शरद पवार ने साफ़ तौर पर कहा है कि यदि राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवा भी दी तो वही हाल होगा जो 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का हुआ था।
आज अनुकूल मौसम दिखाई पड़ रहा है, लेकिन तीसरे मोर्चे की नींव नहीं पड़ती दिख रही। इसमें सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या तीसरा मोर्चा या फ़ेडरल फ़्रंट अब इस दौर की राजनीति में प्रासंगिक नहीं रहे?
महाराष्ट्र में क्या फिर मराठा आरक्षण का आन्दोलन भड़केगा? यह सवाल इसलिए क्योंकि मुंबई के आज़ाद मैदान में पिछले एक सप्ताह से मराठा आरक्षण के दायरे में आने वाले मेडिकल विद्यार्थी पिछले एक सप्ताह से आन्दोलन कर रहे हैं।
देश के 50 प्रतिशत हिन्दू मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर 50 साल तक सत्ता में बने रहने का अमित शाह और नरेंद्र मोदी का फ़ॉर्मूला कोई नया नहीं है। लेकिन क्या यह फ़ेल नहीं हो गया है?
बिना चुनाव लड़े राज ठाकरे की पार्टी को नोटिस भेज कर सभाओं के खर्च़ देने की माँग चुनाव आयोग ने की है। क्या चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के दबाव में ऐसा कुछ कर रहा है?
लोकसभा चुनाव के नतीजे आये भी नहीं हैं, लेकिन महाराष्ट्र में अगले संघर्ष यानी विधानसभा चुनाव की बिसात बिछले लगी है। तो क्या सूखे का मुद्दा अब ज़ोर शोर से उठेगा?
भारत के कॉरपोरेट जगत ने मुंबई में मतदान के बाद यह संकेत दे दिया है कि यदि वपक्षी गठबंधन की सरकार बनती है तो उन्हें कोई दिक्क़त नहीं होगी। यह बदलाव का संकेत माना जा रहा है।
गोविंद पानसरे और नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की जाँच में देर होने पर अदालत ने जाँच एजंसियों को फटकार लगाई है। क्या हम लोकतंत्र के नाम पर भीड़तंत्र की ओर बढ़ रहे हैं?
एक दौर था जब मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने चुनाव नहीं होने दिया था। एक आज का दौर है कि चुनाव आयोग को उसकी शक्तियों की याद सुप्रीम कोर्ट को दिलानी पड़ रही है।
महाराष्ट्र के चुनावों में इस बार एक मुद्दा जोर-शोर से चर्चा में है और वह है प्रॉक्सी (परोक्ष) प्रचार का। इसको लेकर राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी तक को शिकायत कर इसे रुकवाने की माँग की गयी है।
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 23 अप्रैल को महाराष्ट्र में जिन 14 लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होने जा रहे हैं वे बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के लिए अग्नि परीक्षा साबित होने वाले हैं।
महाराष्ट्र में 1972 के सूखे से भी इस साल का सूखा गंभीर है क्योंकि लगातार पिछले तीन सालों से बारिश कम हो रही है और नतीजन इस साल संकट ज़्यादा बढ़ गया है। इसके लिए कौन है ज़िम्मेदार?
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से चुनाव मैदान में उतारना भारतीय जनता पार्टी की सोची समझी रणनीति का हिस्सा है। पर इससे उसे महाराष्ट्र में लेने के देने पड़ सकते हैं।
मोदी बार-बार महाराष्ट्र क्यों आ रहे हैं और शरद पवार को ही निशाना क्यों बना रहे हैं, यह सवाल अब चर्चा का विषय बन गया है। क्या इनके बीच को व्यक्तिगत दुश्मनी है या अन्य कोई कारण?
पुणे के पास ईंट भट्ठे पर काम कर रह एक दलित मजदूर को थोड़ी देर आराम कर लेने पर मानव मल खाने पर मजबूर किया गया। इसका व्यापक विरोध होने पर अभियुक्त के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर उसे गिरफ़्तार कर लिया गया।
2014 के चुनाव में मतदाताओं ने एकतरफ़ा वोट डाले थे, लेकिन इस बार चुनाव में वह मोदी लहर दिखाई नहीं दे रही है। हालाँकि सर्वेक्षण बीजेपी-शिवसेना के पक्ष में आते दिख रहे हैं, परिस्थितियाँ बदली हैं। तो किस करवट बैठेगा ऊँट?
लोकसभा चुनावों में हर वयस्क वोट डाल रहा है, लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में हर वयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार दिलाने के लिए बाबा साहब भीम राव आम्बेडकर ने एक लंबी लड़ाई लड़ी थी?
इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए दो अरब रुपये का चंदा उगाहने वाली बीजेपी इस मुद्दे पर घिरी लगती है। काले धन को ख़त्म करने का दावा करने वाले मोदी से सवाल पूछे जा रहे हैं।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का दंभ भरने वाले हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें कितनी गहरी हैं इस बात का अंदाज़ा चुनाव पूर्व के दो महीनों में लगाया जा सकता है। दलों के बीच लड़ाई जाति-धर्म-कुल-गोत्र और क्षेत्र में उलझकर रह गई है।
48 साल बाद कांग्रेस ने एक बार फिर ‘ग़रीबी हटाओ’ जैसा नारा दिया है। लेकिन सवाल यह है कि न्यूनतम आमदनी योजना से क्या कांग्रेस 2019 में सत्ता में वापसी कर पाएगी?
प्रवीण तोगड़िया राम मंदिर आन्दोलन के नेता थे और एक दौर में नरेंद्र मोदी के मित्र भी। लेकिन इस बार वह अपना राजनीतिक दल बनाकर बीजेपी के ख़िलाफ़ ताल ठोकने जा रहे हैं।
आज का दौर है यहाँ सत्ता की कुर्सी पर बैठने वाले नेताओं और सत्ता के गलियारों में फलने-फूलने वाले दलालों की डायरियों का। ये डायरियाँ आज कई भ्रष्टाचार के राज खोलती हैं।