loader

तालिबान समझौता टूटा, पाक की अहमियत बढ़ी, भारत की स्थिति कमज़ोर

जम्मू-कश्मीर में जिस तरह नेताओं की महीनों से नज़रबंदी चल रही है और इंटरनेट सेवाएं बाधित कर दी गई हैं, नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ पूरे देश में जिस तरह आन्दोलन और दंगे चल रहे हैं, वे पाकिस्तान के भारत विरोधी बयानों और नज़रिये को और बल प्रदान करेंगे।
रंजीत कुमार
तालिबान-अमेरिका समझौता टूटने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के ग्रेट गेम में एक बार पाकिस्तान बड़ा खिलाड़ी बन कर उभरने लगा है। अमेरिका और यूरोपीय देश यह मान कर चल रहे हैं कि अफ़ग़ानिस्तान की गुत्थी खोलने की चाबी पाकिस्तान के पास ही है, इसलिये वे पाकिस्तान को मुख्य बिचौलिये की तरह मान रहे हैं।
पाकिस्तान ने तालिबान-अमेरिका समझौता करवाने में तुरुप के पत्ते की तरह तालिबानी नेताओं को  अपने गोपनीय ठिकानों से बाहर निकाला और वार्ता की मेज पर पेश कर दिया। जिन तालिबानी नेताओं की अमेरिकी सुरक्षा बलों को तलाश रहती थी उन्हें पाकिस्तान ने दुनिया के सामने पेश किया।
दुनिया से और खबरें
इनमें अमेरिका द्वारा घोषित इनामी आतंकवादी मुल्ला अब्दुल्ला गनी बरादर और अनाश हक्कानी आदि शामिल हैं। अमेरिका जिस मुल्ला बरादर की जान के पीछे पडा था, उसी ने अमेरिकी दूत ज़ालमे ख़लीलज़ाद के साथ कथित शांति समझौते पर दस्तख़त किये। चूंकि इस समझौते की कोई ज़मीन नहीं थी, इसलिये इस पर दस्तख़त होते ही यह बिखर गया।

क्यों टूटा समझौता?

29 फ़रवरी को क़तर की राजधानी दोहा में तालिबान और अमेरिका के बीच शांति समझौते पर दस्तख़त की स्याही सूखी भी नहीं थी कि तालिबान ने इस समझौते के अनुरूप आगे बढ़ने की ऐसी शर्तें लागू कर दीं कि यह टूटना ही था।
चूंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प किसी भी हालत में अफ़ग़ानिस्तान से अपनी फ़ौज हटाना चाहते थे, इसलिये अमेरिकी राजनयिकों ने तालिबान की उल-जलूल शर्तें भी मान लीं।
तालिबान-अमेरिका समझौते में एक बड़ी शर्त यह थी कि अफ़ग़ानिस्तान सरकार तालिबान के 5 हज़ार आतंकवादियों को रिहा कर देगी। लेकिन अफ़ग़ान सरकार का यह कहना ग़ैरवाजिब नहीं था कि पहले 10 मार्च को तालिबान-अफ़ग़ान वार्ता शुरू होने और इसमें कुछ प्रगति हासिल होने के बाद ही तालिबान के जेहादी जेलों से निकाले जा सकते हैं।
चूंकि अफ़ग़ान सरकार ने तालिबानियों को रिहा करने से इनकार कर दिया, इसलिये तालिबान ने भी अपने हिंसक आतंकवादी हमले फिर शुरू कर दिये।

पाकिस्तान का तुरुप का पत्ता!

चूंकि 2001 में अमेरिका पर हुए भीषण आतंकवादी हमलों के बाद अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान- पाकिस्तान गठजोड़ की कमर तोड़ दी थी, इसलिये पाकिस्तान ने चालाकी से अपने पांसे फेंके और दो दशक बाद उसके लिये वह कामयाब दिन आ ही गया जब उसने तालिबान को उत्तर पूर्व में वज़ीरिस्तान की पहाड़ी गुफाओं से निकाल कर दुनिया के सामने वापस सम्मान दिलवाया।
इसके एवज में पाकिस्तान को एक बड़ी कामयाबी यह मिली है कि अमेरिका और यूरोपोय देशों ने पाकिस्तान का आतंकवादी चेहरा धोना शुरू कर दिया है।
इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह देखने को मिला है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने 24 फरवरी को अहमदाबाद के दौरे में पाकिस्तान को शराफत का प्रमाण पत्र दे दिया।
इसके पहले पाकिस्तान ने अपने विरोधी आतंकवादी गुट तहरीके तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी)  के सरगना मुल्ला फज़लुल्ल्लाह को जून, 2018 में अमेरिका से ड्रोन हमले में मरवा दिया। इसके बाद टीटीपी के तीन और आला नेताओं को मौत के घाट उतरवा कर काफी हद तक पाकिस्तान ने अपनी चिंताएँ दूर करवा दीं।

