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आख़िर उत्तर प्रदेश का रूख़ क्यों कर रहे हैं सहनी और मांझी?

चुनाव उत्तर प्रदेश में होने हैं और यहां की जनता की ज़्यादा चिंता बिहार के राजनीतिक दलों को सता रही है। एनडीए में शामिल और बिहार के राजनीतिक दल विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) ने जोर-शोर से एलान किया था कि उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में 165 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। अब एक और दल हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) (सेक्युलर) भी मैदान में उतरने जा रहा है। 

हम (सेक्युलर) पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी है। बिहार में सरकार चला रही जेडीयू भी इस बात का एलान कर चुकी है कि वह उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ेगी। 

पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन में रहते हुए वीआईपी ने 11 सीटों जबकि हम ने 7 सीटों पर चुनाव लड़ा था और इन्हें 4-4 सीटें हासिल हुई थी। इससे पता चलता है कि इनकी राजनीतिक हैसियत बिहार में बहुत ज़्यादा नहीं है। मतलब साफ है कि वीआईपी और हम बिहार में ही इतने बड़े दल नहीं हैं तो सवाल यह है कि ये उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में क्या तीर मार पाएंगे। 

तो ये दल उत्तर प्रदेश में आ क्यों रहे हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं और उन पर बारी-बारी से बात करते हैं। 

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सियासी विस्तार की मंशा 

पहला कारण तो सियासी विस्तार की मंशा हो सकता है। हर राजनीतिक दल को अधिकार है कि वह अपना सियासी विस्तार करे, ऐसे में इन दलों का बिहार से बाहर निकलना ग़लत नहीं है। 

दूसरा कारण यह हो सकता है कि सहनी और मांझी बिहार में अपनी सियासी मोलभाव करने की क्षमता बढ़ाना चाहते हों। मतलब कि इनके ज़्यादा विधायकों को मंत्री बनाया जाए या विधान परिषद, सरकारी आयोगों में भागीदारी दी जाए आदि। 

Mukesh Sahni Manjhi in UP election 2022 - Satya Hindi
फूलन देवी की प्रतिमा के साथ वीआईपी के कार्यकर्ता।

वोटों के बंटवारे की कोशिश?

एक अन्य कारण यह भी हो सकता है कि इन्हें यहां भेजा गया हो। सीधा मतलब यह कि उत्तर प्रदेश में सत्ता विरोधी वोटों के बंटवारे के मिशन पर ये दल यहां आए हों क्योंकि इस बार उत्तर प्रदेश का चुनाव बेहद कठिन है। 

बदल गए हालात 

2019 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने वाली बीजेपी 2022 में उत्तर प्रदेश को जीतने को बाएं हाथ का खेल समझ रही थी लेकिन किसान आंदोलन, कोरोना महामारी की दूसरी लहर में योगी सरकार की नाकामियों ने माहौल बदल कर रख दिया। 

अब हालात ये हैं कि पार्टी को ताबड़तोड़ बैठकें करनी पड़ रही हैं और इस राज्य का चुनाव जीतने के लिए संघ परिवार और बीजेपी पूरी ताक़त के साथ जुट गए हैं। 

ऐसे हालात में बीजेपी को सत्ता में वापसी के लिए एक सहारा यही दिखता है कि किसी तरह छोटे-छोटे दलों की एंट्री उत्तर प्रदेश की राजनीति में हो जाए और वे 50 से लेकर 100 विधानसभाओं में 1000-2000 वोट भी काट लेंगे तो कई सीटों पर उसे फ़ायदा हो सकता है।

कितना असर कर पाएंगे?

सवाल यह है कि सहनी और मांझी उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़े तो कितनी सीटों पर असर कर पाएंगे। सहनी ख़ुद को सन ऑफ़ मल्लाह कहते हैं और मूल रूप से निषाद समाज की राजनीति करते हैं। निषाद समाज की पूर्वांचल में बड़ी आबादी है। कई विधानसभा सीटों पर निषाद समाज के मतदाता निर्णायक स्थिति में हैं। यहां आकर अगर इन्होंने कुछ सीटों पर निषाद वोटों में ही सेंध लगा दी तो ये विपक्षी दलों की चुनावी गणित बिगाड़ सकते हैं। 

दूसरी ओर मांझी दलित बिरादरी की राजनीति करते हैं। वह भी अगर 22 फ़ीसदी वाले दलित समुदाय में कुछ ही सीटों पर मज़बूत उम्मीदवार खड़े कर गए तो सत्ता विरोधी वोटों का बंटवारा कर सकते हैं। 

Mukesh Sahni Manjhi in UP election 2022 - Satya Hindi

वीआईपी और हम से ये उम्मीद नहीं की जा सकती कि वे बीजेपी के वोट काटेंगे क्योंकि उत्तर प्रदेश में इन दलों और इनके नेताओं की कोई बहुत बड़ी पहचान नहीं है कि जो लोग बीजेपी से नाराज़ होंगे, वे इन्हें वोट दे देंगे। ऐसे लोग वोट देंगे तो एसपी, बीएसपी, कांग्रेस को। इसलिए ये दल जिस जाति और समुदाय की राजनीति करते हैं, भावनात्मक आधार पर उनके वोट हासिल कर सकते हैं।

एक बड़ी बात यह भी है कि ये दल उत्तर प्रदेश में बहुत ताक़त के साथ बीजेपी के ख़िलाफ़ नहीं बोलेंगे क्योंकि ये बिहार में उसके साथ सरकार चला रहे हैं। अगर ये बीजेपी के ख़िलाफ़ बोलेंगे तो इनसे पूछा जाएगा कि ये बिहार में गठबंधन में साथ क्यों हैं, बाहर क्यों नहीं निकल जाते।

इसलिए इनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि ये यहां आकर बीजेपी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल देंगे। क्योंकि इन दलों के नेताओं को बिहार में अपनी मंत्री की गद्दी सुरक्षित रखनी है, इसलिए वे उत्तर प्रदेश में बीजेपी के ख़िलाफ़ जोर न लगाकर विपक्ष को नुक़सान पहुंचा सकते हैं और विपक्ष को नुक़सान होने का सीधा फ़ायदा बीजेपी को होगा। 

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नीतीश का इशारा?

एक और जो कारण समझ में आता है, वह यह कि क्या इन्हें बीजेपी को नुक़सान पहुंचाने के लिए किसी ने भेजा है। याद कीजिए बिहार चुनाव में नीतीश को नुक़सान पहुंचाने वाले चिराग ने ख़ुद को मोदी का हनुमान बताया था। तब यह कहा गया था कि बीजेपी का ‘हाथ’ चिराग के सिर पर है। 

चिराग ने नीतीश को इतना नुक़सान पहुंचाया कि आज नीतीश बीजेपी की शर्तों के सामने झुककर सरकार चलाते दिखते हैं। ऐसे में सियासत के माहिर खिलाड़ी नीतीश अपना ‘बदला’ ले रहे हों तो कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी। 

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पवन उप्रेती

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