मुफ़्तखोरी का दांव पंजाब में भी खेला जा रहा है। पंजाब में अगले साल के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल ने धमाका करते हुए बिजली पर ही दूसरी पार्टियों को तीन करंट लगा दिए। नंबर एक- अगर आप जीतकर आई तो पंजाब में हर घर में 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त दी जाएगी। नंबर दो- बिजली के पुराने सारे बिल माफ़ कर दिए जाएंगे और नंबर तीन- 24 घंटे बिजली मिलेगी।
चुनाव से पहले जनता को मुफ्त सौगातें देने की यह घोषणा दिल्ली से भी एक कदम आगे है। दिल्ली में 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त दी जाती है और अगर आपका बिल 201 से 400 यूनिट तक है तो फिर बिजली का आधा बिल माफ़ होता है।
दिल्ली में अब तक बिजली के पुराने बिल कभी भी माफ़ नहीं किए गए, अलबत्ता पानी के बिल जरूर माफ़ किए गए हैं। जहां तक 24 घंटे बिजली की सप्लाई का सवाल है तो दिल्ली में यह व्यवस्था 2013 से पहले ही हो गई थी क्योंकि 2002 में बिजली के निजीकरण के बाद प्राइवेट कंपनियों ने बिजली कट होने की शिकायतों को तो करीब-करीब खत्म कर दिया था।
केजरीवाल ने पंजाब में दिल्ली के सफल फ़ॉर्मूले को ही लागू करने की घोषणा की है। दरअसल, दिल्ली में 2015 में आम आदमी पार्टी के ‘बिजली हाफ और पानी माफ़’ फ़ॉर्मूले की तोड़ न तो कांग्रेस ढूंढ पाई और न ही बीजेपी।
सच तो यह है कि आज भी नहीं ढूंढ पाए हैं। मगर, पंजाब में 2017 में भी बिजली हाफ का फार्मूला आजमाया गया था लेकिन सफल नहीं हुआ। आप अगर गौर करें तो दिल्ली में भी 2020 के चुनावों में आम आदमी पार्टी को बिजली हाफ के फ़ॉर्मूले से आगे बढ़ना पड़ा था।
निगम, लोकसभा चुनाव में झटका
दिल्ली में जब 2015 में ‘बिजली हाफ और पानी माफ़’ का फ़ॉर्मूला चल गया तो आम आदमी पार्टी ने यह मान लिया था कि उसे अब कोई माई का लाल नहीं रोक सकता लेकिन 2017 के नगर निगम चुनावों और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को एक बड़ी ठोकर लगी।
नगर निगम में तो फिर भी उसने कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए मुख्य विपक्षी दल के रूप में दूसरा स्थान हासिल कर लिया था लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव तो आम आदमी पार्टी की नींद ही उड़ाने वाला था।
दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों पर तो सफाया हुआ ही था, चार सीटों पर तो उसकी जमानत ही जब्त हो गई थी। सात में से पांच सीटों पर उसके उम्मीदवार तीसरे नंबर पर थे और कांग्रेस नंबर दो पर आ गई थी। 2015 के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी का वोट प्रतिशत 54 फीसदी था तो 2019 के चुनावों में 18 फीसदी पर आ गया था।
फ़ॉर्मूले को दिया विस्तार
इस झटके के बाद आम आदमी पार्टी को अहसास हुआ कि अब मुफ़्तखोरी के फ़ॉर्मूले को और विस्तार देना होगा। बिजली हाफ की जगह 200 यूनिट तक बिजली बिलकुल फ्री कर दी गई। पानी के सारे पुराने बिल माफ़ कर दिए गए। बस और मेट्रो में महिलाओं की मुफ्त सवारी का एलान कर दिया। यह बात और है कि मेट्रो में उसकी चल नहीं पाई।
बुजुर्गों की मुफ्त तीर्थ यात्रा, स्टूडेंट्स की बोर्ड परीक्षा की फीस माफ़, ऑटो, टैक्सी वालों के पुराने टैक्स माफ़ और न जाने क्या-क्या फ्री कर दिया। एक बार फिर मुफ़्तखोरी का फार्मूला चल निकला और 2020 के विधानसभा चुनावों में फिर से 70 में से 63 सीटें आ गईं।
दरअसल, इन चुनावों से आम आदमी पार्टी को यह सबक मिला कि एक बार फ्री सुविधा देने के बाद अगली बार जनता और ज्यादा मांगती है। इसीलिए अब उन्होंने पंजाब में भी जनता मांगे मोर की नब्ज पकड़ते हुए मुफ्त सुविधाओं के वायदे का पिटारा खोल दिया है।
2017 में नहीं हुआ असर
