पाकिस्तानी खुफ़िया एजेन्सी इंटर सर्विस इंटेलीजेंस (आईएसआई) प्रमुख की काबुल यात्रा से कई अहम सवाल खड़े होते हैं।
अमूमन खु़फ़िया प्रमुखों की यात्रा अत्यंत गोपनीय होती है, पर इस यात्रा में आईएसआई प्रमुख फ़ईज़ हमीद न सिर्फ खुले आम सबसे मिल रहे थे, बल्कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान राजदूत के यहाँ चाय पी, तसवीरें खिंचवाई और कुछ पत्रकारों से अनौपचारिक बात भी की।
यह अहम दौरा सार्वजनिक तौर पर इसलिए हुआ कि इसके एक दिन पहले ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने खुले आम कहा था कि उनका देश अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी सरकार बनाने में तालिबान की मदद करेगा।
इसे तालिबान के नेता और काबुल की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी संभाल रहे खलील हक्क़ानी के बयान से समझा जा सकता है।
क्या कहना है तालिबान का?
उन्होंने कहा कि तालिबान खुद की सरकार बनाना चाहे तो अभी बना ले, लेकिन वह एक ऐसी समावेशी सरकार बनाना चाहता है जिसमें सबकी भागेदारी हो। इस पर बातचीत चल रही है और इसी वजह से देर हो रही है।
खलील हक्क़ानी को यह ज़िम्मेदारी दी गई है कि वे सभी क़बाइली गुटों के नेताओं और दूसरे तमाम लोगों से बात करें और सरकार बनाने पर सबको राजी करें।
पेंटागन के पूर्व वरिष्ठ अफ़सर माइकेल रूबिन ने खुले आम कहा है कि आईएसआई काबुल में अपनी कठपुतली सरकार बनाना चाहता है और तालिबान के लोग इसका विरोध कर रहे हैं। सरकार बनने में देर इस वजह से हो रही है।
मारपीट
समझा जाता है कि तालिबानी नेता मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर और हक्क़ानी नेटवर्क के लोगों के बीच मारपीट तक हो गई और फ़ईज़ हमीद बीचबचाव कर मामला सुलझाने गए थे।
हक्क़ानी नेटवर्क हिबतुल्लाह अखुंदज़ादा को सबसे बड़े नेता के रूप में मानने से इनकार कर रहा है। वह मुल्ला बरादर को भी दरकिनार करना चाहता है। हक्क़ानी नेटवर्क की इच्छा है कि सिराजुद्दीन हक्क़ानी के हाथ में पूरा नियंत्रण हो, वे ही सर्वेसर्वा हों।
शक्ति- संतुलन
तालिबान के तमाम बड़े नेताओं-अखुंदज़ादा, बरादर, स्तनकज़ई और मुल्ला याक़ूब ने इसे खारिज कर दिया है। उनका कहना है कि सिराजुद्दीन हक्क़ानी को अहम पद दिया जाए, पर वह बरादर के नीचे हों और बँटवारा इस तरह संतुलित हो कि याकूब, स्तनकज़ई और सिराजुद्दीन तीनों बराबर हों।
हक्क़ानी नेटवर्क की माँग है कि यदि सबसे ऊपर नहीं तो सिराजुद्दीन हक्क़ानी को कम से कम रक्षा का प्रमुख बनाया जाए और पूरी सेना व उसके सभी अंग उनके अधीन हो। लेकिन याकूब चाहते हैं कि वे रक्षा आयोग के प्रमुख बनें और पूरा मिलिटरी उनके अधीन हो।
चूंकि हक्क़ानी नेटवर्क आईएसआई का ही खड़ा किया हुआ है तो उसकी इच्छा सिराजुद्दीन हक्क़ानी को ज्यादा से ज़्यादा ताक़त देने की है। लेकिन तालिबान के दूसरे लोग इससे एकदम सहमत नहीं हैं।
