स्वतंत्रता के पहले और बाद भी रामलीला मैदान रैली और राजनीति के लिए जाना जाता है। वामपंथियों से लेकर जनसंघ और बीजेपी तक के कार्यक्रम इस मैदान पर हुए हैं।
भारत चीन सीमा विवाद के बीच गलवान पर मोदी का बयान देश के लिए बड़ा झटका है। क्या प्रधानमंत्री के केवल एक वक्तव्य ने ही देश को बिना कोई ज़मीनी युद्ध लड़े मनोवैज्ञानिक रूप से हरा नहीं दिया है?
सेना और विदेश मंत्रालय ने दावा किया था कि कोई भी जवान ‘लापता’ नहीं है लेकिन चीन द्वारा दस भारतीय जवानों को रिहा करने के बाद दोनों की किरकिरी हो रही है।
चीनी सैनिकों के साथ लड़ाई में घायल हुए जवान सुरेंद्र सिंह के परिवार ने कहा कि लद्दाख की गलवान घाटी में सैनिक निहत्थे गए थे। फिर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने क्या देश से झूठ बोला कि गलवान घाटी में शहीद हुए सैनिक हथियार लेकर गये थे?
सुरक्षा परिषद में भारत आठ साल बाद फिर आठवीं बार पहुँचा है। सुरक्षा परिषद का सदस्य चुने जाने के बाद 21वीं सदी की दुनिया को भारत चाहे तो नई दिशा दिखाने की कोशिश कर सकता है।
भारत एक बार फिर चीन के विस्तारवादी इरादों का सामना कर रहा है। दोनों देशों के बीच सीमा पर ज़बर्दस्त तनाव के हालात बने हुए हैं। 1962 के लिये नेहरू ज़िम्मेदार तो 20 सैनिकों की मौत की ज़िम्मेदारी क्या नरेंद्र मोदी की नहीं है?