इसलामी कट्टरपंथी संगठन तालिबान के लड़ाके अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल से सिर्फ़ 50 किमी. की ही दूरी पर हैं। शुक्रवार को कंधार पर क़ब्ज़ा करने के बाद तालिबान के लड़ाके लोगार प्रांत की राजधानी फूल-ए-आलम में दाखिल हो गए।
यह बेहद ख़तरनाक स्थिति है क्योंकि लोगार काबुल से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर है। वहाँ से राजमार्ग पर तेज़ रफ़्तार से चलते हुए दो घंटे में राजधानी पहुँचा जा सकता है।
यह सवाल सबको मथ रहा है और हैरत में डाल रहा है। तालिबान ने एक हफ़्ते में 12 प्रांतों की राजधानियों पर नियंत्रण कर लिया है। अब तक कुल 18 प्रातों की राजधानियों पर उसका कब्जा हो चुका है।
अमेरिकी खुफ़िया अधिकारियों ने बीते दिनों कहा था कि तालिबान 30 दिनों के अंदर राजधानी काबुल को पूरे देश से काट दे सकते हैं और 90 दिनों में काबुल की सरकार को उखाड़ फेंक सकते हैं। पर इसके दो दिन बाद ही तालिबान काबुल के नजदीक पहुंच चुका है।
तबाही, अफ़रातफरी
पूरे देश में अफरातफरी का माहौल है। लोग अलग-अलग शहरों से जत्थे बना कर जैसे तैसे राजधानी की ओर कूच कर रहे हैं ताकि वे वहाँ सुरक्षित रह सकें। रोज़ाना हज़ारों की तादाद में लोग काबुल में दाखिल हो रहे हैं।
काबुल में शरण लेने के लिए पहुँच रहे ऐसे कई लोग सड़क पर खुले आसमान के नीचे रात गुज़ारने के लिए मजबूर हैं।
संयुक्त राष्ट्र ने अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देशों से अपनी सीमाएं खुली रखने का आग्रह किया है। इसी बीच विश्व खाद्य कार्यक्रम ने एक भारी मानवीय आपदा आने की चेतावनी जारी की है और कहा है कि खाद्य सामग्री की भारी किल्लत है।
बच्चे भी प्रभावित
'सेव द चिल्ड्रन' के मुताबिक़, अपने घरों से भागकर काबुल में शरण लेने वालों में 72 हज़ार बच्चे शामिल हैं।
कुंदूज़ प्रांत से भागकर काबुल पहुँचने वाले 35 वर्षीय असदुल्लाह ने बीबीसी से कहा, "हमारे पास रोटी या अपने बच्चे के लिए दवाई ख़रीदने तक के लिए पैसे नहीं हैं।"
सांसत में महिलाएं
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इस संघर्ष में बीते एक महीने में एक हज़ार से ज़्यादा नागरिक मारे गए हैं।
तालिबान ने पिछले कुछ दिनों में मीडिया चीफ़ समेत कई राजनीतिक हत्याओं को भी अंजाम दिया है।
अफ़ग़ानिस्तान की एक महिला फ़िल्म मेकर साहरा करीमी ने काबुल में बीबीसी को बताया है कि ऐसा लग रहा है कि दुनिया ने अफ़ग़ानिस्तान से मुंह मोड़ लिया है।
याद दिला दें कि इसके पहले जब अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का शासन था तो उसने कठोर व कट्टर इसलामिक नियम क़ानून लगा दिए थे, जिसका सबसे अधिक नुक़सान महिलाओं को हुआ था।
उन्होंने महिलाओं को घर के पुरुष के बगैर बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी थी, महिलाओं को नौकरी करने पर प्रतिबंध लगा दिया था, लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए थे और महिलाओं को बुरक़ा पहनना अनिवार्य कर दिया था।
साहरा करीमी ने बीबीसी से कहा,
“
मुझ पर ख़तरा मंडरा रहा है, लेकिन अब मैं अपने बारे में नहीं सोचती। मैं अपने देश के बारे में सोचती हूं... मैं अपनी पीढ़ी के बारे सोचती हूं जिसने इन बदलावों को लाने के लिए बहुत कुछ किया है।
साहरा करीमी, अफ़ग़ान फ़िल्म निर्माता
उन्होंने इसके आगे कहा, "मैं ख़ूबसूरत बच्चियों के बारे में सोचती हूं। इस देश में हज़ारों खूबसूरत, युवा और काबिल महिलाएं हैं।"
कंधार पर तालिबान के क़ब्ज़े से ठीक पहले अफ़ग़ानी लड़कियों के लिए काम करने वाली एक एनजीओ की कार्यकारी निदेशक पश्ताना दुर्रानी ने बीबीसी से कहा था कि कि वह अपनी ज़िंदगी पर मंडरा रहे ख़तरे की वजह से डरी हुई हैं क्योंकि वह महिलाओं की शिक्षा को लेकर काफ़ी मुखर रही हैं।
क्या कहना है ब्रिटेन का?
इस बीच ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वालेस ने चेतावनी देते हुए कहा है कि तालिबान के तेज़ी से बढ़ने के साथ ही अफ़ग़ानिस्तान "गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है।"
दूसरी ओर, अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के नेता मिच मैकॉनल ने एक बयान में वहाँ की स्थिति की तुलना विएतनाम में अमेरिका की हुई हार से की।
अमेरिका और ब्रिटेन ने अफ़ग़ानिस्तान के अपने दूतावासों में कर्मचारियों की संख्या कम करने की घोषणा की है।
रूस के राजदूत ने कहा है कि मॉस्को अभी ऐसी किसी योजना पर काम नहीं कर रहा है।
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