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क्या राष्ट्रपति चुनाव हार रहे हैं डोनल्ड ट्रंप?

क्या डोनल्ड ट्रंप नवंबर में होने वाला अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव हारने जा रहे हैं? बुरी तरह से लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था और उससे भी बुरी तरह से कोरोना से निपटने की उनकी रणनीति से उनकी ही पार्टी के लोग डरे हुए हैं। महामारी से जुड़े उनके ग़ैर ज़िम्मेदाराना बयान स्थिति बदतर बना रहे हैं। कुछ सर्वेक्षणों के नतीजों ने भी ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी के लोगों के होश उड़ा दिये हैं। 
राष्ट्रपति चुनाव के साथ ही सीनेट की कुछ सीटों पर भी चुनाव होते हैं और अक्सर उनके नतीजे उस राज्य में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों से अलग नहीं होते हैं। तो क्या रिपब्लिकन पार्टी सेनेट में भी अपना बहुमत खो देगी? अभी निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता, पर पार्टी ज़बर्दस्त आशंका में घिर गयी है।
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नहीं चलेगी पुरानी रणनीति!

ट्रंप ने 2016 में चुनाव प्रचार का पूरा फ़ोकस अर्थव्यवस्था पर रखा था और ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ का नारा देकर लोगों को आश्वस्त किया था कि वह ऐसी नीतियाँ अपनाएँगे, जिससे देश के अंदर नए-नए उद्यम लगेंगे और रोज़गार के मौक़े बनेंगे। 
डोनल्ड ट्रंप की 2016 की यही रणनीति इस बार उन पर ही उल्टी पड़ सकती है। बीते दो महीने में अमेरिका में लगभग 2.60 करोड़ लोगों की नौकरी चली गई है।

सर्वेक्षण में पीछे हैं ट्रंप

हाल के सर्वेक्षणों में ट्रंप मिशिगन और पेनसिलवैनिया में लोकप्रियता में संभावित  डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडन से पीछे चल रहे हैं। इन्हें ‘बैटलग्राउंड स्टेट’ कहते हैं, यानी ये वे राज्य हैं, जहाँ मुक़ाबला काँटे का होगा। इसी तरह फ़्लोरिडा जैसे ‘मस्ट विन स्टेट’ यानी वे राज्य जहाँ जीते बिना वे चुनाव जीतने की सोच नहीं सकते, वहाँ भी पीछे चल रहे हैं।
अमेरिकी चुनाव में पैसा बहुत बड़ी भूमिका अदा करता है। पिछले कांग्रेस चुनाव के समय डेमोक्रेटिक पार्टी को लोगों ने अधिक पैसे दिए। हालाँकि ट्रंप को पैसे की कमी नहीं होगी, पर कई पैसे वाले लोग अब जो बाइडन की ओर मुड़ रहे हैं। इसी तरह कई बहुत ही बड़े पोलिटिकल एक्शन कमिटी (पीएसी) के लोग भी डेमोक्रेटिक पार्टी के पक्ष में खड़े हो गए हैं। ये पीएसी चुनाव प्रचार भी करती हैं और पैसे भी एकत्रित करती है।
चंदा देने वालों और पीएसी के डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर मुड़ने से यह संकेत मिलता है कि लोग अब रिपब्लिकन पार्टी में अपनी उम्मीद नहीं देखते हैं और दूसरे विकल्प की ओर देखने लगे हैं।

एंटी इनकम्बेन्सी

ट्रंप के साथ सबसे बड़ी दिक्क़त यह है कि एंटी इनकंबेन्सी फ़ैक्टर उनके साथ अभी से लग गया है। लोग उनके कामकाज से नाराज़ हैं और उन पर फिर भरोसा नहीं करना चाहते।

भारी पड़ेगा बड़बोलापन?

ट्रंप के बयान और बड़बोलापन भी उन पर भारी पड़ रहा है। वह रोज़ की प्रेस ब्रीफ़िंग में ऐसा कुछ कह जाते हैं जिनसे उन्हें राजनीतिक नुक़सान होता है और उसके बाद उनके समर्थक और पार्टी के लोग डैमेज कंट्रोल में लग जाते हैं।
कोरोना पर हुई प्रेस ब्रीफिंग में उन्होंने जो कुछ कहा, उससे उनकी काफी किरकिरी हो रही है। व्हाइट हाउस टास्क फ़ोर्स की ब्रीफिंग में अमेरिकी राष्ट्रपति ने तीन घनघोर आपत्तिजनक बातें कह दीं। सूर्य की तेज़ रोशनी कोरोना संक्रमितों पर डाल कर देखा जाए; कोरोना रोगियों पर अल्ट्रा वॉयलेट किरणें डाल कर प्रयोग किया जाए; कोरोना रोगियों को कीटनाशक का इंजेक्शन दे दिया जाए। 
कोरोना से जुड़े ट्रंप के बयान पर बावेला मचना था, मचा। ट्रंप की फ़जीहत होनी थी, हुई। मामला संभालने की कोशिशें हुईं, डैमेज कंट्रोल का प्रयास हुआ, पर वे नाकाफी हैं।

हिल गए हैं ट्रंप?

