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महाराष्ट्र: क्या भगवा गठबंधन को हरा पायेगा विपक्ष?

महाराष्ट्र में विधानसभा के चुनाव इस बार 21 अक्टूबर को होंगे और मतों की ग़िनती 24 अक्टूबर को होगी। प्रदेश में चुनाव की प्रक्रिया 27 सितम्बर से शुरू हो जाएगी। इस बार के चुनाव की ख़ास बात यह है कि प्रदेश में एक ही दिन सभी सीटों पर मतदान होने वाला है। सामान्यतः प्रदेश में विधानसभा के चुनाव दो चरणों में होते थे। एक चरण में चुनाव कराने को भी एक राजनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है। 

इसकी एक वजह यह है कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अधिकाँश नेताओं के पार्टी छोड़ देने से उनके लिए एक ही दिन में मतदान होना काफ़ी परेशानी भरा हो सकता है। दो चरणों में जब चुनाव होते थे उस समय पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा के नेता मुंबई और उसके उपनगरों में रहने वाले अपने क्षेत्र के मतदाताओं के बीच जाकर उनसे मतदान की अपील किया करते थे लेकिन इस बार ऐसा शायद ही संभव हो पायेगा। 

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पश्चिम महाराष्ट्र और मराठवाड़ा क्षेत्र में कांग्रेस और एनसीपी का अच्छा प्रभाव माना जाता रहा है। इस बार भी पश्चिम महाराष्ट्र की 4 लोकसभा सीटें जीतकर एनसीपी ने अपनी पकड़ इस क्षेत्र पर सिद्ध की है। इस बार पश्चिम महाराष्ट्र बाढ़ और मराठवाड़ा सूखे से प्रभावित है और यह देखना है की इस क्षेत्र की जनता सरकार के प्रति क्या रवैया अपनाती है। 

महाराष्ट्र में इस बार चुनाव से पहले बड़े स्तर पर दल-बदल का खेल खेला गया है। बड़े पैमाने पर कांग्रेस और एनसीपी के नेताओं ने बीजेपी और शिवसेना में प्रवेश किया। इन नेताओं के पार्टी छोड़ने पर बार-बार यही सवाल उठते रहे कि ये दल-बदल आयकर और ईडी के दबाव के चलते हुए हैं।

कांग्रेस-एनसीपी की नयी रणनीति

बड़े नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस और एनसीपी दोनों ही नयी रणनीति के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी में जुटी हैं। इन तैयारियों का कितना असर चुनाव में दिखेगा यह तो आने वाले समय में दिखेगा। फिलहाल एनसीपी शरद पवार को चेहरा बनाकर रणनीति तैयार कर रही है और कांग्रेस ने निर्णय किया है कि वह कई पूर्व सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ायेगी। इसके विपरीत बीजेपी और शिवसेना दोनों ही नरेंद्र मोदी के सहारे ही चुनाव लड़ने वाली हैं। 

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पिछले विधानसभा चुनावों की बात करें तो महाराष्ट्र में साल 2014 में बीजेपी 122 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। सीटों के बंटवारे को लेकर सहमति न बनने के बाद 25 साल में पहली बार शिवसेना और बीजेपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया था। हालांकि, दोनों में से किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला और चुनाव बाद दोनों दलों ने फिर से गठबंधन कर सरकार बनाई और देवेंद्र फडणवीस सीएम बने थे। इस चुनाव में शिवसेना ने कुल 63 सीटों पर जीत हासिल की थी। वहीं, कांग्रेस के खाते में 42 और एनसीपी के खाते में 41 सीटें रही थीं। 

प्रदेश के मौजूदा सियासी समीकरण की बात करें तो एनसीपी और कांग्रेस इस बार साथ चुनाव लड़ने वाले हैं। पिछली बार दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था लेकिन इस बार दोनों दल 125-125 सीटों पर चुनाव लड़ने को सहमत हुए हैं। वहीं, बीजेपी और शिवसेना के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत जारी है। माना जा रहा है कि एक-दो दिन में दोनों दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर अंतिम सहमति बन जाएगी। 

सूत्रों की मानें तो शिवसेना 126 सीटों पर, बीजेपी 144 सीटों पर और 18 सीटों पर अन्य सहयोगी पार्टियां चुनाव लड़ सकती हैं।

