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ट्रंप की टोपी में मोरपंख और बिच्छू

डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन और कमला हैरिस के जीतने के आसार इतने बढ़ गए हैं कि दुनिया के राष्ट्र बड़बोले ट्रंप का ज़्यादा लिहाज़ नहीं कर रहे हैं। चीन ने हाल ही में ईरान के साथ अरबों डॉलर खपाने का समझौता किया है और रूस के व्लादिमीर पुतिन ने ईरान के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते पर एक शिखर सम्मेलन बुलाने का भी सुझाव दिया है।
डॉ. वेद प्रताप वैदिक
पिछले दो दिनों में अमेरिका एक बार उठ गया और एक बार गिर गया। वह उठा तब जब इज़रायल और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में समझौता हो गया और वह गिरा तब जब सुरक्षा परिषद में वह ईरान के विरुद्ध बुरी तरह से पछाड़ खा गया।

इज़रायल-यूएई समझौता

इज़रायल की स्थापना 1948 में हुई, लेकिन पश्चिम एशिया के राष्ट्रों में से सिर्फ दो देशों ने अभी तक उसे कूटनीतिक मान्यता दी थी। एक मिस्र और दूसरा जोर्डन। ये दोनों इज़रायल के पड़ोसी राष्ट्र हैं। इन दोनों के इज़रायल के साथ युद्ध हुए हैं। इन युद्धों में दोनों की ज़मीन पर इज़रायल ने कब्जा कर लिया था, लेकिन 1978 में मिस्र ने और 1994 में जोर्डन ने इज़रायल के साथ शांति-संधि कर ली और कूटनीतिक संबंध स्थापित कर लिये।
इज़रायल ने मिस्र को उसका सिनाई का क्षेत्र वापस किया और जोर्डन ने पश्चिमी तट और गाज़ा में फ़लस्तीनी सत्ता स्थापित करवाई। लेकिन संयुक्त अरब अमीरात यानी अबू धाबी के साथ इज़रायल का जो समझौता हुआ है, उसमें इज़रायल को कुछ भी त्याग नहीं करना पड़ा है।

शांति समझौते का श्रेय ट्रंप को

अबू धाबी इस बात पर राजी हो गया है कि इज़रायल ने उसे आश्वस्त किया है कि वह पश्चिमी तट के जिन क्षेत्रों का विलय करना चाहता था, अब नहीं करेगा। इस समझौते का श्रेय डोनल्ड ट्रंप की अमेरिकी सरकार ले रही है, जो वाजिब है। उसने ईरान के विरुद्ध इज़रायल, सऊदी अरब, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात आदि कई सुन्नी देशों का एक सम्मेलन पिछले साल पोलैंड में बुलाया था। उसी में इज़रायल और अबू धाबी का प्रेमालाप शुरू हुआ था। 

इस समझौते से ईरान और तुर्की बेहद ख़फ़ा हैं, लेकिन ट्रंप अपने चुनाव में इसका दोहन करना चाहते हैं। ट्रंप की टोपी में यह एक मोरपंख ज़रूर बन गया है। 

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका की हार

लेकिन सुरक्षा परिषद ने ट्रंप की लू उतारकर रख दी है। अमेरिका ने ईरान पर लगे हथियार खरीदने के प्रतिबंधों को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन 15 सदस्यों वाली इस सुरक्षा परिषद में सिर्फ एक सदस्य ने उसका समर्थन किया। उसका नाम है- डोमिनिकन रिपब्लिक। यह एक छोटा-सा महत्वहीन देश है। अमेरिका को ऐसी पराजय का मुँह पिछले 75 साल में पहली बार देखने को मिला है।
डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन और कमला हैरिस के जीतने के आसार इतने बढ़ गए हैं कि दुनिया के राष्ट्र बड़बोले ट्रंप का ज़्यादा लिहाज़ नहीं कर रहे हैं।
चीन ने हाल ही में ईरान के साथ अरबों डॉलर खपाने का समझौता किया है और रूस के व्लादिमीर पुतिन ने ईरान के साथ हुए अंतरराष्ट्रीय परमाणु समझौते पर एक शिखर सम्मेलन बुलाने का भी सुझाव दिया है। ट्रंप की टोपी में ईरान एक बिच्छू बना हुआ है। 
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग www.drvaidik.in से साभार। )
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डॉ. वेद प्रताप वैदिक

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