विवादों में रहे राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के पूर्व कोऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार करने के आरोप में एफ़आईआर दर्ज की गई है। यह रिपोर्ट केंद्रीय जाँच एजेंसी यानी सीबीआई में दर्ज कराई गई है। असम के एनजीओ असम पब्लिक वर्क्स यानी एपीडब्ल्यू ने उन पर वित्तीय गड़बड़ी करने का आरोप लगाया है। यह एपीडब्ल्यू उन संगठनों में से एक है जो एनआरसी को अपडेट किए जाने की सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने वाले मूल याचिकाकर्ता हैं। हजेला पर पहले भी गड़बड़ी किए जाने के आरोप लगते रहे हैं और उन्हीं शिकायतों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने प्रतीक हजेला का तुरंत प्रभाव से तबादला करने का आदेश दिया था। तब एनआरसी में जानबूझकर नाम नहीं जोड़े जाने की शिकायतें आई थीं और इस पर काफ़ी हंगामा हुआ था।
शिकायत में यह भी आरोप लगाया गया है कि उन सलाहकारों के काम का न तो कोई रिकॉर्ड है और न ही कंप्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल यानी सीएजी द्वारा इसका ऑडिट किया गया है। हजेला पर यह भी आरोप है कि एनआरसी प्रक्रिया के लिए शिक्षकों को काम पर लगाया गया था और रिकॉर्ड में उनको भुगतान किए जाने का ज़िक्र है जबकि उन शिक्षकों को रुपये दिए ही नहीं गए। इसके साथ ही 10 हज़ार लैपटॉप ख़रीद में भी गड़बड़ी की शिकायत की गई है। आरोप लगाया गया है कि बाज़ार में 22500 रुपये में मिलने वाले प्रति लैपटॉप 44000 रुपये में ख़रीदे गये।
एनआरसी सूची में गड़बड़ी के आरोप के बाद अब लोगों की नियुक्त और उन्हें भुगतान से लेकर लैपटॉप ख़रीद में भी अनियमितता का आरोप लगना सामान्य नहीं है। जिस एनआरसी पर पूरे देश भर की नज़रें लगी थीं उसमें भी ऐसी गड़बड़ी के आरोप चौंकाने वाले हैं।
एनआरसी सूची में भी गड़बड़ी के आरोप
बता दें कि एनआरसी सूची में गड़बड़ी के आरोप में प्रतीक हजेला का तबादला कर दिया गया था। इनके ख़िलाफ़ 31 अगस्त को जारी एनआरसी सूची से लोगों के नाम ग़लत तरीक़े से बाहर कर देने की शिकायतें आई थीं। शिकायत के बाद पिछले महीने हजेला के ख़िलाफ़ दो मामलों में असम पुलिस ने केस दर्ज किया था। पहला केस अखिल असम गोरिया मोरिया युवा छात्र परिषद ने हजेला के ख़िलाफ़ गुवाहाटी में दर्ज कराया था, जबकि दूसरा केस डिब्रूगढ़ ज़िले में एक व्यक्ति चंदन मजूमदार ने कराया था। चंदन का आरोप है कि उनका नाम एनआरसी से जानबूझकर निकाला गया। इन्होंने कई लोगों को पात्र होने का दावा करते हुए नाम नहीं शामिल करने पर हंगामा किया था।
इसी मामले में इसी साल अक्टूबर महीने में पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस.ए. बोबडे और जस्टिस फली नरीमन की बेंच ने केंद्र को उनका कैडर बदलकर मध्य प्रदेश करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने हजेला के ट्रांसफ़र का कारण नहीं बताया, लेकिन एक न्यूज़ एजेंसी का दावा था कि हजेला की जान को ख़तरे के मद्देनज़र यह फ़ैसला दिया गया। जब अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने पूछा कि हजेला का ट्रांसफ़र किस कारण किया जा रहा है तो पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने यह ज़रूर कहा कि क्या कोई आदेश बिना वजह के हो सकता है, लेकिन उन्होंने इसका खुलासा नहीं किया था।
बता दें कि एनआसीसी की आख़िरी सूची प्रकाशित होने के बाद बड़ी संख्या में लोग दावा करते रहे हैं कि उनके पास वैध कागजात होने के बावजूद उनके नाम शामिल नहीं किए गए। पहली सूची जारी होने पर भी ऐसी ही शिकायतें आयी थीं। पहली सूची में 3.29 करोड़ लोगों में से 2.89 करोड़ लोगों को नागरिक माना गया था, वहीं 40.37 लाख लोगों को बाहर कर दिया गया था। इसके बाद एनआरसी सूची से बाहर रह गए लोगों को फिर से आवेदन करने का मौक़ा मिला था और जब 31 अगस्त को फ़ाइनल सूची जारी हुई तो बड़ी संख्या में लोग उस सूची में शामिल कर लिए गए। 31 अगस्त को आई अंतिम एनआरसी सूची में आवेदन करने वाले कुल 3,30,27,661 में से 3,11,21,004 को भारत के नागरिक का दर्जा दिया गया था। 19,06,657 लोगों के नाम बाहर कर दिए गए।
एनआरसी की सूची प्रकाशित होने के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस, दोनों ही हजेला की आलोचना कर चुके हैं। सितंबर महीने में वरिष्ठ कांग्रेस नेता तरुण गोगोई ने यह शिकायत करते हुए जस्टिस गोगोई को पत्र लिखा था कि हजेला अपनी ज़िम्मेदारी सही तरीक़े से नहीं निभा पा रहे हैं।
एनआरसी के इस पूरे मामले की निगरानी सुप्रीम कोर्ट कर रहा है। लेकिन इस पर काम कराने की ज़िम्मेदारी कोऑर्डिनेटर की है। कोऑर्डिनेटर ने ही एनआरसी की सूची तैयार की है और इसको प्रकाशित किया है। हजेला सितंबर 2013 से असम में एनआरसी कोऑर्डिनेटर पद पर थे।
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