पिछले चुनाव में प्रदर्शन

पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को (27.8%),  शिवसेना को (19.3%), कांग्रेस को (18.0%), एनसीपी को (17.2%), निर्दलीय प्रत्याशियों को (4.7%) तथा अन्य  छोटी -छोटी पार्टियों को (13%) मत मिले थे। छोटी पार्टियों में बहुजन विकास आघाडी ने 3 सीटें, भारतीय शेतकरी कामगार पार्टी ने 3 सीटें, ऑल इंडिया मजलिसे-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने 2 सीटें, भारिपा बहुजन महासंघ ने 1 सीट, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने 1 सीट, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने 1 सीट, राष्ट्रीय समाज पक्ष ने 1 सीट, समाजवादी पार्टी ने 1  सीट तथा निर्दलीय प्रत्याशियों ने 7 सीटें जीती थीं।

इस बार के विधानसभा चुनाव में एक और ख़ास बात यह है कि बीजेपी के साथ पिछले चुनाव में जो छोटी पार्टियां चुनाव लड़ रही थीं उनमें से कुछ पार्टियां अब उसका साथ छोड़कर कांग्रेस -एनसीपी के साथ खड़ी हैं। इनमें से सबसे प्रभावी पार्टी है राजू शेट्टी की स्वाभिमानी शेतकरी पार्टी जिसका पश्चिम महाराष्ट्र व मराठवाड़ा क्षेत्र में अच्छा प्रभाव है। राजू शेट्टी के किसान आन्दोलनों की वजह से किसानों के बीच उनकी पकड़ मजबूत होती जा रही है। 

इन मुद्दों पर घिरेगी सरकार 

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सरकार पर बिल्डर्स के साथ उनके संबंधों को लेकर विपक्ष सबसे ज़्यादा हमलावर होने वाला है। बिल्डर्स को पहुँचाए गए लाभों के आरोप में सरकार के शहरी विकास मंत्री प्रकाश मेहता को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। यही नहीं कोल्हापुर में बाढ़ का जो महत्वपूर्ण कारण सामने आया उसमें भी बिल्डर्स और अवैध निर्माण की ही भूमिका महत्वपूर्ण रही है।

कोल्हापुर, औरंगाबाद, पिंपरी-चिंचवड़ सहित चार बड़े शहरों के लिए जो शहर विकास प्राधिकरण बनाये गए हैं, वे बिल्डर्स के इशारे पर कार्य कर रहे हैं और उनमें बहुत बड़े पैमाने पर अनियमितताएं होने के आरोप भी चुनाव प्रचार में उठने की संभावनाएं हैं।
बाढ़ से पश्चिम महाराष्ट्र के कई जिलों में प्रभावितों को सरकारी मदद नहीं पहुंच पाने का भी मुद्दा चुनाव में उठेगा। यही नहीं किसानों की कर्ज माफ़ी के लिए राज्य सरकार अपनी जिस योजना को बहुत ज़्यादा प्रचारित करती रही है वह मुद्दा भी इस बार चुनाव में गूंजेगा। क्योंकि किसानों की आत्महत्याएं साल दर साल बढ़ती ही जा रही हैं और सरकार का दावा है कि वह किसानों के लिए बहुत कुछ कर रही है। 
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इसके अलावा एक अहम मुद्दा रहेगा फसल बीमा योजना का। इस बीमा योजना की बड़े पैमाने पर मीडिया में चर्चा भी हुई और सत्ता में बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने भी इसे लेकर सरकार के ख़िलाफ़ आंदोलन किया था। 

औद्योगिक मंदी के कारण महाराष्ट्र में तेजी से बढ़ रही बेरोज़गारी की समस्या भी इस बार बड़ा मुद्दा बनेगी, क्योंकि शरद पवार के आधार क्षेत्र पश्चिम महाराष्ट्र में ऑटो मोबाइल इंडस्ट्री का जाल फैला हुआ है और यह उद्योग वर्तमान में बड़े संकट से गुजर रहा है।

2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस-एनसीपी को 9 सीटों पर वोट विभाजन कर प्रत्यक्ष नुकसान पहुंचाने वाली वंचित आघाडी में फूट का भी विधानसभा चुनावों पर व्यापक असर दिख सकता है। इस बार प्रकाश आम्बेडकर और ओवैसी की पार्टी अलग-अलग लड़ने वाली है। 

यही नहीं आम्बेडकर के सहयोगी भी अब उन्हें छोड़कर नया मंच बना रहे हैं और कांग्रेस - एनसीपी से गठबंधन करने वाले हैं। लोकसभा चुनाव में वंचित आघाडी के 9 उम्मीदवारों ने हर सीट पर एक लाख से ज़्यादा वोट हासिल किये थे। विदर्भ क्षेत्र में आरपीआई के छोटे-छोटे गुट भी इस बार कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन का हिस्सा बने हैं।

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संजय राय

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