भारतीय मीडिया का बड़ा हिस्सा गोदी मीडिया बना हुआ है और वह सरकार के ख़िलाफ़ कुछ भी बोलने से कतराता है। इसके साथ ही मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सत्तारूढ़ दल के विरोधियों पर लगातार हमले करता रहता है। कई बार अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की तुलना मोदी से की जाती है, लेकिन अमेरिकी मीडिया अब भी निष्पक्ष है और वह ट्रंप के ख़िलाफ बोलता रहता है, उनके प्रशासन की नीतियों की आलोचना करता रहता है। ताज़ा मामला है कांग्रेस के 4 सदस्यों पर ट्रंप की आपत्तिजनक टिप्पणी और उस पर मीडिया का रवैया। प्रतिष्ठित अमेरिकी पत्रिका ‘न्यूयॉर्कर’ के संपादक डेविड रेमनिक ने इस पर अपने संपादकीय में ट्रंप की जम कर आलोचना की है। पढ़िए उसका संपादित हिस्सा।
पिछले सप्ताहांत में ट्रंप ने अपने छह करोड़ ट्विटर फॉलोवर को बताया कि उन्होंने कांग्रेस यानी संसद के 4 डेमोक्रेट सदस्यों, इलहान उमर, अयाना प्रेसली, अलेंक्ज़ांद्रा ओकेसियो कॉर्टिज़ और रशीदा तलैब से कहा है कि यदि वे लगातार उनकी आलोचना करती रहेंगी तो बेहतर है कि वे अपने-अपने देश लौट जाएँ, जहाँ से वे आई हैं। यह सबसे भद्दी किस्म की धमकी है और इसके पीछे बदबूदार इतिहास रहा है। ट्रंप यह कह रहे थे कि वे महिलाएँ यहाँ की नहीं है। वह अपने श्वेत आलोचकों के बारे में ऐसा कभी नहीं कह सकते थे। अमेरिकी होने की इस अवधारणा में श्वेत लोग ही यहाँ के हैं और यहाँ का सारा सब कुछ उन्हीं का है।
क्या कहा ट्रंप ने?
जब रिपोर्टरों ने इस बारे में ट्रंप से पूछा कि क्या यह टिप्पणी नस्लवादी है, उन्होंने न तो इस पर माफ़ी माँगी न ही इसे वापस लिया। उन्होंने अपने संदेश को और ज़ोर देकर कहा, ‘यदि आप यहाँ खुश नहीं हैं तो जा सकती हैं।’
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जहाँ तक मेरी बात है, यदि आप हमारे देश से नफ़रत करते हैं, ‘यदि आप यहाँ खुश नहीं हैं, आप जा सकते हैं। और यही बात मैं हमेशा से कहता आया हूँ।
डोनल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका
वह यहीं नहीं रुके। ट्रंप ने इसमें आगे जोड़ा, ‘मैंने अपने ट्वीट में यही तो कहा है, जो कुछ लोगों को विवादास्पद लगता है, लेकिन कई लोगों को यह अच्छा लगा है।’
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‘बहुत से लोगों को यह अच्छा लगा है। यदि आप अमेरिका में खुश नहीं हैं, यदि आप हर समय हर समय शिकायत ही करते रहते हैं तो बहुत आसान है, आप जा सकते हैं। आप अभी, इसी समय जा सकते हैं। आप चाहें तो वापस आ जाएँ, न चाहें तो न आएँ। यह भी ठीक है। लेकिन यदि आप खुश नहीं है तो आप जा सकते हैं।
डोनल्ड ट्रंप, राष्ट्रपति, अमेरिका
विरोधियों से पीछे हैं ट्रंप