पाकिस्तान को राहत

कहने को तो पाकिस्तान पर फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स की सख़्त निगरानी चल रही है और उसे आज तक ग्रे लिस्ट से बाहर नहीं निकाला जा सका है। लेकिन इस साल जनवरी में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की निगरानी समिति ने पाकिस्तान को बड़ी राहत प्रदान कर दी थी।
पिछले साल जुलाई, 2019 में इस निगरानी समिति ने अपनी 24 वीं रिपोर्ट में  यह साफ़ लिखा था कि अल क़ायदा का लश्कर- ए-तैयबा और हक्कानी नेटवर्क के साथ परस्पर सहयोग जारी है। लेकिन जनवरी, 2020 में  जारी 25 वीं रिपोर्ट में लश्कर-ए-तैयबा और हक्कानी नेटवर्क का कोई ज़िक्र नहीं था।
इस रिपोर्ट में यह भी लिखा था कि आतंकवदी गुट आइसिल-के के जमात-उल-अहरार, टीटीपी और लश्कर-ए-इसलाम के साथ नज़दीकी सम्बन्ध बन चुके हैं, जो अफ़ग़ान-पाकिस्तान सीमा पर पाकिस्तानी चौकियों को लगातार निशाना बना रहे हैं।
साफ़ है कि पाकिस्तान को आतंकवादी गुटों के हमलों का शिकार बता उसके साथ हमदर्दी दिखाने की कोशिश शुरू हो गई थी।

पाक की अहमियत

पाकिस्तान विरोधी सभी आतंकवादी गुटों को इसलामिक स्टेट (आइसिल) का समर्थक बताया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट में तालिबान को सहयोगी गुट की तरह पेश करते हुए कहा गया है कि आइसिल के ख़िलाफ़ तालिबान सकारात्मक भूमिका निभा रहा है।
इस तरह तालिबान-अमेरिका समझौता भले ही बिखर गया हो, अमेरिका की नज़र में तालिबान की अहमियत और बढ़ जाएगी क्योंकि तालिबान और अमेरिका के बीच बातचीत का सिलसिला जारी रहेगा।
तालिबान को एक बार प्रतिष्ठित करने के बाद अमेरिका अब पहले दुत्कारे गए तालिबानी नेताओं से मुंह नहीं मोड़ सकता। और चूंकि ये तालिबानी नेता पाकिस्तानी टुकड़ों पर ही पल रहे हैं, इसलिये अमेरिका के साथ किसी भी सौदेबाजी में पाकिस्तान की अहमियत बनी रहेगी।

भारत को झटका

इसका पहला सुफल पाकिस्तान के लिये यह देखने को मिलेगा कि पाकिस्तान अपने चेहरे से आतंकवादी समर्थक होने की कालिख पोछ लेगा। आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अमेरिकी दबाव केवल दिखाने को ही बचेगा। आइसिल का नाम लेकर पाकिस्तान यह सिद्ध करने में कामयाब होगा कि वह ख़ुद आतंकवाद का शिकार है।
आतंकवाद को लेकर भारत पाकिस्तान पर जिस तरह के आरोप लगाता रहता है, अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय उसे उतनी तवज्जो नहीं देगा। 

कुल मिलाकर आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत अब तक जो राजनयिक सहानुभूति अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हासिल करता रहा है, वह कमज़ोर पड़ सकती है।
जम्मू-कश्मीर में जिस तरह नेताओं की महीनों से नज़रबंदी चल रही है और इंटरनेट सेवाएं बाधित कर दी गई हैं, नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ पूरे देश में जिस तरह आन्दोलन और दंगे चल रहे हैं, वे पाकिस्तान के भारत विरोधी बयानों और नज़रिये को और बल प्रदान करेंगे।
आने वाले दिन आतंकवाद और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारत की मौजूदा रणनीति को भारी चोट पहुँचाने वाले साबित होंगे।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
रंजीत कुमार

अपनी राय बतायें

दुनिया से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें