अमेरिका और नेटो से 20 साल तक जूझने वाले संगठन तालिबान अंतरविरोधों और अंदरूनी कलह से किस तरह घिरा हुआ है, इसकी बानगी है उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर पर हमला।
तालिबान के शीर्ष नेतृत्व में अंतरकलह इतना अधिक था कि बरादर पर हमला हुआ, दो गुटों में गोलियाँ चलीं, इसमें कुछ लोग घायल हो गए और कुछ लोग मारे गए। घायल बरादर अपमानित और क्रोधित होकर कंधार चले गए हैं।
'ब्लूमबर्ग' के अनुसार, पिछले दिनों अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति भवन में एक बैठक हुई, जिसमें सरकार के स्वरूप को लेकर ज़बदस्त मतभेद उभरे और झड़प हुई।
बरादर चाहते हैं समावेशी सरकार
मुल्ला बरादर का कहना था कि अफ़ग़ानिस्तान की सरकार अधिक समावेशी होनी चाहिए ताकि देश के ज़्यादा से ज़्यादा लोगों का प्रतिनिधित्व कर सके।
उनका तर्क था कि ऐसा होने से इसे देश के लोग स्वीकार कर लेंगे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसे मंजूरी मिलने में सहूलियत होगी।
हक्कानी को चाहिए अपनी सरकार
पर्यवक्षकों का कहना है कि पाकिस्तान की खु़फ़िया एजेंसी आईएसआई का तैयार किया हुआ हक्क़ानी नेटवर्क इसके ख़िलाफ़ था। उसके प्रतिनिधि खलील-उर-रहमान हक्क़ानी इसका विरोध कर रहे थे, अपने लोगों को फिट करने की जुगाड़ में थे।
'ब्लूमबर्ग' का कहना है कि जब इस मुद्दे पर बहस बहुत गर्म हो गई, खलील हक्क़ानी यकायक कुर्सी से उठे और बरादर पर घूंसे बरसाने लगे।
इसे देख बरादर के सुरक्षा कर्मी आगे आए, रोकने की कोशिश की और गोलियाँ चला दीं। इसके जवाब में खलील हक्क़ानी के सुरक्षा गार्ड ने भी गोलियाँ चलाईं। दोनों गुटों की इस परस्पर गोलीबारी में कई लोग मारे गए और घायल हो गए।
मुल्ला बरादर ने खुद को बहुत ही अपमानित महसूस किया और वे काबुल छोड़ कर कंधार चले गए। उन्होंने वहाँ तालिबान के सुप्रीम नेता समझे जाने वाले मुल्ला हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा से मुलाक़ात की और खलील हक्क़ानी की शिकायत की।
तालिबान का वीडियो
अफ़ग़ान में यह अफ़वाह उड़ी कि मुल्ला बरादर मारे गए। इसे दुरुस्त करने के लिए तालिबान ने पहले एक बयान जारी कर कहा कि ऐसा नहीं है, यह झूठ है, कोरी अफवाह है। बाद में एक वीडियो जारी किया गया, जिसमें मुल्ला बरादर यह कहते हुए देखे जा सकते है कि वे बिल्कुल ठीक हैं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि तालिबान की यह अंदरूनी लड़ाई फिलहाल थमने वाली नहीं है। यह अफ़ग़ानिस्तान का भविष्य और उसकी दशा-दिशा भी तय करेगी।
दो धड़े आमने-सामने
तालिबान में दो धड़े बिल्कुल आमने-सामने हैं।
एक धड़ा तालिबान मुख्यालय दोहा का है, जिसमें तालिबान की स्थापना के समय से जुड़े हुए पुराने लोग हैं। इसका नेतृत्व मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर कर रहे हैं।
बरादर राजनीतिक विंग के प्रमुख हैं और उन्होंने ही अमेरिका और दूसरे लोगों से बातचीत की थी। अमेरिका से क़रार उनके नेतृत्व में ही हुआ था।
दूसरा धड़ा हक्क़ानी नेटवर्क का है, जिसके नेता सिराजुद्दीन हक्क़ानी हैं। उनके साथ वे लोग हैं, जिन्हें आईएसआई का प्रश्रय हासिल है। इस गुट के प्रमुख लोग अनस हक्क़ानी और खलील हक्क़ानी हैं।
अनस और सिराजुद्दीन अफ़ग़ानिस्तान के दिवंगत मुजाहिदीन नेता जलालुद्दीन हक्क़ानी के बेटे हैं। खलील उनके भाई यानी सिराजुद्दीन के चाचा हैं।
पाकिस्तान और उसकी संस्था आईएसआई अफ़ग़ानिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण चाहती हैं। उनकी पूरी कोशिश थी कि हक्क़ानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन को ही अफ़ग़ानिस्तान का प्रधानमंत्री बनाया जाए।
बीच का रास्ता
जब दोहा धड़े ने इसका पुरज़ोर विरोध किया तो बीच का रास्ता निकालते हुए मुल्ला बरादर और सिराजुद्दीन हक्क़ानी दोनों को उप प्रधानमंत्री बनाया गया और उनके ऊपर यानी प्रधानमंत्री पद पर मुल्ला हसन अखुंद को बैठाया गया।
हक्क़ानी नेटवर्क इस पर राजी तो हो गया, पर सरकार की नीतियों को लेकर फिर झगड़ा हुआ। मुल्ला बरादर ने अमेरिका से वायदा किया था कि अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी सरकार होगी और इसमें सबको प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।
मुल्ला बरदार ने कहा था कि तालिबान के पिछले शासन से सबक लेते हुए एक उदार और लचीले शासन व्यव्यस्था का निर्माण किया जाए, जो शरीआ के मुताबिक चलेगा, पर वह कट्टर व दकियानूस नहीं होगा।
दूसरी ओर हक्क़ानी नेटवर्क अफ़ग़ानिस्तान को कट्टर शासन प्रणाली पर ले जाना चाहता है क्योंकि शरीआ की उसकी अपनी व्याख्या है।
यह लड़ाई थमी नहीं है और अभी और झगड़े होने बाकी हैं।
अपनी राय बतायें