अगर पंजाब के 2017 के विधानसभा चुनावों पर नजर डालें तो तब भी आम आदर्मी पार्टी ने 400 यूनिट तक बिजली के बिल हाफ का वादा किया था। फ्री वाई फाई के साथ-साथ मुहल्ला क्लीनिक, 25 लाख जॉब, विदेश में रोजगार के अवसर, किसानों के कर्जे माफ़, बुजुर्गों की पेंशन में बढ़ोतरी, अमृतसर और आनंदपुर साहिब को पवित्र नगरी घोषित करना, पंजाब को नशा मुक्त बनाना, गरीबों के लिए 5 रुपये की थाली और भ्रष्टाचार मुक्त पंजाब जैसे वादे किए थे। इनमें से किसी भी वादे पर जनता नहीं फिसली।
जो आम आदमी पार्टी 117 में से 100 सीटें जीतने जैसे सर्वेक्षण होने का दावा कर रही थी, वह 20 सीटों पर सिमट गई थी। अब केजरीवाल ने वे वादे करने की ठान ली है जो जनता की जेब पर सीधा असर डालते हैं।
केजरीवाल को भी पता है कि आम आदमी को इस बात में अब कोई रूचि नहीं है कि पंजाब नशामुक्त या भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा। पंजाब के युवा को इस बात का भी भरोसा नहीं होगा कि कोई सरकार 25 लाख नौकरियां उपलब्ध कराएगी या विदेशों में जाने के ज्यादा मौके देगी।
पंजाब में 5 रुपये की थाली से भी किसी को रूचि नहीं है। उनका सारा ध्यान इस बात पर रहेगा कि बिजली का बिल कितना माफ़ होगा और पानी कितना मुफ्त मिलेगा। दिल्ली में जनता की नब्ज पकड़ने के बाद अब पंजाब में भी वह इसी फ़ॉर्मूले से नब्ज टटोल रहे हैं।
जनता चुकाती है कीमत
सच्चाई यह है कि जनता को इस बात से कोई लेना-देना नहीं होता कि बिजली के बिल या पानी के बिलों की सब्सिडी देने के लिए सरकार कहां से पैसा लाएगी। अरविंद केजरीवाल लाख कहते रहें कि वह जनता के पैसे से ही जनता को सुविधाएं दे रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि इस मुफ़्तखोरी की कीमत असल में जनता को ही चुकानी पड़ती है।
दिल्ली में अब तक छह सालों में 23 हजार करोड़ रुपया सिर्फ बिजली की सब्सिडी के रूप में दिया जा चुका है। दिल्ली में 2013 में जल बोर्ड 800 करोड़ रुपये के मुनाफे में था और 350 करोड़ रुपये फिक्स्ड डिपाजिट के रूप में थे। आज जल बोर्ड सालाना 1500 करोड़ रुपये के घाटे में है।
सात सालों में 47 हजार करोड़ रुपया जल बोर्ड को दिया जा चुका है लेकिन दिल्ली की जनता को दिन भर में दो बार मुश्किल से दो-ढाई घंटे पानी की सप्लाई मिल पा रही है। सात साल में एक भी बड़ा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट नहीं बना। दिल्ली में सात सालों में डीटीसी के बेड़े में एक भी नई बस नहीं लाई जा सकी।
कामकाज पर सवाल?
आम आदमी पार्टी सरकार के आने के बाद दिल्ली में एक भी बड़ा फ्लाई ओवर प्रोजेक्ट नहीं आया। जो फ्लाई ओवर बने, वे शीला दीक्षित सरकार के दौरान बनने शुरू हो गए थे या फिर योजनाएं जमीन पर उतरनी शुरू हो गई थीं। एक भी नया अस्पताल बनना शुरू नहीं हुआ। बुराड़ी और द्वारका में जो अस्पताल बने हैं, वे कब के बनकर तैयार थे।
कोरोना की दूसरी लहर में दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाएं जिस तरह ध्वस्त हुई हैं, वह किसी से छिपा नहीं है। एक मोहल्ला क्लीनिक पर 20 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं लेकिन कोरोना महामारी में ये क्लीनिक किसी काम नहीं आए। 500 मोहल्ला क्लीनिक सिर्फ ढांचा बनकर रह गए।
बाक़ी दलों का भी यही हाल
जब किसी सरकार के मुंह पर जनता को मुफ़्तखोरी से समर्थन पाने का खून लग जाता है तो फिर उसका सारा ध्यान इसी तरफ लग जाता है। पंजाब में भी आम आदमी पार्टी ने जनता के सामने यही दाना डालना शुरू कर दिया है। यहां इस बात पर भी हैरानी होती है कि दूसरी पार्टियां भी कई बार इसी तरह की रियायतें देने में पीछे नहीं हटतीं।
गैर-कानूनी वायदे?
सारी जनता को बिजली मिले, पानी मिले यह सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन यह सामाजिक कार्य नहीं है। हां, गरीबों के लिए सरकार कुछ खास इंतजाम कर सकती है। गरीबों को उनकी आय के सबूत के आधार पर अगर मुफ्त हैल्थ सुविधाएं मिलें या एजुकेशन फ्री हो तो भी समझ में आता है लेकिन चुनावों का इस्तेमाल करके इन वादों से वोट बटोरने की कोशिश को क्या गैर-कानूनी और अनैतिक नहीं माना जाना चाहिए?
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