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तमिलनाडु: 'मिशन 200' में जुटे स्टालिन, भ्रष्टाचार को बनाया मुद्दा

डीएमके अध्यक्ष एम.के. स्टालिन ने अपने 'मिशन 200' को कामयाब करने के लिए भ्रष्टाचार, तमिल स्वाभिमान और द्रविड़ सिद्धांतों को मुख्य चुनावी मुद्दे बनाने का फैसला किया है। स्टालिन ने मई, 2021 में होने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में कम से कम 200 सीटें जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 

234 सीटों वाली विधानसभा में इतनी सीटें जीतना आसान नहीं है। लेकिन, जिस तरह की शानदार जीत डीएमके ने अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ मिलकर 2019 के लोकसभा चुनाव में दर्ज की थी, उससे उत्साहित स्टालिन ने विधानसभा चुनाव के लिए 200 सीटों का लक्ष्य रखा है। 

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2019 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु की 39 में से 38 सीटों पर डीएमके और उसकी सहयोगी पार्टियों ने जीत दर्ज की थी। डीएमके के सभी उम्मीदवार विजयी हुए थे। थेनि सीट से कांग्रेस के  उम्मीदवार की हार हुई थी। इस सीट को छोड़कर राज्य की बाकी सारी सीटों पर डीएमके और सहयोगियों की जीत हुई थी। 

राज्यपाल से की शिकायत

स्टालिन को लगता है कि मौजूदा सरकार के खिलाफ जनता में काफी रोष है। डीएमके का आरोप है कि तमिलनाडु में भ्रष्टाचार चरम पर है और जनता इससे त्रस्त है। हाल ही में स्टालिन ने राज्यपाल भंवरलाल पुरोहित से मिलकर उन्हें अन्ना डीएमके सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की लिस्ट सौंपी और इन आरोपों की जाँच कराने की माँग की। 

स्टालिन ने भ्रष्टाचार के अलावा तमिल स्वाभिमान और द्रविड़ सिद्धांतों को भी राजनीतिक हथियार बनाकर सत्ताधारी पार्टी पर हमले करने की रणनीति बनाई है।

दिल्ली के हाथ में सत्ता?

डीएमके का आरोप है कि मुख्यमंत्री पलानीसामी और उपमुख्यमंत्री पन्नीरसेल्वम स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते हैं और ये दोनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के इशारों पर काम कर रहे हैं। स्टालिन वोटरों को यह कहकर अपनी ओर खींचने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर अन्ना डीएमके सत्ता में बनी रही, तो प्रदेश में शासन दिल्ली का ही होगा। राज्य से जुड़े सभी राजनीतिक और प्रशासनिक फैसले दिल्ली में लिए जाएंगे। इतना ही नहीं, बीजेपी के प्रभाव में अन्ना डीएमके द्रविड़ मूल्यों को छोड़ चुकी है और वह भी साम्प्रदायिक रंग में रंगने लगी है। 

Stalin mission 200 in Tamilnadu assembly election 2021 - Satya Hindi

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अन्ना डीएमके के बीजेपी के साथ गठगोड़ को मुद्दा बनाकर स्टालिन अल्पसंख्यकों, दलितों और अति पिछड़ी जाति के मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में जुटे हैं। डीएमके के रणनीतिकारों का मानना है कि तमिलनाडु में अब भी ज़्यादातर लोग 'मनुवादी विचारधारा' के खिलाफ हैं। 

इतना ही नहीं, कई लोग बीजेपी को इसी विचारधारा को आगे बढ़ाने वाली पार्टी के तौर पर देखते हैं। चूंकि पिछले चार दशकों से तमिलनाडु में द्रविड़ संस्कृति, मूल्यों को मानने वाली पार्टियाँ ही सत्ता में रही हैं, इसलिए डीएमके को लगता है कि बीजेपी से गठजोड़ करने के बाद अन्ना डीएमके को लोग अब द्रविड़ पार्टी की तरह नहीं देखेंगे। 

डीएमके के नेताओं को यह भी भरोसा है कि अन्ना डीएमके के पास कोई करिश्माई नेता न होने का सीधा फायदा उन्हें ही मिलेगा। 'अम्मा' यानी जयललिता के निधन से अन्ना डीएमके में कोई करिश्माई और सर्वमान्य नेता नहीं बचा है।

दो दलों का वर्चस्व

गौर करने वाली बात है कि द्रविड़ आंदोलन के प्रणेता 'पेरियार' रामसामी की पार्टी द्रविड़ कड़गम से अलग होकर अन्नादुरै ने कुछ नेताओं के साथ मिलकर द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) बनाई थी। करुणानिधि और एम.जी.रामचंद्रन (एमजीआर) भी इस पार्टी से जुड़ गये थे। लेकिन अन्नादुरै के निधन के बाद करुणानिधि और एमजीआर में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई। एमजीआर ने अपनी अलग पार्टी ऑल इंडिया अन्ना डीएमके बना ली। तब से लेकर अब तक तमिलनाडु में या तो डीएमके की सरकार रही है या अन्ना डीएमके की। 

तमिलनाडु में पिछले साढ़े नौ सालों से अन्ना डीएमके की सरकार है। इन साढ़े नौ सालों में तमिलनाडु की राजनीति के दो दिग्गजों जयललिता और करुणानिधि का निधन हो गया। 

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सुपरस्टार रजनीकांत की राजनीति में एंट्री की घोषणा से राजनीतिक समीकरण बदलने के आसार हैं, लेकिन डीएमके के नेता मानते हैं कि अब की बारी स्टालिन की है। वे पिछले कई सालों से मुख्यमंत्री की कुर्सी से दूर हैं। इस बार उनका मुख्यमंत्री बनना तय है। 

आसान नहीं है राह 

लेकिन राजनीति के जानकार मानते हैं कि स्टालिन की राह आसान नहीं है। उन पर परिवारवाद और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देने का आरोप है। अन्ना डीएमके के नेता डीएमके पर एक परिवार की पार्टी होने का आरोप लगाकर राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं। बहरहाल, करुणानिधि और जयललिता के बगैर भी तमिलनाडु में राजनीति दिलचस्प और सत्ता की लड़ाई रोमांचक है।

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