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मुसलिम धर्मगुरुओं से क्यों मिल रहे हैं राजनाथ सिंह?

उत्तर प्रदेश की हाई-प्रोफ़ाइल सीटों में से एक लखनऊ का हाल भी कुछ-कुछ बनारस जैसा हो गया है। तमाम दावों के बाद भी राजधानी लखनऊ से केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ के मुक़ाबले कोई नामचीन हस्ती नहीं उतरी। समाजवादी पार्टी ने शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को उतार कर मुरझाए चुनाव में कुछ ग्लैमर पैदा करने की कोशिश ज़रूर की है। लेकिन बीते कई चुनावों से बीजेपी से मोर्चा लेने वाली कांग्रेस ने इस बार अपेक्षाकृत हल्के प्रत्याशी प्रमोद कृष्णन को उतार कर मुक़ाबले को हल्का बना दिया है।

ज़ाहिर है मौजूदा हालात में राजनाथ सिंह काफ़ी आश्वस्त हैं, लेकिन जीत का अंतर बढ़ाने और पूनम सिन्हा या प्रमोद कृष्णन के पक्ष में मुसलिम गोलबंदी को रोकने में अपनी पूरी ताक़त भी लगा रहे हैं। राजधानी की सीट पर ख़ासी तादाद में कायस्थ मतों को साधने पर भी उनका पूरा ज़ोर है। वैसे, लखनऊ की सीट पर अगर मतों का हिसाब लगाएँ तो क़रीब तीन लाख से ज़्यादा कायस्थ, चार लाख से ज़्यादा मुसलिम और यादव व दलित मतों को मिलाकर पूनम सिन्हा मज़बूत दिखती हैं पर वास्तव में एसा है नहीं।

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पूनम सिन्हा का क्या होगा असर?

राजनाथ सिंह ने रविवार को लखनऊ में कायस्थ बिरादरी की एक बड़ी पंचायत बुलाकर अपने पक्ष में समर्थन जुटाया। कायस्थ समाज के नेता ओमप्रकाश श्रीवास्तव कहते हैं कि लखनऊ में उनकी पूरी बिरादरी दशकों से बीजेपी के साथ है और इस बार राजनाथ सिंह को भारी तादाद में समर्थन दे रही है। दूसरी ओर कायस्थ बिरादरी से होने के बाद भी पूनम सिन्हा की घुसपैठ अभी तक न के बराबर है। हालाँकि कहने को कुछ कायस्थ संगठन ज़रूर उनके पक्ष में बयान दे चुके हैं पर उनका प्रभाव न के बराबर है। सपा के लोगों का कहना है कि पटना साहिब में अपने चुनाव में फँसे शत्रुघ्न सिन्हा अभी तक पत्नी के लिए समय नहीं निकाल पाए हैं और कायस्थ बिरादरी के अन्य कोई असरदार नेता पार्टी में हैं नहीं।

शिया धर्मगुरुओं के चक्कर काट रहे राजनाथ

परंपरागत रूप से बीजेपी के ख़िलाफ़ वोट करने वाले मुसलिमों में भी लखनऊ में शिया फिरके की ख़ासी तादाद है। योगी सरकार में राजधानी से एक शिया नेता मोहसिन रजा मंत्री हैं तो एक अन्य नेता बुक्कल नवाब एमएलसी हैं। बीजेपी ने इन दोनों पर शियाओं के बीच काम करने की ज़िम्मेदारी डाल रखी है। शिया वक्फ़ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिज़वी खुल कर बीजेपी के पक्ष में बैटिंग कर रहे हैं। राजनाथ सिंह ने शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद से भी जाकर मुलाक़ात की है। इस मुलाक़ात के बाद यह भी अफ़वाह उड़ायी गयी कि मौलाना जव्वाद ने राजनाथ को समर्थन दिया है। हालाँकि बाद में कल्बे जव्वाद ने इसका खंडन भी किया। राजनाथ के क़रीबी लोगों का कहना है कि बीजेपी के विरोध में शिया और सुन्नी एकजुट न हो सकें इसकी पूरी कोशिश रहेगी। लखनऊ का पुराना इतिहास शिया-सुन्नी दंगों का रहा है।

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तीसरा कोण बन कर तेज़ी से उभरे हैं कांग्रेस के प्रमोद कृष्णन

इस सबके बीच कांग्रेस के प्रमोद कृष्णन तेज़ी से तीसरा कोण बनाने में जुटे हैं। कांग्रेस को भरोसा है कि पहले के चुनावों की तरह इस बार भी अंत में वही बीजेपी के साथ मुख्य मुक़ाबले में रहेगी। प्रमोद कृष्णन को शिक्षकों, वकीलों, बुद्धिजीवियों के बड़े तबक़े का समर्थन मिल रहा है। उन्हें अल्पसंख्यक मतों का बड़ा हिस्सा मिलने की उम्मीद है। शिया धर्मगुरुओं से उन्होंने भी कई मुलाक़ातें की हैं। साथ ही ईसाई समुदाय से भी। जाने माने शायर मुनव्वर राना ने उनके प्रचार के लिए हामी भी भरी है। कांग्रेस का मानना है कि प्रियंका गाँधी को रोड शो, बड़े नेताओं के डेरा डालने और प्रचार अभियान में तेज़ी आने के बाद प्रमोद कृष्णन की स्थिति में सुधार आएगा। मोहनलालगंज में पासी समाज के बड़े नेता आर.के. चौधरी के होने का भी फ़ायदा कांग्रेस को मिलने की उम्मीद है।

बीजेपी को मतदान कम रहने की आशंका

भारी अंतर बनाने की कोशिशों में जुटे राजनाथ समर्थकों की चिंता है कि कमज़ोर प्रत्याशियों, सुस्त अभियान के चलते मतदान कम रह सकता है। उन्हें लगता है कि बीजेपी की जीत को आसान देख इस बार बड़ी तादाद में समर्थक वोट देने कम ही निकलेंगे या जोश नहीं दिखाएँगे। दूसरी ओर मुसलिम, यादव और दलितों के वोट अपेक्षाकृत अन्य के मुक़ाबले ज़्यादा पड़ेंगे। शायद यही डर है कि बीजेपी कार्यकर्ताओं का सबसे ज़्यादा ज़ोर अब ज़्यादा से ज़्यादा मतदान पर है और इसके लिए टीमें बना दी गयी हैं।

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कुमार तथागत

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