इससे ख़ुद ट्रंप हिले हुए हैं। उस घटना के बाद यानी शुक्रवार को प्रेस ब्रीफिंग में राष्ट्रपति मौजूद तो थे, पर उन्होने पत्रकारों के किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। अधिकारियों ने पत्रकारों के सवालों के जवाब दिए। 
कोरोना पूरे अमेरिका के लिए तो संकट है ही, राष्ट्रपति ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी के लिए राजनीतिक संकट बन कर आया है। जिस तरह से ट्रंप प्रशासन इसे संभालने की कोशिश कर रहा है, स्थिति बदतर होती जा रही है और मौक़ा हाथ से फिसलता जा रहा है। 

कोरोना बना राजनीतिक संकट

रिपब्लिकन पार्टी के चुनाव का कामकाज संभालने वाले दिग्गज परेशान हैं। ग्लेन बॉलगर ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, ‘अर्थव्यवस्था औंधे मुँह गिर रही है और रिपब्लिकन पार्टी बेहद चुनौतीपूर्ण स्थिति में पहुँच चुकी है, कुछ महीने पहले हम जिस स्थिति में थे, हालात उससे बिल्कुल बदल चुके हैं।’
ओक्लाहोमा से हाउस ऑफ़ रिप्रेजेन्टेटिव्स के रिपब्लिकन सदस्य टॉम कोल ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा कि राष्ट्रपति को बोलने का तरीका तुरन्त बदलना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘आप लोगों में उम्मीद जगाते हैं, पर ट्रंप लोगों में गुस्सा भर देते हैं, उन्हें बाँट देते हैं और इसका शिकार हम हो रहे हैं।’ 

बाइडन से चल रहे हैं पीछे

ट्रंप ने पिछले महीने यह संकेत दिया है कि वह अर्थव्यवस्था के मुद्दे को चुनाव में प्रमुखता से उठाएंगे। उन्होंने कहा था, ‘हमने दुनिया की महानतम अर्थव्यवस्था बनाई है, मैं दूसरी बार भी ऐसा ही करूंगा।’
सर्वेक्षणों से साफ़ है कि फ़िलहाल ट्रंप अपने प्रतिद्वंद्वी जो बाइडन से बहुत पीछे चल रहे हैं। एरीज़ोना, कोलोरैडो, नॉर्थ कैरोलाइना और मेन में सीनेट के संभावित रिपब्लिकन उम्मीदवार बुरी स्थिति में होंगे, डेमोक्रेट उम्मीदवारों से बहुत पीछे।
एलाबामा में भी यही हाल है। यदि रिपब्लिकन पार्टी इन राज्यों में चुनाव हार गई तो ट्रंप का बचना मुश्किल होगा। 
रिपब्लिकन पार्टी के पुराने चुनाव सलाहकार चार्ल्स आर ब्लैक ने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा, ‘पहले मुझे लगता था कि हमारी स्थिति अच्छी है, पर अब मैं कह सकता हूं कि हमारे सारे दाँव हवा में उड़ चुके हैं। सेनेट बचाना है तो ट्रंप को बहुत ही हमारे साथ अच्छी तरह मिल कर लड़ना होगा।’ 
रिपब्लिकन नेशनल कमिटी ने 17 राज्यों में सर्वेक्षण कराया, उसके नतीजों से पार्टी हिल गई है। ज़्यादातर राज्यों में, ख़ास कर बैटलग्राउंड राज्यों में, वह हार रही है या बुरी तरह फँसी हुई है। ट्रंप की अपनी चुनाव टीम ने एक सर्वे किया, उसके नतीजे भी सकारात्मक नहीं हैं।

लॉकडाउन है, पैसा नहीं

ट्रंप की रैलियों का कुल ज़ोर चंदा एकत्रित करने और आँकड़े जुटा कर उन्हें अपने हिसाब से पेश करने पर होता है। पर फ़िलहाल अर्थव्यवस्था बंद है, कब तक ऐसा रहेगा, पता नहीं। हालांकि उन्होंने गवर्नरों से कहा है कि वह अपने-अपने राज्य में अपने हिसाब से अर्थव्यवस्था खोलने का फ़ैसला लें। यह लंबा चला तो ट्रंप को चंदा कौन देगा, सवाल यह है।

उग्र राष्ट्रवाद का सहारा!

अर्थव्यवस्था पर नाकामी की ओर तेज़ी से बढ़ रहे ट्रंप क्या अंध राष्ट्रवाद का सहारा लेंगे, यह सवाल उठना लाज़िमी है। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि उनकी प्रचार टीम ने कुछ दिन पहले एक वीडियो जारी किया, जिसमें जो बाइडन को चीन-परस्त बताया गया है, चीन और चीनी मूल के लोगों को निशाने पर लिया गया है। 
यह वैसे समय हो रहा है जब ट्रंप और उनका प्रशासन कोरोना वायरस के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहरा रहा है। चीन को मानवता और अमेरिका के दुश्मन के रूप में चित्रित किया जा रहा है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि ट्रंप बुरी स्थिति में फंसे हुए हैं। अर्थव्यवस्था, कोरोना, उनका बड़बोलापन, सबकुछ उनके ख़िलाफ़ जा रहा है। नवंबर बहुत दूर नहीं है।
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प्रमोद मल्लिक

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