उत्तर प्रदेश सरकार के जनसंख्या नियंत्रण विधेयक मसौदे का विरोध सत्तारूढ़ दल बीजेपी की सहयोगी संस्था विश्व हिन्दू परिषद ही कर रही है।
विहिप ने एक बयान जारी कर कहा है कि हालांकि वह जनसंख्या स्थिर करने की सरकार की कोशिशों से सहमत है, पर एक ही बच्चे वाले परिवार को रियायत देने का फ़ैसला इस मक़सद से आगे के नतीजे दे सकता है।
विहिप उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ही जुड़ा है, जिसे बीजेपी की मातृ संस्था माना जाता है। यानी बीजेपी, आरएसस और विहिप की काफी नीतियाँ एक जैसी हैं।
क्या कहा है विहिप ने?
विहिप ने कहा है,
“
विधेयक की प्रस्तावना में कहा गया है कि इससे जनसंख्या स्थिर रखने और दो बच्चों की नीति लागू करने में मदद मिलेगी, हम इन दोनों ही बातों से सहमत हैं। पर विधेयक की धारा 5, 6 (2) और 7 में जिस तरह कहा गया है कि एक ही बच्चे वालों को कई तरह की राहतें व रियायतें दी जाएंगी, वह इस मक़सद से आगे की बात है।
विश्व हिन्दू परिषद के बयान का एक अंश
विश्व हिन्दू परिषद ने इसके साथ ही कुल जन्म दर यानी टोटल फ़र्टिलिटी रेट (टीएफ़आर) पर भी सफाई माँगी है। उसने कहा है कि विधेयक में कहा गया है कि जन्म दर को 1.7 प्रतिशत पर ले आया जाएगा। इस टीएफआर पर फिर से विचार किए जाने की ज़रूरत है।
संघ परिवार के ही एक संगठन (विहिप) के दूसरे संगठन (बीजेपी) का विरोध करने से कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि खुद को हिन्दुओं की पार्टी कहने वाले संगठन को इस बात का डर है कि इस विधेयक के पारित होने और उसे लागू करने का सबसे ज़्यादा असर हिन्दुओं पर ही पड़ेगा।
विहिप को क्या है डर?
इसकी वजह यह है कि एक तो हिन्दुओं की जनसंख्या इस देश में लगभग 83 प्रतिशत है, दूसरे सरकारी नौकरियों में भी वे सबसे ज़्यादा है। इन सरकारी कर्मचारियों में से ज़्यादातर के दो से अधिक बच्चे हो सकते हैं क्योंकि हिन्दुओं में भी जन्म दर दो प्रतिशत से ऊपर ही है। ऐसे में हिन्दू इससे प्रभावित होंगे।
दूसरी ओर, सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की हिस्सेदारी काफी कम है।
मुसलमानों पर कितना असर पड़ेगा?
जस्टिस राजिंदर सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा पश्चिम बंगाल में है, जहाँ 5.73 प्रतिशत कर्मचारी मुसलमान हैं। कमेटी के अध्ययन के दस साल पहले पश्चिम बंगाल सरकार की नौकरियों में 3.4 प्रतिशत मुसलमान थे।
पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की आबादी 27 प्रतिशत है।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने दावा किया था कि 2014 में बीजेपी सरकार के बनने के बाद से केंद्र सरकार की नौकरियों में मुसलमानों की हिस्सेदारी बढ़ी है।
उन्होंने कहा कि था कि सात साल में केंद्र सरकार की नौकरियों में मुसलमानों की हिस्सेदारी 5.3 प्रतिशत से बढ़ कर 9.9 प्रतिशत हो गई है।
उत्तर प्रदेश की स्थिति इससे बेहतर नहीं होगी। यदि बीजेपी के मंत्री की भी बात मान ली जाए तो यह साफ़ है कि उत्तर प्रदेश में सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की भागेदारी बहुत ही कम है।
साफ है कि योगी आदित्यनाथ सरकार की इस योजना का मक़सद चाहे जो भी हो, इसकी चपेट में ज़्यादातर हिन्दू ही आएंगे।
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