नेपाल में एक नाटकीय घटनाक्रम में देश के सुप्रीम कोर्ट ने भंग किए गए संसद के प्रतिनिधि सदन को बहाल कर दिया है और राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा को दो दिन के भीतर प्रधानमंत्री नियुक्त करने को कहा है। पाँच महीने में यह दूसरी बार है कि नेपाल के प्रतिनिधि सदन को दूसरी बार फिर से बहाल किया गया है।
पिछले साल 20 दिसंबर को भंग किया गया था जिसे सुप्रीम कोर्ट ने फ़रवरी चौथे हफ़्ते में बहाल कर दिया था। इसके बाद मई में फिर से इसे भंग कर दिया गया था जिसे सुप्रीम कोर्ट अब फिर से बहाल कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट की फुल बेंच का यह फ़ैसला संसद के 146 सांसदों की याचिका पर आया है। उन्होंने याचिका में कहा था कि राष्ट्रपति द्वारा असंवैधानिक काम और ग़लतियों को संसद को बहाल कर और देउबा को प्रधानमंत्री बनाकर सुधारा जा सकता है। इससे पहले 271 सांसदों वाली संसद के 149 सांसदों ने हस्ताक्षर कर याचिका दी थी जिसे राष्ट्रपति ने दरकिनार कर दिया था।
दरअसल राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने 21 मई को संसद को भंग कर दिया था और छह महीने के भीतर फिर से चुनाव कराने का आदेश दिया था। राष्ट्रपति ने यह फ़ैसला कार्यवाहक प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की कैबिनेट की सिफ़ारिश पर लिया। ओली को तब हाल ही में कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था क्योंकि विपक्षी दलों के नेता गठबंधन बनाकर सरकार बनाने में विफल रहे थे।
लेकिन इसके साथ ही नेपाल के विपक्षी दलों नेपाली कांग्रेस, माओवादी पार्टी, समाजवादी जनता पार्टी के एक वर्ग और ओली की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल के असंतुष्टों ने चेतावनी दी थी कि अगर राष्ट्रपति ने संविधान का उल्लंघन किया और ओली को पद पर बनाए रखा तो वे देश भर में व्यापक विरोध प्रदर्शन करेंगे।
ओली के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के अलावा विपक्षी दलों द्वारा महाभियोग लाने की भी चेतावनी राष्ट्रपति को दी जा रही थी। इसे देखते हुए राष्ट्रपति ने संसद को भंग करने का फ़ैसला किया था।
ओली 39 महीने तक प्रधानमंत्री के पद पर रहे जबकि उनका कार्यकाल 5 साल या 60 महीने का था। लेकिन माओवादी पार्टी के गठबंधन से बाहर निकलने और सियासी विरोधी पुष्पकमल दहल प्रचंड के सरकार से समर्थन वापस लेने के बाद से ही ओली की सरकार अल्पमत में आ गई थी। 10 मई को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली संसद में विश्वास मत हार गए थे।
बता दें कि इससे पहले भी नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने फ़रवरी में ओली को झटका दिया था। उसने ओली के संसद भंग करने के फ़ैसले को पलट दिया था और उसे असंवैधानिक क़रार दिया था।
जून महीने में ही ओली ने दावा किया था कि उनका तख्ता पलट करने का प्रयास किया जा रहा था। नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रतिद्वंद्वियों में इस विवाद के बीच ही दिसंबर महीने में एक अध्यादेश पर विवाद हो गया और प्रधानमंत्री ओली बेहद दबाव में आ गए। काठमांडू पोस्ट अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, 'पीएम ओली पर संवैधानिक परिषद अधिनियम से संबंधित एक अध्यादेश को वापस लेने का दबाव था जिसे उन्होंने मंगलवार (23 फ़रवरी) को जारी किया था और उसी दिन राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा हरी झंडी मिल गई थी।'
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