अमेरिका उसी मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर को अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रपति बनाएगा जिसके नेतृत्व में तालिबान ने 20 साल तक अमेरिकी व नेटो सैनिकों के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ा है।
ताज़िक, उज़बेक, हज़ारा क़बीले के लोग एकजुट होकर नॉदर्न अलायंस जैसा संगठन बनाने की कोशिश में हैं, जो अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को ज़बरदस्त चुनौती दे सके।
पाकिस्तानी सेना, सरकार और ख़ुफ़िया एजेन्सी आईएसआई ने जिस हक्क़ानी नेटवर्क को 20 साल से पाला पोसा है, उसके लोग ही अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनाने जा रहे हैं। मतलब साफ है।
तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा किया नहीं कि चीन ने तुरन्त उसकी ओर दोस्ती और सहयोग का हाथ बढ़ा दिया। क्या वह अफ़ग़ानिस्तान के ज़रिए कज़ाख़स्तान, उज़बेकिस्तान, ताज़िकस्तान होते हुए यूरोप तक पहुँचना चाहता है?
बिहार में विपक्ष का नेता और मुख्यमंत्री, दोनों ही जाति जनगणना के पक्ष में हैं। तेजस्वी यादव कर्नाटक मॉडल की बात कर रहे हैं तो नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी से मिलने का समय माँग रहे हैं। क्या है मामला?
तालिबान ने जिस तरह काबुल पर क़ब्ज़ा करते ही महिलाओं को घर जाने को कह दिया और उनके पोस्टर हटा दिए, लोगों को पुराने दिनों की याद ताज़ा हो गई है। फिर यह नया तालिबान क्या है?
नरेंद्र मोदी सरकार के नए मंत्रालय मिनिस्ट्री ऑफ़ कोऑपरेशन यानी सहकारिता मंत्रालय कामकाज शुरू करे, उसके पहले ही उस पर विवाद शुरू हो गया है। विपक्षी दलों ने इसे राज्य का विषय मानते हुए संघवाद के ख़िलाफ़ बताया है और सरकार की मंशा पर सवाल उठाया
क्या मोदी कैबिनेट विस्तार 2021 में स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्द्धन को बलि का बकरा बनाया गया? क्या उन्हें मोदी कैबिनेट फेरबदल 2021 में बाहर का रास्ता इसलिए दिखाया गया कि सरकार की खराब हो चुकी छवि को और खराब होने से बचाया जा सके?
तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और सत्तारूढ़ बीजेपी ने पेट्रोलियम उत्पादों की बेतहाशा बढ़ती कीमतों से जिस तरह पल्ला झाड़ लिया है और इसके लिए पूर्व कांग्रेसी सरकार के ऊपर ठीकरा फोड़ दिया है, उससे कई अहम सवाल खड़े होते हैं।
कोरोना महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन ने खरीद-फ़रोख़्त और बाजार में बुनियादी बदलाव लाए हैं। यह बदलाव सबसे साफ़ तौर पर ऑनलाइन शॉपिंग के क्षेत्र में देखा जा सकता है।
बच्चों-किशोरों पर लॉकडाउन का असर दूरगामी हो सकता है, जिससे उनकी मानसिकता बदल सकती है, उनके पूरे जीवन पर इसका असर दिख सकता है। अभिभावक, शिक्षक और माता-पिता इसे पूरी तरह समझ भी नहीं पा रहे हैं।
कोरोना और इस महामारी से बचने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने क्या मानव स्वभाव को भी प्रभावित किया है? क्या कोरोना की वजह से हमारे मनोविज्ञान, स्वभाव, व्यवहार व कामकाज के तौर तरीकों में कोई फ़र्क आया है?
साल 1967 में छह दिनों तक चले फ़लस्तीन युद्ध, उसमें तीन अरब देशों की हार और उन देशों के हिस्सों पर इज़रायल के क़ब्जे ने पूरे मध्य-पूर्व की राजनीति पर गहरा छाप छोड़ा।
लगभग 26 हज़ार वर्ग किलोमीटर में फैले इस इज़रायल-फ़लस्तीन के लिए जितना ख़ून बहा है, जितना संघर्ष हुआ है, उतना दुनिया में किसी जगह के लिए नहीं हुआ है। न ही दूसरे किसी संघर्ष ने विश्व राजनीति और पूरी मानवता को इस तरह प्रभावित किया है।
जिस इसलामी चरमपंथी गुट हमास ने पिछले कुछ दिनों से इज़रायली ठिकानों पर ताबड़तोड़ मिसाइल हमले कर एक नागरिक समेत सात यहूदी नागरिकों की हत्या कर दी है, उसकी नींव खुद इज़रायल ने रखी थी
श्मसान घाटों और क़ब्रिस्तानों पर अंत्येष्टि के लिए लगी लंबी लाइनों, गंगा में लगातार दिख रही लाशों और कोरोना से होने वाली मौतों के सरकारी आँकड़ों के बीच बड़ी खाई को देख कर यह अंदेशा होना स्वाभाविक है कि क्या सरकारें जितनी मौतें बता रही हैं, उससे ज़्यादा मौते हो रही हैं?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति परकल प्रभाकर सरकार की आलोचना करने के लिए एक बार फिर खबरों में हैं। अपने यूट्यूब चैनल पर साप्ताहिक कार्यक्रम 'मिडवीक मैटर्स' में उन्होंने कोरोना से लड़ने के मुद्दे पर केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की है।
क्या आपको यह पता है कि इस समय देश के विभन्न हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में कुल मिला कर जजों के 411 पद खाली पड़े हुए हैं और अदालतों के कॉलिजियम ने सरकार के पास जो सिफारिशें भेजी हैं, उनमें से ज़्यादातर पर सरकार लंबे समय से कुंडली मार कर बैठी है?
पूरे देश में 'जय श्री राम' का नारा लगा कर और हिन्दुत्व के ज़रिए राजनीतिक समीकरण को उलट-पुलट कर रख देने वाली बीजेपी ने जब केरल में ईसा मसीह का नाम लेकर अपने विरोधी पर हमला किया तो लोगों का ध्यान उस ओर गया।