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बाइडन की जीत लगभग तय, ट्रंप ने किया तमाशा

ट्रंप के रोष भरे बयानों और ट्वीट्स के विपरीत जो बाइडन ने अपने समर्थकों से शांति रखने, सब्र से काम लेने और गिनती पूरी होने की प्रतीक्षा करने की अपील की है। लेकिन चिंता की बात यह है कि रिपब्लिकन पार्टी के नेता राष्ट्रपति ट्रंप के भड़काऊ और निराधार आरोपों को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं। 
शिवकांत | लंदन से

डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बाइडन अमेरिका के बड़े उत्तरी राज्य पेंसिलवेनिया और दक्षिणपूर्वी राज्य जॉर्जिया में राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से आगे निकल गए हैं। ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी का गढ़ माना जाने वाला यह राज्य राष्ट्रपति के चुनाव के लिए 16 इलेक्टरों या निर्वाचकों को चुनता है। अभी तक हुई गिनती के आधार पर जो बाइडन 253 निर्वाचकों का समर्थन हासिल कर चुके हैं। 

पेंसिलवेनिया के 20 और जॉर्जिया के 16 निर्वाचकों का समर्थन हासिल करने के बाद बाइडन के निर्वाचकों की संख्या 289 हो जाती है जो बहुमत के लिए आवश्यक 270 वोटों से 19 ज़्यादा है।
इसलिए बाइडन की जीत को अब लगभग निश्चित माना जा रहा है। उनका राष्ट्रपति बनना और कमला हैरिस का अमेरिकी इतिहास की पहली महिला और भारतीय मूल की उपराष्ट्रपति बनना लगभग तय है। क्योंकि पेंसिलवेनिया और जॉर्जिया में से किसी में भी बचे हुए वोटों की गिनती से मामला ऊपर-नीचे होने के बाद भी बाइडन एरिज़ोना और नवाडा राज्यों में जीत कर उस कमी की भरपाई कर सकते हैं। लेकिन अगर चारों राज्यों में उनकी बढ़त बनी रहती है तो उनकी जीत भारी बहुमत वाली मानी जाएगी।
donald trump vs joe biden in US presidential election 2020 - Satya Hindi
प्रचार के दौरान ट्रंप के समर्थक।

बौखला गए हैं ट्रंप 

स्वाभाविक सी बात है कि राष्ट्रपति ट्रंप चुनाव के इस नतीजे से ख़ुश नहीं हैं। लेकिन अपना ग़ुस्सा निकालने के लिए वे अपने देश की चुनावी व्यवस्था पर और चुनाव कराने वाले राज्यों और काउंटियों के अधिकारियों पर जिस तरह के निराधार आरोप लगा रहे हैं और ट्विटर पर लगातार सनसनीखेज़ ट्वीटों की झड़ी लगाए हुए हैं, उससे उन्हें देखकर हैरत और चिंता होती है। वे डाक के ज़रिए डाले गए वोटों को अवैध और उनकी गिनती को उन्हें मिले भारी जनादेश का अपमान बताते हुए अपनी जीत का दावा कर रहे हैं और सर्वोच्च न्यायालय से फ़ैसला करने की अपील कर रहे हैं।

देखिए, अमेरिकी चुनाव पर चर्चा- 

ट्रंप एरिज़ोना, नवाडा और पेंसिलवेनिया में चुनाव कराने वाले और गिनती में लगे अधिकारियों पर अवैध वोटों की गिनती करने, गिनती के समय उनकी रिपब्लिकन पार्टी के प्रेक्षकों को निगरानी के लिए न बिठाने, धाँधली करने और उनकी कथित शानदार जीत को उनसे छीनने के आरोप लगा रहे हैं। 

उग्र हुए समर्थक

उनके आरोपों से उत्तेजित होकर उनके सैकड़ों समर्थक एरिज़ोना, नवाडा और पेंसिलवेनिया के मतगणना केंद्रों के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। एक ट्रंप समर्थक ने गिनती रोकने के लिए पेंसिलवेनिया के एक मतगणना केंद्र में अपनी जीप घुसा देने की भी कोशिश की है। दिलचस्प बात यह है कि ट्रंप समर्थक एरिज़ोना और नवाडा राज्यों में वोट गिनो के नारे लगा रहे हैं जबकि पेंसिलवेनिया में गिनती रोको के। 

ट्रंप के रोष भरे बयानों और ट्वीट्स के विपरीत जो बाइडन ने अपने समर्थकों से शांति रखने, सब्र से काम लेने और गिनती पूरी होने की प्रतीक्षा करने की अपील की है। लेकिन चिंता की बात यह है कि रिपब्लिकन पार्टी के नेता राष्ट्रपति ट्रंप के भड़काऊ और निराधार आरोपों को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं।

डाक के ज़रिए वोट डालने की परंपरा अमेरिकी चुनाव में दशकों से चली आ रही है। इस बार महामारी से बचाव के लिए अमेरिका के लगभग आधे राज्यों ने हर मतदाता के पास डाक से वोट भेजे थे ताकि जो लोग मतदान केंद्रों पर जाकर वोट डालने का जोखिम न उठाना चाहें, वे घर बैठे ही मतदान कर सकें।

पहले क्यों चुप रहे ट्रंप?