क़बीलों का समीकरण
चीन और ईरान भी सत्ता के इस खेल में दिलचस्पी ले रहे हैं। उनका कहना है कि तालिबान कुछ ग़ैर-पश्तूनों को भी सरकार में शामिल करे और बराबर की इज्ज़त दे।
अफ़ग़ानिस्तान की आबादी का समीकरण कुछ तरह है कि सबसे ज़्यादा 42 प्रतिशत आबादी पश्तूनों की है। लेकिन ताज़िक 27 प्रतिशत, उज़बेक नौ प्रतिशत और हज़ारा भी नौ प्रतिशत हैं।
यानी ताज़िक, उज़बेक और हज़ारा मिला कर जो आबादी बनती है वह पश्तूनों से ज़्यादा है।
क़बीलों की आपसी रंजिश
ये तीनों क़बाइली गुट आपस में और पश्तूनों से लड़ते रहे हैं।
तालिबान पश्तून आन्दोलन है और उसके लड़ाके सबसे ज़्यादा हैं तो उनके पास बड़ा हिस्सा तो होगा ही, लेकिन इन तीनों क़बाइली गुटों को एकदम नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।
चूंकि पाकिस्तान में हज़ारा समुदाय की बड़ी तादाद है तो उसकी दिलचस्पी इस क़बीले को कुछ ज़्यादा दिलाने में है, पर उनके शिया होने की वजह से तालिबान को मनाना मुश्किल हो रहा है।
जब तालिबान लड़ाके आगे बढ़ रहे थे तो उन्होंने शिया हज़ारा समुदाय पर जुल्म ढाए थे, उनके एक गाँव में घुस कर व्यापक तबाही मचाई थी और 9 लोगों को मार डाला था।
चीन और ईरान की दिलचस्पी इतनी भर है कि जो भी सरकार बने वह मध्य एशिया का रास्ता खोल दे ताकि चीन अफ़ग़ानिस्तान से होते हुए ईरान होते हुए आगे निकल जाए।
पाकिस्तान की मंशा पूरे अफ़ग़ानिस्तान सरकार को हाईज़ैक करने की है। वह ऊपर के तीन पदों पर सिराजुद्दीन हक्क़ानी, अनस हक्क़ानी और खलील हक्क़ानी को बैठाना चाहता है। वह इसके बाद गुलबुद्दीन हिक़मतयार को भी वहां फिट करना चाहता है।
आईएसआई का खेल
इसके बाद के मध्य क्रम में वह उन तमाम लड़ाकों को लगाना चाहता है जिन्होंने उत्तरी वज़ीरिस्तान और बलोचिस्तान में प्रशिक्षण लिया और उसके एकदम विश्वस्त हैं।
उसके नीचे के क्रम में उसकी मंशा कांधार के उन लड़ाकों को लगाने में है जो निचले स्तर के कार्यकर्ता हैं लेकिन उसके अपने आतंकवादी गुट, मसलन, जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, लश्कर-ए-झांगवी, सिपाह-ए-साहिबा वगैरह से ज़मीनी स्तर पर जुड़े हुए हैं।
यदि आईएसआई की यह चाल कामयाब हो गई तो पूरा अफ़ग़ानिस्तान सरकार उसकी मुट्ठी में होगी, वह पाकिस्तान की कठपुतली सरकार होगी।
कहाँ है भारत?
भारत इस खेल में कहीं नहीं है। एक मात्र स्तनकज़ई ऐसे तालिबान नेता हैं, जिन्होंने भारत में रह कर मिलिटरी अकेडेमी से अफ़ग़ान सेना के एक कैडेट के रूप में प्रशिक्षण लिया था। वे थोड़ा उदार हो सकते हैं, पर उन्हें भारत का आदमी मानना भूल होगी।
अब्दुल ग़नी सरकार में मुख्य कार्यकारी यानी चीफ़ एग्ज़ीक्यूटिव रहे अब्दुल्ला अब्दुल्ला के अहम पद पाने की संभावना है। वे भारत के प्रति थोड़ी नरमी बरत सकते हैं।
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