ट्रंप अपनी नीतियों पर कोई चुनाव फिर से नहीं लड़ सकते। नतीजे बताते हैं कि वे इन चार डोमोक्रेटस सदस्यों से पीछे हैं: जो बाइडेन, बर्नी सैंडर्स, एलिजाबेथ वॉरन और कमला हैरिस। इसलिए वे जितना मुमकिन है, गंदगी उछालेंगे और यह उम्मीद करेंगे कि उनके समर्थक पर्याप्त संख्या में बाहर निकल कर आएंगे। वे यह जानते हैं कि ऐसा किस तरह किया जा सकता है। वे कभी चिल्ला कर कहेंगे, ‘समाजवाद’ तो कभी कहेंगे, ‘आप यह जगह छोड़ कर जा सकते हैं।’ट्रंप ने उमर के बारे में कहा, ‘मैंने सुना है कि वे अल क़ायदा के बारे में क्या कहती रही हैं। अल क़ायदा ने कई अमेरिकियों की हत्या की है। पर उमर ने कहा है, आप अपनी छाती फुला सकते हैं।’ इलहान उमर ने ऐसा कुछ नहीं कहा है।
इससे रिपब्लिकन पार्टी का नेतृत्व घबराया हुआ है। इस पार्टी के लिंडसे ग्राहम ने फॉक्स न्यूज़ से कहा कि ‘वे चारों महिलाएँ कम्युनिस्ट हैं।’ वे ट्रंप के आगे झुके हुए हैं, उनकी बातें मानते रहे हैं, पर उन्होंने भी कुछ दिन पहले ट्रंप को सलाह दी कि ‘वे अपना लक्ष्य ऊंचा रखें।’
लेकिन ट्रंप ने लिंडसे की एक न सुनी। उन्होंने कहा, ‘मैं इस मुद्दे पर लिंडसे से असहमत हूं।’ उन्होंने कहा, लिंडसे ने कहा, लक्ष्य ऊँचा रखो, ऊँचे पर गोली चलाओ। मैं क्या करने जा रहा हूं, देखते रहिए, क्या मैं इन लोगों को ऊँची पोजीशन दूंगा। ये लोग हमारे देश से नफ़रत करते हैं।
इसके उलट ओकेसियो कॉर्टिज़, तेलैब और प्रेसली ने लोगों से अपील की कि वे ट्रंप के नस्लवादी जाल में न फँसें, वे जलवायु परिवर्तन और आमदनी में असमानता जैसे मुद्दों पर ध्यान लगाए रखें।
ट्रंप पद पर रहने लायक हैं?
रीपब्लिकन, इंडीपेंडट्स और दूसरे तमाम जिन लोगों ने 2016 के चुनाव में ट्रंप को वोट दिया था, उन्हें अपने आप से पूछना चाहिए कि क्या यह आदमी अब भी राष्ट्रपति पद पर बने रहने लायक है? उन्हें अपने आप से पूछना चाहिए कि इस आदमी के नस्लवाद को नज़रअंदाज़ करने का क्या मतलब है। वे यह कैसे मानते हैं कि इस तरह के नस्लवाद का समर्थन करते रहें और ख़ुद उससे बच निकलें। या क्या वे साफ़ कह देंगे कि उन्हें इसकी चिंता नहीं है, जैसा वित्त मंत्री स्टीव म्यूचिन ने कहा।
भविष्य कांग्रेस के सदस्यों पर निर्भर है। उनके पास यह विकल्प है कि वे ट्रंप से मिलीभगत करें या उनके ख़िलाफ़ महाभियोग का प्रस्ताव लाएँ, वे उनका साथ दें या विरोध करें।
हमें 1989 में ऐसा लगा था कि लोकतंत्र की लहर को कोई रोक नहीं सकता, पर यह भ्रम साबित हुआ और लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण हुआ है। जब 2008 में बराक ओबामा राष्ट्रपति चुने गए, हमें लगा कि नस्ल के बारे में हम प्रगति कर रहे हैं। पर अब व्हाइट हाउस में डोनल्ड ट्रंप हैं।
ड्यू बोई ने अपने शोध 'ब्लैक रीकन्सट्र्क्शन इन अमेरिका' में लिखा था, ‘ग़ुलामों को आज़ाद कर दिया गया, वे थोड़ी देर धूप में खड़े रहे और उसके बाद ग़ुलामी की ओर फिर बढ़ चले।’ उसके बाद दूसरा पुनर्निमाण हुआ, इसे नगारिक अधिकारों का आंदोलन कहा गया। अब हम जहाँ हैं, हैं। आगे क्या होगा, यह पूरी तरह हम पर निर्भर है।
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