कोरोना महामारी ने भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर फिर से ग़ौर करना आवश्यक बना दिया है। अभी भी भारत कोरोना के दूसरे स्टेज में ही है। कोरोना की तबाही को कैसे झेले पाएगी पहले से ही चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था?
दिल्ली के आसपास के शहरों में कमाई के अवसर शून्य हो जाने के बाद गाँव की तरफ़ पैदल जाने वालों का रेला इंसानियत को चुनौती दे रहा है। इतनी लम्बी दूरी पैदल तय करने की योजना बनाना इस बात का साफ़ सबूत है कि दिल्ली में रहना असंभव हो गया है।
एक बार फिर से चीन की चर्चा ज़ोरों पर है। चीन को गरियाने का काम लोग खुले दिल से कर रहे हैं। जैसे कि इस समय हमने कोरोना के बहाने उसे फिर से कोसना शुरू कर दिया है।
केंद्र सरकार ने असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों, दिहाड़ी मज़दूरों और शहरी तथा ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले ग़रीबों के लिए एक लाख सत्तर हज़ार करोड़ के पैकेज की घोषणा की है।
कोरोना को देखते हुए 21 दिन का लॉकडाउन/कर्फ्यू है। ऐसे में कंपनियों के साथ मज़दूर वर्ग और समाज के कमज़ोर तबक़े को इस दौरान आंशिक मदद पहुँचाने की कवायद में केंद्र व राज्य सरकारों ने कई घोषणाएँ की हैं। ये कितनी कारगर होंगी?
हम भारतीय बड़े ख़ुशक़िस्मत हैं कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। मैं यह इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि मैं कोई मोदी का भक्त हूँ। मैं इसलिए कह रहा हूँ कि मोदी जी ग़रीबी में पले और बड़े हुए हैं।
प्रधानमंत्री ने देशवासियों को जितना डराना संभव था, डरा दिया। यह भी कह दिया कि इससे बचने का एक ही तरीक़ा है कि घरों में बंद रहा जाए और इसके लिए लक्ष्मण रेखा का अच्छा उदाहरण दिया पर उसके अंदर रहने में सहायता का कोई आश्वासन नहीं दिया।
जनता-कर्फ्यू तो सिर्फ़ इतवार को था, लेकिन सोमवार को भी वह सारे देश में लगा हुआ मालूम पड़ रहा है। मेरा घर गुड़गाँव की सबसे व्यस्त सड़क गोल्फ कोर्स रोड पर है लेकिन इस सड़क पर आज भी हवाइयाँ उड़ रही हैं।
किसी देश का नेता अगर समझदार और ज़िम्मेदार न हो तो उसे बहुत गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। वे उसे युद्ध में झोंक सकते हैं, आर्थिक संकट खड़ा कर सकते हैं और कई बार देशवासियों के लिए स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियाँ भी खड़ी कर सकते हैं।
अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार वर्ष 1960 के बाद से पनपी नई बीमारियों और रोगों में से तीन-चौथाई से अधिक का संबंध जानवरों, पक्षियों या पशुओं से है, और यह सब प्राकृतिक क्षेत्रों के विनाश के कारण हो रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना विषाणु (वायरस) का मुक़ाबला करने के लिए देशवासियों को जो संदेश दिया, वह बहुत ही प्रेरक और सामयिक था। लेकिन ताली और थाली बजाने की उत्सवी मुद्रा क्यों?