कोरोना का युद्ध इतना गंभीर है कि यह पूरा पिछला एक महीना हम सब लोग अंदरुनी सवालों से ही जूझते रहे। फिर भी यह तो मानना पड़ेगा कि इस कोरोना-संकट के दौरान भारत की विश्व-छवि बेहतर ही हुई है।
भारत में कोरोना महामारी की आड़ में मुसलिम समुदाय के ख़िलाफ़ जिस तरह सरकारी और ग़ैर-सरकारी स्तर पर सुनियोजित नफ़रत-अभियान और मीडिया ट्रायल चलाया जा रहा है, उसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिक्रिया होने लगी है।
आख़िर किस सुविचारित साज़िश या रणनीति के तहत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने यह भ्रामक दावा देश के सामने पेश किया है कि भारत में कोरोना संक्रमण के फैलने की दर दुनिया के तमाम विकसित देशों से बेहतर और संतोषजनक है।
इस कठिन समय में सरकार के समक्ष भी विकल्प चुनने का संकट है कि लोगों की ‘ज़िंदगी’ और ‘रोज़ी-रोटी’ में से पहले किसे बचाए? मौजूदा संकट को भी एक युद्ध ही बताया गया है।
भारत में हाल के कुछ महीनों में मुसलमानों पर अत्याचार और उत्पीड़न बढ़े हैं तथा मीडिया के कुछ लोगों द्वारा उन्हें आतंकवादी और राष्ट्र विरोधी नागरिकों के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
इंदौर के टाटपट्टी-बाखल इलाक़े की ही तरह मुरादाबाद में भी स्वास्थ्य और पुलिसकर्मियों पर हमला हुआ। इसके बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं, जिनके जवाब मिलने बेहद ज़रूरी हैं।
देश भर से ख़बरें आ रही हैं कि मज़दूर और ग़रीब तबक़े को दो वक्त का खाना नहीं मिल पा रहा है। सरकार के गोदाम अनाज से भरे हुए हैं, तो वह इसे ग़रीबों में बांटती क्यों नहीं?
केरल से दोगुना से ज़्यादा आबादी के राज्य मध्य प्रदेश में 3 मार्च के बाद से कथित तौर पर राजनीतिक-प्रशासनिक लॉकडाउन तो था ही 26 मार्च से बाक़ी देश के साथ कोरोना के लॉकडाउन में भी आ गया।
वर्तमान कोरोना वायरस की समस्या कुछ समय बाद ख़त्म हो जाएगी और फिर आर्थिक समस्याएँ अधिक उग्र रूप में हमारे उपमहाद्वीप में उत्पन्न होंगी। केवल वैज्ञानिक मानसिकता के बुद्धिजीवी ही इन्हें हल कर सकते हैं लेकिन वर्तमान में इसका बड़ा अभाव है।
इससे ज़्यादा शर्मनाक बात क्या हो सकती है कि कोरोना के मसले को भी हिंदू-मुसलमान का रंग दिया जा रहा है। इंदौर और मुरादाबाद में डाॅक्टरों और नर्सों पर जो हमले किए गए हैं, उनकी जितनी निंदा की जाए, कम है।
मुरादाबाद के एक मोहल्ले में स्वास्थ्य कर्मियों और पुलिसवालों पर कुछ मुसलमानों ने हमला कर दिया। कुछ ही समय पहले इंदौर में भी ऐसी ही घटना हुई थी। तब भी इसे मुसलमानों को एक जाहिल वर्ग की हरकत मान कर निन्दा की गयी थी।
देश में एक के बाद एक लॉकडाउन लागू किये जा रहे हैं। क्या हमारी केंद्र व राज्य सरकारें सिर्फ़ लॉकडाउन के भरोसे कोरोना से लड़ाई जीतने की उम्मीद लगाये बैठी हैं।
पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेने वाली कोरोना वायरस महामारी भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों की जेलों में बंद कैदियों के लिये वरदान साबित हो रही है।