loader

आतंकवाद पर मुश्किल में पाक, काली सूची का ख़तरा

टेरर फंडिंग रोकने के लिए बने अंतरराष्ट्रीय संगठन फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफ़एटीएफ़) के एशिया प्रशांत विभाग ने पाकिस्तान को काली सूची में डाल दिया है। इसलामाबाद को अक्टूबर तक का समय मिला हुआ है। उस समय तक इसके कामकाज से एफ़एटीएफ़ संतुष्ट नहीं हुआ तो इसे वह अपने संगठन की मुख्य काली सूची में डाल सकता है। यदि ऐसा हुआ तो पाकिस्तान को ख़ासी दिक्क़त होगी, क्योंकि उसके बाद आर्थिक रूप से यह एकदम अलग-थलग पड़ जाएगा। 

40 में से 32 मामलों में नाकाम पाक

आतंकवादी गुटों तक पैसे पहुँचने से रोकने के लिए बने इस संगठन ने अपने एकदम ताज़ा रपट में कहा है कि टेरर फंडिंग और मनी लॉन्डरिंग रोकने के लिए तय 40 दिशा निर्देशों में से 32 का पालन करने में पाकिस्तान नाकाम रहा है। पाकिस्तान पहले से ही एफ़एटीएफ़ के 'ग्रे लिस्ट' में था, जिसका मतलब है कि उसे चेतावनी दे कर छोड़ दिया गया था और अपनी स्थिति सुधारने और बेहतर कामकाज करने के लिए समय दिया गया था।FAT हाल की बैठक में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल 41 सदस्यों के पैनल को यह समझाने में नाकाम रहा कि इसलमाबाद ने टेरर फंडिंग रोकने की कोशिश की है। उसके उत्तर से अंसतुष्ट पैनल ने पाकिस्तान को एशिया प्रशांत डिवीजन की काली सूची में डाल दिया। 
पाकिस्तान को अभी भी मुख्य काली सूची में नहीं डाला गया है, पर यदि अक्टूबर की बैठक में भी यह पाया गया कि उसने बेहतर कामकाज नहीं किया तो उसे अंतिम काली सूची में डाल दिया जाएगा। उसके बाद उसे न निवेश मिलेगा न कर्ज़।
एफ़एटीएफ़ ने जून की बैठक के बाद पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी देकर छोड़ दिया था और कहा था कि यदि अक्टूबर तक उसने आतंकवादियों तक पैसा पहुँचने से रोकने के सारे इंतजाम नहीं कर लिए तो उसे काली सूची में डाल दिया जएगा। उसे एक 'एक्शन प्लान' दिया गया था और कहा गया था कि उसे इसे हर हाल में लागू करना ही है। पर हालिया बैठक में पाया गया कि पाकिस्तान ने उस 'एक्शन प्लान' को पूरी तरह लागू नहीं किया है। 

पाक का तर्क

पाकिस्तान ने तर्क दिया कि उसने आतंकवादियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की है और उन तक पैसे पहुँचने से रोकने के सारे उपाय किए हैं। पाक प्रतिनिधियों ने यह भी कहा कि जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा और हिज़बुल मुजाहिदीन की 700 जायदादों को जब्त कर लिया गया। लेकिन भारत ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इन जायदादों को जब्त करने का यह मतलब नहीं होता है कि टेरर फंडिंग पूरी तरह रुक ही गई है। दूसरे देशों ने भी कहा कि ये आतंकवादी गुट काम कर रहे हैं, इसका ही मतलब है कि उन्हें किसी न किसी रूप में, कहीं न कहीं से पैसे मिल रहे हैं। 
पाकिस्तान के लिए राहत की बात यह है कि एफ़एटीएफ़ का अगला अध्यक्ष चीन होगा, जो इसलामाबाद की मदद करता रहा है। वह इस मामले में भी पाकिस्तान पर दबाव कम कर सकता है या उसे और मुहलत दिलवा सकता है।

क्या असर पड़ेगा?

पाकिस्तान अभी 'ग्रे लिस्ट' मे है। यदि वह इससे बाहर नहीं निकलता है तो विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को 'डाउनग्रेड' कर सकता है, यानी निचले पायदान पर रख सकता है। लेकिन यदि पाकिस्तान को काली सूची में डाल दिया गया तो इन संस्थानों से कर्ज़ या किसी दूसरे तरह की कोई मदद पाकिस्तान को बिल्कुल नहीं मिल सकेगी। इसके अलावा मूडीज़ और स्टैंडर्ड एंड पूअर जैसी रेटिंग एजेन्सियाँ भी इसकी 'सॉवरन रेटिंग' कम कर देंगी, यानी पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को ऐसी जगह बताएगी, जहाँ निवेश सुरक्षित नहीं होगा। ऐसे में कोई पाकिस्तान में निवेश भी नहीं करेगा। 
एफ़एटीएफ़ का यह फ़ैसला और अक्टूबर तक की समय सीमा ऐसे वक़्त आई है, जब पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था एकदम फटेहाल है। उसके पास कर्मचारियों को वेतन देने तक के पैसे भी नहीं हैं। बड़ी मुश्किल से और काफ़ी मान-मनौव्वल के बाद अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष 6 अरब डॉलर के कर्ज़ पर राजी हुआ है। इसी तरह सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भी कर्ज देने को तैयार हो गया है। चीन ने पैसे नहीं देने के बावजूद आर्थिक गलियारे का काम जारी रखा है, उसका पूरा निवेश ही कर्ज़ है। पाकिस्तान को फ़ौरी मदद तो मिल रही है, पर धीरे-धीरे कर्ज़ के जाल में फँसता जा रहा है और जल्द ही 'डेट-रिडन इकॉनमी' बन जाएगा। यानी पाकिस्तान ऐसी अर्थव्यवस्था में तब्दील हो जाएगा जो पूरी तरह कर्ज पर निर्भर होगा और कर्ज चुकाने में ही उसकी पूरी कमाई चली जाएी। यह बेहद ख़तरनाक स्थिति होती है, उसके बाद दिवालियापन की नौबत ही आती है।  
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी

अपनी राय बतायें

दुनिया से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें