेकिन अब स्थिति नियंत्रण से बाहर होती दिख रही है। इसके लिए ज़िम्मेदार कौन?
लम्बे समय तक चल सकने वाले लॉकडाउन के दौरान हमें इस एक सम्भावित ख़तरे के प्रति भी सावधान हो जाना चाहिए कि अपने शरीरों को ज़िंदा रखने की चिंता में ही इतने नहीं खप जाएँ कि हमारी व्यक्तिगत और सामूहिक आत्माएँ और आस्थाएँ ही मर जाएँ।
कोरोना वायरस की महाआपदा ने देश की न्यायिक व्यवस्था को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर दिया है। भले ही अभी इस तरफ़ बहुत कम लोगों का ध्यान गया है लेकिन आने वाले समय में इस क्षेत्र में आपको व्यापक परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं।
क्या 14 अप्रैल के बाद लॉकडाउन ख़त्म होगा। लेकिन इससे अहम सवाल है कि केंद्र और राज्य सरकारें लॉकडाउन के बाद पैदा होने वाले हालात से निपटने के लिए तैयार हैं?
कोरोना वायरस से व्याप्त वर्तमान माहौल में सबसे नाजुक स्थिति विभिन्न आयु-समूहों के बच्चों और विद्यार्थियों की है। वायरस से बचाने के लिए बच्चों के स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए हैं और वे बड़ों के साथ घरों में कैद रहने को मजबूर हैं।
जमाते-तब्लीग़ी का दोष बिल्कुल साफ़-साफ़ है लेकिन इसे हिंदू-मुसलमान का मामला बनाना बिल्कुल अनुचित है। लेकिन मौलाना साद ने अपनी करतूतों के लिए पश्चाताप नहीं किया और माफ़ी नहीं माँगी है।
जिन सवालों के जवाब माँगे जाने चाहिए उन्हें कोई पूछने की हिम्मत भी नहीं कर रहा है, विपक्ष भी नहीं। और जो कुछ कभी पूछा ही नहीं गया उसके जवाब हर तरफ़ से प्राप्त हो रहे हैं।