राष्ट्रपति होने के नाते यह बात ट्रंप को और उनकी पार्टी के सभी चुनावी कार्यकर्ताओं को पहले से मालूम थी। यदि उन्हें डाक से होने वाले मतदान पर आपत्ति थी तो उन्हें चुनाव होने से पहले अदालतों में जाना चाहिए था। अब चुनाव हो जाने और उसमें हार की नौबत आने के बाद डाक से डाले गए वोटों को अवैध और जाली बताना और उनकी गिनती न करने की माँग करना अटपटा लगता है। 

दिलचस्प बात यह भी है कि जिन राज्यों में ट्रंप हार रहे हैं और धाँधली का आरोप लगा रहे हैं, उनमें से एरिज़ोना, विस्कोन्सिन, जॉर्जिया और पेंसिलवेनिया में उनकी अपनी रिपब्लिकन पार्टी की सरकारें हैं और चुनावी अधिकारी भी उन्हीं के हैं।

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ऐसे में डाक से डाले गए वोटों को अवैध सिद्ध कराने के लिए अदालतों में जाने और अदालती लड़ाई को खींच कर सर्वोच्च न्यायालय तक ले जाने से भी कुछ हासिल होता नज़र नहीं आता। अलबत्ता उनके इन हथकंडों से अमेरिकी समाज में दलगत राजनीति की कड़वाहट और बढ़ेगी और अतिवादी सुरों को बढ़ावा मिलेगा। 
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ट्रंप कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।
अपने मनमाने व्यवहार से ट्रंप ने उन सभी लोकतांत्रिक सिद्धान्तों और उन पर चलने वाली संस्थाओं की छवि धूमिल की है जिन पर अमेरिका को नाज़ हुआ करता था। ये हैं- स्थिर, संतुलित और पारदर्शी लोकतांत्रिक व्यवस्था, कानून-राज, मु्क्त व्यापार और बाज़ार, नए अन्वेषण और वैज्ञानिक सोच।

याद कीजिए। पिछले चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन ने रुझानों की दिशा देखते ही अपनी हार स्वीकार करते हुए जीत की बधाई दे दी थी। अमेरिका और यूरोप के लोकतांत्रिक देशों में हार-जीत स्वीकार करते हुए सत्ता के हस्तांतरण की यही परंपरा रही है। लेकिन देश भर में लगभग चालीस लाख वोटों से पीछे रह जाने और बहुमत के लिए ज़रूरी इलेक्टोरल कॉलेज या निर्वाचक मंडल के 270 वोटों के आस-पास पहुँचने में भी असमर्थ रहने के बावजूद ट्रंप ने हार मानने के बजाय लीबिया, यमन और आइवरी कोस्ट जैसे देशों के नेताओं की तरह सत्ता से चिपके रहने के लिए अपनी ही चुनावी व्यवस्था पर सवाल उठाने का काम किया है। 

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अपने देश को महान बनाने के नारे के बल पर सत्ता में आए ट्रंप ने अमेरिका को एक महान तमाशे में बदल दिया है।

ट्रंप के रवैये से चिंता 

चिंता का उससे भी बड़ा सबब यह है कि अमेरिका की सबसे पुरानी और ट्रंप की अपनी रिपब्लिकन पार्टी के दूसरे नेता ट्रंप के आपत्तिजनक बयानों और तानाशाही से सत्ता में बने रहने की कोशिशों को लेकर चुप हैं। कई राजनीतिक प्रेक्षकों को चिंता है कि कहीं अमेरिका की ग्रांड ओल्ड पार्टी या जीओपी के नाम से पुकारी जाने वाली रिपब्लिकन पार्टी पर उसके नेता ट्रंप का रंग स्थाई रूप से तो नहीं चढ़ गया है। 

बाकी नेताओं की चुप्पी से तो यही आभास मिलता है। यदि ऐसा हुआ तो ट्रंप साहब सत्ता छोड़ने के बावजूद पार्टी के लिए सिरदर्द बने रहेंगे। रिपब्लिकन पार्टी का दक्षिणपंथ की चरम और विभाजक दिशा में जाना अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया की राजनीति में अतिवाद के संकट को हवा दे सकता है।

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